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सरिस्का की नई सीमाएं बनी टकराव का कारण, वन विभाग बनाम पर्यावरण प्रेमियों के बीच गहराया मतभेद

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अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (सीटीएच) क्षेत्र की सीमा फिर से निर्धारित करने के सरकारी प्रस्ताव का वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरणविदों ने विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यह कदम सरिस्का की पारिस्थितिकी और बाघों के सुरक्षित पर्यावास के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। इसके अलावा राज्य और केंद्र में विपक्षी कांग्रेस के नेताओं ने भी सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की है। राजस्थान पत्रिका ने सरिस्का टाइगर रिजर्व समेत कई अन्य अभयारण्यों में खदानों की मंजूरी के साथ ही सीमा फिर से निर्धारित करने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। इस मामले को अब यूपीए सरकार के दौरान वन मंत्री रहे जयराम रमेश ने उठाया है। 

उन्होंने कहा कि सरिस्का में बाघों की वापसी बाघ संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण है। अब रिजर्व की सीमा बदलने की तैयारी चल रही है। इससे इस क्षेत्र की बंद पड़ी खनन कंपनियां फिर से खनन शुरू कर सकेंगी। पूर्व केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश, पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का आरोप है कि बंद पड़ी खदानों को शुरू करने के लिए नया सीटीएच तैयार किया गया है। वहीं, केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि सरिस्का का नया सीटीएच वैज्ञानिक मूल्यांकन पर आधारित है और इसे खनन की छूट देने के लिए तैयार नहीं किया गया है। सीटीएच के पुनर्सीमांकन का आधार वैज्ञानिक है केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि सीटीएच के पुनर्सीमांकन का आधार वैज्ञानिक मूल्यांकन और बाघ संरक्षण की आवश्यकताओं पर आधारित है और यह खनन की छूट देने के उद्देश्य से प्रेरित नहीं है। 

इस पर उठाए जा रहे सवाल राजनीति से प्रेरित हैं। जो लोग कह रहे हैं कि यह प्रक्रिया खनन की छूट देने के लिए है, या तो वे इस प्रक्रिया के वैज्ञानिक आधार को नहीं समझते हैं या फिर वे जानबूझकर जनता में भ्रम फैलाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। यादव ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार और बाघ संरक्षण की वास्तविक आवश्यकताओं पर आधारित है। 92 खदानें बंद की जा चुकी हैं गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 92 खदानें बंद की गई थीं। ये सभी खदानें सरिस्का सीटीएच से एक किलोमीटर के दायरे में थीं। बाघों का गला क्यों काटा जा रहा है? सरिस्का टाइगर रिजर्व के नए सीटीएच के मसौदे में खदान संचालकों को पूरा लाभ दिया गया है। राज्य और केंद्र सरकार को बाघों और पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है। बंद हो चुकी खदानों को फिर से शुरू करने के लिए बाघों का गला क्यों घोंटा जा रहा है? सरिस्का अलवर की नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की पहचान है। सरिस्का को बचाने के लिए सरकार को अपना स्वार्थ त्यागना चाहिए।

पारिस्थितिकीय नजरिया
पर्यावरणविदों का तर्क है कि सीमा पुनर्निर्धारण से वन्यजीवों के संरक्षित क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिसका बाघों की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उनका मानना है कि मौजूदा सीमाएं वैज्ञानिक अध्ययन और पारिस्थितिकी नजरिए के आधार पर तय की गई थीं, इसलिए इसमें कोई भी बदलाव वन्यजीव संरक्षण की दिशा में वर्षों की मेहनत पर पानी फेर सकता है।

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने एक्स पर लिखा कि सरिस्का टाइगर रिजर्व बाघ संरक्षण और पुनर्वास का अनूठा उदाहरण है। करीब 20 साल पहले यहां बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। तत्कालीन यूपीए सरकार ने बाघों के लिए विशेष अभियान चलाया था। सरिस्का वन क्षेत्र की सीमाएं और सुरक्षा बढ़ाई गई, जिसके कारण वर्तमान में यहां करीब 50 बाघ बसे हुए हैं। अब पता चला है कि राज्य सरकार सरिस्का वन क्षेत्र का दायरा कम करना चाहती है, ताकि करीब 50 खदानें फिर से शुरू की जा सकें।

जंगल के नजदीक इन खदानों को शुरू करने का नुकसान यहां के वन्यजीवों को उठाना पड़ेगा। केंद्र और राजस्थान सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री अलवर से हैं, इसलिए उन्हें इस मुद्दे पर ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है। राजस्थान में जब से भाजपा सरकार आई है, पर्यावरण और वन्यजीवों के खिलाफ कई परियोजनाओं को मंजूरी दी जा रही है। यह राज्य के भविष्य के लिए उचित नहीं है। ऐसी योजना को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।

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