झीलों की नगरी उदयपुर में हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उदयपुर से महज 65 किलोमीटर दूर एक ऐसा जिला है, जिसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। इतना ही नहीं, इस जगह की खूबसूरती ऐसी है कि यह पर्यटकों की हर ख्वाहिश पूरी करती है। यह राजसमंद जिला है। यहां झीलें, विशाल महल, बड़े जंगल, मंदिर समेत घूमने के लिए कई खूबसूरत जगहें हैं। आइए राजसमंद जिले की सैर करते हैं।
राजसमंद झील (समुद्र झील)
यह उदयपुर से करीब 66 किलोमीटर उत्तर में राजनगर और कांकरोली कस्बों के बीच स्थित है। यह एक विशाल क्षेत्र में फैली खूबसूरत झील है। इस झील का निर्माण महाराणा राजसिंह प्रथम द्वारा 1662 और 1676 ई. के बीच गोमती केलवा और ताली नदियों पर बांध के निर्माण के परिणामस्वरूप दक्षिण-पश्चिम की ओर हुआ था। इस झील और बांध (1661 में) के निर्माण का मुख्य कारण यहाँ सूखे से पीड़ित लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना था। स्थानीय किसानों को नहर के माध्यम से अपने खेतों की सिंचाई की सुविधा प्रदान की जानी थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, राजसमंद झील को लगभग छह वर्षों तक 'इम्पीरियल एयरवेज' द्वारा सीप्लेन बेस के रूप में इस्तेमाल किया गया था। राजसमंद झील को राजस्थान के सबसे पुराने राहत कार्यों में से एक माना जाता है। उस समय इस कार्य के लिए लगभग चालीस लाख रुपये खर्च किए गए थे। इस झील की परिधि 22.5 वर्ग किलोमीटर है और गहराई तीस फीट है। इस झील (तालाब) का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 524 वर्ग किलोमीटर है। यह इस झील का विस्मयकारी क्षेत्र है। इतनी लंबी और चौड़ी परिधि में फैले होने के बावजूद, ऐसा माना जाता है कि यह झील गंभीर और व्यापक सूखे के समय सूख जाती है। जैसा कि वर्ष 2000 के सूखे के दौरान हुआ था। इस झील को देखने के लिए कई पर्यटक आते हैं।
कुंभलगढ़ किला कहाँ है?
यह मेवाड़ के बलवान, शक्तिशाली और प्रसिद्ध योद्धा की जन्मस्थली है। यह उदयपुर से लगभग 84 किलोमीटर उत्तर में जंगलों के बीच स्थित है। चित्तौड़गढ़ के बाद मेवाड़ क्षेत्र में कुंभलगढ़ दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किला है। राणा कुंभा ने इसे 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला अरावली पहाड़ियों की गोद में स्थित है। इस किले ने मेवाड़ को दुश्मनों से बचाने और सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई है। जब बनबीर ने विक्रमादित्य को मारकर किले पर कब्जा कर लिया, तो मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह ने अपने बचपन के दिनों में इसी किले में शरण ली थी।
महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के कारण इस किले से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। यह किला हर तरह से समृद्ध और सुरक्षित है। पीने के पानी की कमी के कारण मुगल और आमेर सेना द्वारा इसकी सुरक्षा से केवल एक बार समझौता किया गया था। यहां बहुत सुंदर और समृद्ध मंदिर हैं। इनका निर्माण मौर्य साम्राज्य के दौरान हुआ था। इसके अलावा यहां एक बहुत ही मनोरम और चित्रित स्थान 'बादल महल' है। किले की दीवारें इतनी मजबूत और इतनी चौड़ी हैं कि इस पर एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं। यह किला करीब 36 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। महाराणा फतेह सिंह ने 19वीं शताब्दी में इस किले का जीर्णोद्धार करवाया था। किले में बिखरे अतीत के चिह्न विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर कहां है?
कुंभलगढ़ किले के पास ही नीलकंठ महादेव मंदिर नामक प्रसिद्ध शिव मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1458 ई. में हुआ था। इसमें पत्थर से बना छह फुट ऊंचा शिवलिंग है। इस मंदिर की सबसे खास विशेषता चारों तरफ से प्रवेश द्वार हैं, जिन्हें सर्वतोभद्र कहा जाता है। इसके अलावा यहां एक खुला मंडप है, जिसे दूर से ही देखा जा सकता है। नीलकंठ महादेव परिसर में पवित्र वेदी स्थल के पास हर शाम पर्यटकों के लिए 'लाइट एंड साउंड शो' का आयोजन किया जाता है। यहां का माहौल, समृद्ध इतिहास और मंदिरों और किले की भव्यता देखकर आप अभिभूत हो जाएंगे।
गोलेराव जैन मंदिर कहां है?
कुंभलगढ़ किले के पास 'गोलेरव जैन मंदिर' स्थित है। यह यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण है। यह नौ मंदिरों का एक समूह है जो बहुत ही सुंदर और मनोरम क्षेत्र में स्थित है। 'भवन देवी मंदिर' के बहुत करीब स्थित गोलेरव जैन मंदिरों की दीवारों और स्तंभों पर देवी-देवताओं की बहुत ही आकर्षक मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
कुंभलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य कहां है
कुंभलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य उदयपुर और कुंभलगढ़ आने वाले पर्यटकों के लिए एक अच्छा विकल्प है। उदयपुर से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह पार्क उदयपुर-पाली-जोधपुर मार्ग पर है। यह चारों तरफ से कुंभलगढ़ के विशाल किले को घेरे हुए है। चाहे आप वन्यजीव प्रेमी हों या प्रकृति से निकटता की भावना रखते हों, कुंभलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य आपके लिए सबसे अच्छा वातावरण प्रदान करता है। अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों के चारों ओर फैला यह अभ्यारण्य लुप्तप्राय जानवरों और पक्षियों का घर है। जब आप यहां आएंगे तो आपको जंगली बिल्लियां, लकड़बग्घा, सियार, तेंदुए, भालू, नीलगाय, सांभर, चौसिंघा, चिंकारा (हिरण, बारहसिंगा), खरगोश आदि दिखाई देंगे। आप यहां भेड़ियों को देख सकते हैं, उनका पीछा कर सकते हैं और उनके शिकार को देख सकते हैं। आप यहां की गतिविधियों को भी देख सकते हैं। जानवरों के अलावा आप इस अभ्यारण्य में विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को भी देख सकते हैं। कुंभलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य भी विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों से समृद्ध है। यहां छोटे पौधे और बड़े पेड़ जिनकी जड़ी-बूटियां दवाइयां बनाने में काम आती हैं, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। यहां जंगल सफारी है। इसके जरिए आप जंगल का मजा ले सकते हैं। इतना ही नहीं, यहां एक प्रस्तावित टाइगर रिजर्व भी है।
You may also like
भोपाल समेत 25 जिलों में आंधी-बारिश की संभावना, जबलपुर-ग्वालियर में रहेगी गर्मी
कितनी है ब्रह्मोस मिसाइल की कीमत, जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मचाई पाकिस्तान में तबाही? जानें यहाँ
बोल्ट आईपीएल 2025 के शेष हिस्से के लिए वापसी करेंगे
यूएई नेशनल डे पर शुरू होगा डीपी वर्ल्ड टी20 लीग का चौथा सीजन
नेपाली गैंग ने चाय में नशीला पदार्थ पिलाकर की लूटपाट: नौकर दम्पती सहित दो साथियों ने वारदात को अंजाम