न्यूयॉर्क के एक मेडिकल सेंटर में 61 वर्षीय व्यक्ति की मौत एमआरआई मशीन में खिंचने के कारण हो गई है. ये व्यक्ति मेटल (धातु) की भारी चेन पहन कर मशीन के पास चला गया था. चुंबकीय शक्ति की वजह से मशीन ने उस व्यक्ति को खींच लिया.
स्थानीय पुलिस ने बताया कि यह हादसा नासाऊ ओपन एमआरआई सेंटर में हुआ.
पुलिस के मुताबिक व्यक्ति बिना अनुमति एक सक्रिय एमआरआई रूम में दाखिल हो गया था.
व्यक्ति की पत्नी ने स्थानीय मीडिया को बताया कि वो अपना स्कैन करवाने एमआरआई रूम गई थीं. स्कैन के बाद उन्होंने अपने पति को अंदर बुलाया था लेकिन जैसे ही वह कमरे में दाखिल हुए, गले में पहनी धातु की चेन मशीन की ओर खिंच गई और उन्हें ज़ोर से खींच लिया गया.
एमआरआई मशीनें बेहद शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करके शरीर के भीतर की विस्तृत छवियां बनाती हैं. आमतौर पर मरीजों को स्कैन से पहले धातु की सभी चीजें हटाने और अपने कपड़े बदलने के लिए कहा जाता है.
केस की जांच करने वाले नासाउ काउंटी पुलिस विभाग ने बताया, "व्यक्ति गले में एक भारी धातु की चेन पहने था, जिसकी वजह से वह एमआरआई मशीन की ओर खिंच गया और बाद में उसकी मौत हो गई."
पुलिस ने व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक नहीं की है.
पत्नी ने क्या बतायापत्नी ने बताया कि वह अपने घुटने की एमआरआई स्कैन करवा रही थीं और स्कैन के बाद उठने में मदद के लिए उन्होंने अपने पति को अंदर बुलाया था.
उन्होंने कहा कि उनके पति करीब 9 किलोग्राम वज़न वाली एक भारी चेन पहने हुए थे.
अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए ) के अनुसार, एमआरआई मशीनों में ऐसे चुंबकीय क्षेत्र होते हैं जो किसी भी आकार की धातु की वस्तुओं को आकर्षित कर सकते हैं. इनमें चाबियां, मोबाइल फोन, यहां तक कि ऑक्सीजन टैंक भी शामिल हैं.
2001 में, न्यूयॉर्क सिटी के एक मेडिकल सेंटर में एक छह वर्षीय बच्चे की उस समय मौत हो गई थी जब एमआरआई की चुंबकीय ताकत से एक ऑक्सीजन टैंक हवा में उड़कर उसके सिर से टकरा गया था, जिससे उसे गंभीर चोट आई थी.
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लेकिन ये एमआरआई मशीन है क्या, ये किसलिए इस्तेमाल होती है और क्या ये वाक़ई इतनी ख़तरनाक है कि किसी की जान ले सकती है?
एमआरआई का मतलब है मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन, जिसमें आम तौर पर 15 से 90 मिनट तक लगते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर का कौन सा, कितना बड़ा हिस्सा स्कैन किया जाना है. कितनी तस्वीरें ली जानी हैं.
ये रेडिएशन के बजाए मैग्नेटिक फील्ड पर काम करता है. इसलिए एक्स रे और सीटी स्कैन से अलग है.
रेडियोलॉजिस्ट डॉ संदीप ने बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह को बताया, "पूरे शरीर में जहां जहां हाइड्रोजन होता है, उसके स्पिन यानी घूमने से एक इमेज बनती है."
शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, इसलिए हाइड्रोजन स्पिन के ज़रिए बने इमेज से शरीर की काफी दिक्कतों का पता लगाया जा सकता है.
दिमाग, घुटने, रीढ़ की हड्डी जैसे शरीर के अलग अलग हिस्सों में जहां कहीं भी सॉफ्ट टिशू होता है उनका अगर एमआरआई स्कैन होता है तो हाइड्रोजन स्पिन से इमेज बनने के बाद ये पता लगाया जाता है कि शरीर के उन हिस्सों में कोई दिक्कत तो नहीं है.
