"मेरे बेटे को पुलिस ने मार दिया. उसके चार बच्चे हैं. उनकी पढ़ाई अधूरी है. मैं अब क्या कर सकती हूँ? मेरा दिल जल रहा है. मरना तो मुझे चाहिए था, मेरे बेटे को नहीं. मैं भी अनशन पर बैठी थी. मुझे वहाँ चक्कर आ गया था. मैं वापस आ गई थी."
ये शब्द सेरिन डोल्कर के हैं. उनके बेटे सेवांग थारचिन लेह में हुए प्रदर्शन के दौरान फ़ायरिंग में मारे गए थे.
उन्होंने 22 साल भारतीय सेना में नौकरी की और बतौर हवलदार रिटायर हुए. सेवांग थारचिन कारगिल युद्ध में लड़े थे.
लद्दाख के लोग बीते पाँच साल से इस केन्द्र शासित प्रदेश को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग कर रहे हैं.
इसी सिलसिले में लेह में मशहूर पर्यावरणविद सोनम वांगचुक और लेह अपेक्स बॉडी का अनशन चल रहा था.
24 सितंबर को युवाओं की बड़ी तादाद अनशन स्थल पर जमा हो गई. बाद में युवाओं के हुजूम ने सड़कों पर प्रदर्शन शुरू कर दिया.
कई जगह हिंसा हुई. प्रदर्शनकारियों ने लेह हिल काउंसिल के दफ़्तर और दूसरी सरकारी इमारतों पर पथराव किया. बीजेपी के दफ़्तर में आग लगाने की कोशिश की और उसे नुक़सान पहुँचाया.
सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की. इसी दौरान फ़ायरिंग हुई और चार लोगों की मौत हो गई. कई घायल हो गए. घायलों में सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं.
हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने अनशन ख़त्म कर दिया था. इसके दो दिन बाद ही उन्हें नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) के तहत गिरफ़्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया.
इस घटना के बाद लेह शहर में काफ़ी तनाव है.
प्रशासन ने लेह में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा-163 लगाई है.
इसके तहत पाँच या इससे अधिक लोगों के जमा होने पर पाबंदी है और शहर में सख़्त सुरक्षा इंतज़ाम हैं.
लेह में कर्फ़्यू जैसे हालात के बीच मोबाइल इंटरनेट सेवाएँ बंद हैं.
चार लोगों की मौत
पुलिस ने हिंसा के बाद कहा था कि प्रदर्शनकारियों को रोकने की काफ़ी कोशिश की गई. लेकिन वे आगे बढ़ते गए और उन्होंने कई सरकारी इमारतों पर हमले करने की कोशिश की.
लद्दाख के डीजीपी डॉ एसडी सिंह जामवाल ने 27 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि सुरक्षाबलों ने आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाईं.
मरने वालों में सेंवाग थारचिन (46) के अलावा जिग्मेत दोर्जे (25), स्टांज़िन नामग्याल (23) और रिनचेन दादुल (20) भी शामिल थे.
मारे गए चार लोगों में से तीन के घर बीबीसी हिन्दी की टीम पहुँची. यह लोग लेह के दूर-दराज़ इलाक़ों के रहने वाले थे.
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बीबीसी हिन्दी टीम लेह में सेवांग थारचिन के घर गई.
उनके पिता स्टांज़िन नामग्याल कहते हैं, "यहाँ अनशन पर लोग बैठे थे. मेरा बेटा भी अनशन पर बैठा था. वहाँ से ही जुलूस वाला सिलसिला शुरू हो गया था. जब भी बेटे को समय मिलता तो अनशन पर जाता था.''
अपने बेटे का ज़िक्र करते हुए स्टांज़िन कहते हैं, "उसने सेना में 22 साल नौकरी की. नौकरी के दौरान वह कारगिल युद्ध भी लड़ा. उसने कारगिल युद्ध में द्रास में लड़ाई लड़ी थी. वह युद्ध के दौरान चोटी पर चढ़ा था और वहाँ से फ़िसल के नीचे गिर गया था. उसे चोट लगी थी.''
''पंद्रह दिनों के बाद जब वह ठीक हो कर अस्पताल से निकला तो अगले ही दिन बोला कि मैं दोबारा लड़ने जाऊँगा. फिर वापस गया. जब तक सीज़फ़ायर नहीं हुआ, वहाँ लड़ता रहा.''
''पाकिस्तान का पोस्ट अपने इंडिया के क़ब्ज़े में लिया. पाकिस्तान से लड़ाई लड़कर, वहाँ से ज़िंदा लौट कर आया और यहाँ पर अपने लद्दाख में लोकल पुलिस ने उसको मार दिया."
वे माँग करते हैं, ''इस घटना की न्यायिक जाँच होनी चाहिए. न्यायिक जाँच नहीं होगी तो मैं मामला दर्ज करूँगा.''
स्टांज़िन कहते हैं, ''बेटे की मौत की ख़बर सुनने के बाद मेरे ऊपर तो जैसे आसमान गिर गया था. क्या कर सकता हूँ? कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. पूरी ज़मीन काली दिखाई दे रही थी. जी रहा हूँ. बच्चे की याद में रात-दिन रो रहा हूँ."
इन घरों में भी पसरा है मातमइन हिंसक प्रदर्शन में मारे गए एक और 24 वर्षीय युवा जिग्मेत दोर्जे के घर पर भी मातम का माहौल है. इनके घर कई रिश्तेदार और पड़ोसी आए हुए थे. ये जिग्मेत के परिवार को हौसला देने की कोशिश कर रहे थे.
लेह के खरनाक्लिंग गाँव में जिग्मेत के मामा चोतर सिरिंग ने बताया कि वह इस मामले में जाँच की माँग करते हैं.
उनका कहना था, "उस दिन लद्दाख के कई इलाक़ों से लड़कियाँ, लड़के और बुज़ुर्ग भी अनशन स्थल पर गए थे. हम इस पूरे मामले की जाँच चाहते हैं. जो चार लोग मारे गए, उन सभी को कैसे गोली लगी? हम ये जानना चाहते हैं कि गोली चलाने के आदेश किसने दिए थे?''
''हमारे बेटे ने दो महीने पहले ही सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी. उनकी दो महीने की छुट्टी थी. वह अपने गाँव मज़दूरी करने गया था. वह अपने घर का इकलौता सहारा था. हम बहुत दुखी हैं. "
मारे गए लोगों में 25 साल के स्टांज़िन नामग्याल भी हैं. लेह शहर से क़रीब सात किलोमीटर की दूरी पर उनका घर है. जब हम उनके घर पहुँचे तो परिवार वाले बेहद ग़मज़दा थे. वे हमसे बात करने की हालत में नहीं थे.
उनके पड़ोसी जिग्मित ने कहा कि इस बात की पूरी जाँच हो कि गोली चलाने के आदेश किसने दिए?
दूसरी ओर, सेवांग के पिता कहते हैं कि जिन लोगों ने अपनी जान दी है, उनकी इज़्ज़त में लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना चाहिए.
स्टांज़िन नामग्याल का कहना है, ''लोग छठी अनुसूची की माँग कर रहे हैं, लेकिन सरकार नहीं दे रही है. छठी अनुसूची मिलनी चाहिए. हम आंदोलन जारी रखेंगे. अनशन करेंगे. जुलूस निकालेंगे."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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