राजस्थान में तेजी से गिरते भूजल स्तर को नियंत्रित करने और जल संसाधनों के संरक्षण के उद्देश्य से राज्य सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। बुधवार को विधानसभा में ‘राजस्थान भूजल प्राधिकरण विधेयक’ (Rajasthan Groundwater Authority Bill) को बहस के बाद पारित कर दिया गया। इस बिल के तहत अब प्रदेश में ट्यूबवेल या किसी अन्य माध्यम से भूमिगत जल निकालने पर शुल्क देना होगा।
अब बगैर अनुमति नहीं खुदेगा ट्यूबवेलनए कानून के तहत डार्क जोन (अत्यधिक भूजल दोहन वाले क्षेत्र) में बिना सरकारी अनुमति के कोई नया ट्यूबवेल नहीं खोदा जा सकेगा। राज्य सरकार इन क्षेत्रों की पहचान कर विशेष निगरानी रखेगी, ताकि भूजल का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन रोका जा सके। यह नियम सभी नागरिकों, संस्थानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर लागू होगा।
कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल पानी उपयोग पर टैरिफबिल के अनुसार, व्यावसायिक और औद्योगिक इकाइयों द्वारा जमीन से निकाले जाने वाले पानी की मात्रा के अनुसार टैरिफ (शुल्क) तय किया जाएगा। जितना ज्यादा दोहन, उतना अधिक भुगतान — इस सिद्धांत के तहत शुल्क तय किए जाएंगे। इससे उम्मीद है कि पानी की बर्बादी पर अंकुश लगेगा और उद्योग जल संरक्षण की ओर प्रवृत्त होंगे।
क्यों जरूरी था ये कानून?राजस्थान, देश के सबसे अधिक जल संकट झेलने वाले राज्यों में से एक है। प्रदेश के कई जिले डार्क जोन में आ चुके हैं, जहां भूजल स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है। अंधाधुंध ट्यूबवेल खुदाई, वर्षा जल का संग्रह न होना, और जल संसाधनों का अव्यवस्थित उपयोग इस संकट के प्रमुख कारण हैं। ऐसे में भूजल दोहन को नियंत्रित करना नितांत आवश्यक हो गया था।
राज्य सरकार का मानना है कि बिना नियमन के भूजल का दोहन प्रदेश को जलविहीन संकट की ओर धकेल सकता है। यह विधेयक इसी दिशा में एक ठोस प्रयास है, जिससे जल स्रोतों का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
आम जनता पर क्या असर पड़ेगा?-
घरेलू उपयोग के लिए सीमित स्तर तक भूजल उपयोग पर फिलहाल कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला गया है।
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लेकिन जिन क्षेत्रों में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है, वहां हर स्तर पर अनुमति और निगरानी जरूरी होगी।
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ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य के लिए सरकार द्वारा विशेष रियायतें या छूट देने की संभावना जताई जा रही है।
‘राजस्थान भूजल प्राधिकरण’ का गठन इस कानून के तहत किया जाएगा, जो भूजल के दोहन, पंजीकरण, निगरानी और नियंत्रण के लिए पूर्ण प्राधिकृत संस्था होगी। यह प्राधिकरण लाइसेंस जारी करने, निरीक्षण करने और जरूरत पड़ने पर दंडात्मक कार्रवाई करने का भी अधिकार रखेगा।
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