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Sharad Purnima 2024: शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रौशनी में क्यों रखते हैं खीर, वीडियो मे जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

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राजस्थान न्यूज डेस्क !!! हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन शरद पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा का महत्व) मनाई जाती है। इस त्यौहार के बाद कार्तिक माह शुरू होता है। इस दिन साधक किसी विशेष कार्य में सफलता पाने के लिए भगवान विष्णु के सम्मान में व्रत रखते हैं। उत्तम फल पाने के लिए भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की भी पूजा करें। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों को करने से जातक और उसके परिवार को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी अहम बातों के बारे में।

शरद पूर्णिमा 2024 तिथि और शुभ समय
पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात 08:40 बजे शुरू होगी. वहीं यह तिथि अगले दिन यानी 17 अक्टूबर को शाम 04:55 बजे समाप्त होगी. ऐसे में शरद पूर्णिमा का त्योहार 16 अक्टूबर (Sharad Purnima 2024 Date) को मनाया जाएगा. इस दिन चंद्रोदय शाम 05 बजकर 05 मिनट पर होगा.

पंचांग

सूर्योदय - सुबह 06 बजकर 23 मिनट पर

सूर्यास्त - शाम 05 बजकर 50 मिनट पर

चंद्रोदय- शाम 05 बजकर 05 मिनट पर

चंद्रास्त- 17 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 58 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 42 मिनट से 05 बजकर 32 मिनट तक

विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 01 मिनट से 02 बजकर 47 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 50 मिनट से 06 बजकर 15 मिनट तक

निशिता मुहूर्त - 17 अक्टूबर को रात्रि 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक

शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा का पर्व (Sharad Purnima 2024 Impact) सनातन धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है. इस त्यौहार को कोजागरी पूर्णिमा, कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान अवतरित हुई थीं। इसी कारण से शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2024 हिस्ट्री) के शुभ अवसर पर मां लक्ष्मी और जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का विधान है। इससे जातक को सुख, समृद्धि, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

मां लक्ष्मी के मंत्र

1. या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

2. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।

3. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।

4. ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।

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