
कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां पिछले साल 10 दिसंबर को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लेकर आई थीं.
विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा की कार्यवाही निष्पक्ष होकर नहीं चला रहे हैं. उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का सभापति होता है.
उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग भारत के इतिहास में यह पहली बार था. हालांकि विपक्ष के महाभियोग के नोटिस को राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने ख़ारिज कर दिया था.
अब जब जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम उपराष्ट्रपति के पद से अचानक इस्तीफ़ा दे दिया तो कांग्रेस का रुख़ बदला-बदला सा दिखा. कांग्रेस पार्टी धनखड़ को लेकर सहानुभूति दिखा रही है.
धनखड़ के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस महासचिव और पार्टी के संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेशने एक्स पर लिखा है, ''धनखड़ जी ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ़ की लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज़ उठाई. उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते 'अहंकार' की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही के साथ संयम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. मौजूदा जी-2 सरकार के दौर में भी उन्होंने जहाँ तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की.''
जयराम रमेश ने लिखा है, ''वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे. लेकिन उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है. जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है. साथ ही, यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था.''
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जयराम रमेश उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े के पीछे कुछ गहरा कारण देख रहे हैं और मोदी सरकार को निशाने पर ले रहे हैं.
जगदीप धनखड़ के प्रति कांग्रेस की नरमी को लेकर पत्रकार रोहिणी सिंह ने लिखा है, ''हम कैसे वक़्त में रह रहे हैं. धनखड़ के सबसे पक्षपातपूर्ण, अनुचित और अशोभनीय आचरण का ख़ामियाजा भुगतने वाला विपक्ष अब उन्हें आंसुओं के साथ विदाई दे रहा है और उनके गुणों का बखान कर रहा है. दूसरी तरफ़ उन्हें सहारा देने वाली सरकार चुप है. खैर, चलो, छुटकारा मिल गया.''
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने लिखा है, ''जो कांग्रेस बात-बात पर जगदीप धनखड़ के व्यवहार की शिकायत करती थी और उन्हें पद से हटाने के लिए महाभियोग तक ले आई थी, आज धनखड़ के त्यागपत्र से व्यथित है. कहीं उनके त्यागपत्र के पीछे यह कारण तो नहीं कि वे विपक्ष के लिए अचानक आवश्यकता से अधिक उदार हो गए थे? जस्टिस वर्मा को हटाने का विपक्ष का प्रस्ताव बिना सरकार को बताए स्वीकार कर लिया और मल्लिकार्जुन खड़गे को ऑपरेशन सिंदूर पर पीएम मोदी पर हमला करने के लिए सदन में खुल कर मौक़ा दे दिया.''
जगदीप धनखड़ की नरमी के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है? अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा मानते हैं कि कांग्रेस की रणनीति आगे के लिए है.
विनोद शर्मा कहते हैं, ''राजनीति में दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. कांग्रेस को धनखड़ में उम्मीद नज़र आ रही है. धनखड़ साहब के लिए कांग्रेस का जो प्यार उमड़ रहा है, वो एक राजनीतिक रणनीति है. जिस तरह से बीजेपी का प्यार शशि थरूर के लिए उमड़ रहा है, जिन्हें जॉर्ज सोरोस का आदमी बताते थे, उसी तरह धनखड़ के प्रति कांग्रेस का प्यार उमड़ रहा है.''
हालांकि उपराष्ट्रपति रहते धनखड़ ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया था, जिससे लगे कि सरकार उनसे नाराज़ थी और विपक्ष ख़ुश था.
विनोद शर्मा कहते हैं, ''धनखड़ अपने पूरे कार्यकाल में एक आज्ञाकारी उपराष्ट्रपति रहे हैं. मैंने आज तक इतना आज्ञाकारी उपराष्ट्रपति भारत के संसदीय इतिहास में नहीं देखा. शंकर दयाल शर्मा तो एक बार उपराष्ट्रपति के तौर पर सदन में रो पड़े थे. शंकर दयाल शर्मा का कहना था कि वह निष्पक्ष होकर काम नहीं कर पा रहे हैं. इसके बाद कांग्रेस को माफ़ी मांगनी पड़ी थी. यानी शंकर दयाल शर्मा ने एक हद तक ही दबाव बर्दाश्त किया था. लेकिन धनखड़ तो हर दबाव का चुपचाप पालन करते रहे.''
धनखड़ ने ऐसा कुछ किया ही नहीं है तो कांग्रेस 'दुश्मन का दुश्मन' के रूप में उन्हें क्यों देख रही है?
विनोद शर्मा कहते हैं, ''संभव है कि धनखड़ एक या दो साल बाद रहस्य से पर्दा उठाएं. कांग्रेस इस संभावना को भी अपने हाथ से क्यों जाने दे? जैसे बीजेपी हेमंत बिस्वा शर्मा का इस्तेमाल कर रही है, वैसे ही कांग्रेस भी धनखड़ का इस्तेमाल करना चाहेगी. भले कुछ साल बाद ही ऐसा संभव हो. कांग्रेस धनखड़ को साधने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस मौक़े को भुनाना चाह रही है.''
अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' की राजनीतिक संपादक निस्तुला हेब्बार मानती हैं कि कांग्रेस में एक इम्प्रेशन है कि 'सरकार संकट में है' और उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े को वो इसी रूप में देख रही है.
हेब्बार कहती हैं, ''उपराष्ट्रपति न्यायपालिका को लेकर लगातार टिप्पणी कर रहे थे. किसानों पर बोल रहे थे. ज़रूरी नहीं है कि सरकार न्यायपालिका को लेकर जिस तरह की सोच रही थी, धनखड़ भी उसी लाइन पर थे. एक किस्म की असहजता तो थी. अब कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है तो उसके साथ ही सहानुभूति दिखाएगी, जिसे लेकर मोदी सरकार की असहजता थी. धनखड़ जी की सेहत बीच में ख़राब थी लेकिन वह ठीक हो गए थे. कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि आने वाले वक़्त में धनखड़ कुछ बोलेंगे.''
वरिष्ठ पत्रकार और संपादक सिद्धार्थ वरदराजनने लिखा है, ''जगदीप धनखड़ ने सेहत का हवाला देकर इस्तीफ़ा दिया है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी तारीफ़ में एक शब्द नहीं लिखा है. यहाँ तक कि उन्होंने शुभकामनाएं भी नहीं दीं. हालांकि इस दौरान पीएम मोदी ने अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस को जन्मदिन की बधाई दी है. हिन्दी का एक मुहावरा है, दाल में कुछ काला है.''
हालांकि सिद्धार्थ वरदराजन की इस टिप्पणी के कुछ देर बाद पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ''श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है. मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ.''
74 साल के धनखड़ अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति बने थे और इनका कार्यकाल 2027 तक था. धनखड़ ने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन ही इस्तीफ़ा दे दिया. धनखड़ ने अपने इस्तीफ़े में सेहत का हवाला दिया है. इसके बावजूद इस इस्तीफ़े को उनकी सेहत से अलग भी देखा जा रहा है. हाल ही में धनखड़ दिल्ली के एम्स अस्पताल में एंजियोप्लास्टी के लिए गए थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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