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आम तौर पर एमआरआई स्कैन वाले दिन आप खा-पी सकते हैं और दवाएं भी ले सकते हैं. कुछ मामलों में स्कैन से चार घंटे पहले तक ही खाने को कहा जाता है ताकि चार घंटों की फ़ास्टिंग हो सके. कुछ लोगों को अत्यधिक पानी भी पीने को कहा जाता है.
अस्पताल पहुंचने पर जिसका स्कैन होना है, उसकी सेहत और मेडिकल जानकारी मांगी जाती है जिससे मेडिकल स्टाफ़ को ये पता चलता है कि स्कैन करना सुरक्षित है या नहीं.
ये जानकारी देने के बाद मंजूरी भी मांगी जाती है कि आपका स्कैन किया जाए या नहीं. क्योंकि MRI स्कैनर ताक़तवर मैग्नेटिक फ़ील्ड पैदा करता है, ऐसे में उसके भीतर जाते वक़्त शरीर पर कोई मेटल ऑब्जेक्ट नहीं होना चाहिए. इनमें ये चीज़ें शामिल हैं:
- घड़ी
- ज्वेलरी जैसी नेकलेस या झुमके
- पियर्सिंग
- नकली दांत जिनमें धातु का इस्तेमाल होता है
- सुनने की मशीन
- विग, क्योंकि कुछ में धातु के टुकड़े होते हैं
एमआरआई की मशीन तीन तरह की होती है. 1 टेस्ला. 1.5 टेस्ला और 3 टेस्ला. टेस्ला वो यूनिट है जिसमें मशीन की क्षमता को मापा जाता है.
3 टेस्ला यूनिट की क्षमता वाली एमआरआई मशीन लोहे की पूरी अलमारी को अपनी ओर खींचने की ताकत रखता है.
यानी मशीन जितनी ज्यादा टेस्ला वाली होगी, उतना ही ज्यादा होगा उसका मैगनेटिक फील्ड.
डॉ संदीप के मुताबिक एमआरआई कराने वाले कमरे के बाहर आपको ये लिखा मिलेगा कि दिल में पेस मेकर लगा हो, या फिर शरीर में कहीं भी न्यूरो स्टिमुलेटर लगा हो तो स्कैन न कराएं.
वैसे डॉ. संदीप के मुताबिक सोना चांदी पहन कर एमआरआई स्कैन कराया जा सकता है.
सोना में लोहा नहीं होता है. लेकिन डॉ संदीप कहते हैं कई बार मिलावटी चांदी में लोहा होने का खतरा रहता है.
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एमआरआई स्कैनर एक सिलेंडरनुमा मशीन होती है जो दोनों तरफ़ से खुली होती है. जांच कराने वाला व्यक्ति मोटराइज़्ड बेड पर लेटता है और फिर वो भीतर जाता है.
कुछ मामलों में शरीर के किसी ख़ास हिस्से पर फ़्रेम रखा जाता है जैसे कि सिर या छाती. फ़्रेम में ऐसे रिसीवर होते हैं जो स्कैन के दौरान शरीर की तरफ़ से जाने वाले सिग्नल लपकते हैं जिससे बढ़िया गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेने में मदद मिलती है.
स्कैन के दौरान कई बार तेज़ आवाज़ें आती हैं जो इलेक्ट्रिक करंट की होती है. शोर से बचने के लिए हेडफ़ोन भी दिए जाते हैं.
शरीर की जांच के लिए बनी ये मशीन कई बार ख़तरनाक और जानलेवा भी साबित हो सकती है. यूं तो रूम में दाख़िल होने से पहले ये सुनिश्चित किया जाता है कि मरीज़ के पास कोई धातु की चीज़ ना हो लेकिन कई बार अनजाने में गड़बड़ी हो जाती है.
अगर शरीर के भीतर कोई स्क्रू, शार्पनेल या कारतूस के हिस्से भी हैं तो ख़तरनाक साबित हो सकते हैं. धातु के ये टुकड़े मैग्नेट बेहद तेज़ गति से खींचेंगे और शरीर को गंभीर चोट पहुंचेगी.
इसके अलावा मेडिकेशन पैच, ख़ास तौर से निकोटिन पैच लगाकर स्कैन रूम में जाना सही नहीं है क्योंकि उसमें एल्यूमीनियम के कुछ अंश होते हैं. स्कैनर चलने के वक्त ये पैच गर्म हो सकते हैं जिससे मरीज़ जल सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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