राजस्थान में कांग्रेस सरकार के आखिरी बजट में किए गए बड़े फैसलों के बाद अब सरकार ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले बजट में राज्य सरकार ने 17 नए जिलों और तीन नए संभागों को बनाने का ऐलान किया था, लेकिन इनका संचालन व्यावहारिक तौर पर सुचारू नहीं हो पाया, जिसके बाद सरकार ने इन जिलों और संभागों को खत्म करने का फैसला लिया। अब सरकार की नजर उन उपखंडों, तहसीलों और उप-तहसीलों पर है, जो तय मापदंडों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने एक समीक्षा प्रक्रिया शुरू की है, जिसके तहत उन उपखंडों, तहसीलों और उप-तहसीलों का आकलन किया जाएगा, जो प्रशासनिक रूप से ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और जिनका संचालन आर्थिक दृष्टि से भी सही नहीं माना जा रहा है। जिन उपखंडों, तहसीलों और उप-तहसीलों की कार्यप्रणाली और सेवा प्रदान करने की क्षमता कमजोर पाई जाएगी, उन्हें बंद करने पर विचार किया जा सकता है।
राज्य सरकार का यह कदम प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने और सरकारी संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने की दिशा में उठाया गया है। सरकार का मानना है कि कमजोर और अप्रभावी कार्यालयों के संचालन से न केवल सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता है, बल्कि जनता को भी सेवा प्रदान करने में समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
राज्य सरकार ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि प्रशासनिक संरचनाओं में बदलाव केवल कामकाजी दक्षता और प्रभावी सेवा वितरण के उद्देश्य से किया जाएगा। हालांकि, इस निर्णय के बाद राज्य में विरोधी दलों और अन्य संगठनों की ओर से यह सवाल उठाए गए हैं कि क्या इस कदम से कहीं कोई ऐसी समस्या उत्पन्न तो नहीं होगी, जिसमें लोगों को सरकारी सेवाओं तक पहुंच में और भी कठिनाई का सामना करना पड़े।
कांग्रेस सरकार के इस कदम को लेकर राजनीतिक हलकों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। एक ओर जहां कुछ लोगों का मानना है कि इस फैसले से प्रशासनिक कामकाजी प्रक्रिया में सुधार होगा, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इसे सरकार के प्रशासनिक विफलता के तौर पर देख रहे हैं, जो पहले नए जिलों और संभागों का गठन करने में विफल रही और अब उन संरचनाओं को खत्म करने की ओर बढ़ रही है।
अब देखना यह होगा कि सरकार इस प्रक्रिया को किस तरह से लागू करती है और क्या इससे राज्य की प्रशासनिक कार्यप्रणाली में वास्तविक सुधार देखने को मिलेगा या यह केवल एक और अस्थायी उपाय साबित होगा।
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