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पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के इतिहास और मौजूदा स्थिति के बारे में जानिए

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FAROOQ NAEEM/AFP via Getty Images शाहीन-1 मीडियम रेंज मिसाइल (फ़ाइल फ़ोटो)

भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के परमाणु हथियारों को लेकर चर्चा शुरू हुई थी.

दोनों ही देशों के पास परमाणु हथियार हैं, और जब भी इन पड़ोसी देशों के बीच तनाव बढ़ता है, पूरी दुनिया की नज़र उनके परमाणु ज़ख़ीरे पर भी जाती है.

हालांकि, इन हथियारों को लेकर दोनों देशों की नीति अलग-अलग है. पाकिस्तान की नीति है कि अगर उसे अपनी सुरक्षा पर ख़तरा महसूस हो, तो वह पहले परमाणु हथियार इस्तेमाल कर सकता है. इसे 'फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी' कहा जाता है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में हम पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के इतिहास और उसकी वर्तमान स्थिति पर एक नज़र डालते हैं.

  • परमाणु हथियार इस्तेमाल करने को लेकर भारत और पाकिस्तान की क्या नीति है?
  • ट्रंप पाकिस्तान, भारत और चीन को परमाणु हथियारों की होड़ रोकने पर राज़ी कर सकेंगे?
  • पाकिस्तानी कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंध: परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए इसका मतलब क्या है?
1. पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का इतिहास image Pictorial Parade/Hulton Archive/Getty Images पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू किया था

अमेरिकी थिंक टैंक फ़ेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफ़एएस) के मुताबिक़, पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम 1972 में ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने शुरू किया था. वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही बने.

साल 1974 में भारत के पहले परमाणु परीक्षण के बाद, तब के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने फ़ौरन एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि अब भारतीय उपमहाद्वीप सुरक्षित नहीं रह गया है और पाकिस्तान को भी परमाणु शक्ति बनना होगा.

उस समय उनका एक बयान ख़ासा चर्चित हुआ था,"अगर भारत बम बनाता है, तो हम घास या पत्ते खा लेंगे, भूखे भी सो जाएंगे, लेकिन हमें अपना बम बनाना होगा. हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है."

भारत के परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को नई गति मिली.

2. डॉ अब्दुल क़दीर ख़ान की एंट्री image Robert Nickelsberg/Getty Images पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को गति देने का श्रेय डॉक्टर अब्दुल क़दीर ख़ान को दिया जाता है

अविभाजित भारत के भोपाल में 1935 में जन्मे डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान ने 1960 में कराची विश्वविद्यालय से धातु विज्ञान (मेटालर्जी) की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने परमाणु इंजीनियरिंग से जुड़ी उच्च शिक्षा के लिए पश्चिम जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड का रुख़ किया.

1972 में उन्हें एम्स्टर्डम स्थित फ़िज़िकल डायनमिक्स रिसर्च लेबोरेटरी में नौकरी मिली. यह कंपनी भले ही छोटी थी, लेकिन इसका क़रार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी यूरेनको से था. बाद में यही काम डॉ. ख़ान के लिए परमाणु तकनीक और खुफ़िया नेटवर्क की दुनिया में एक अहम मोड़ साबित हुआ.

1974 में जब भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, उस समय डॉ. ख़ान फ़िज़िकल डायनमिक्स रिसर्च लेबोरेटरी में ही काम कर रहे थे.

अमेरिकी पत्रिका फ़ॉरेन अफ़ेयर्स में 2018 में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था, "इस घटना ने डॉ. ख़ान के भीतर मौजूद राष्ट्रवाद को झकझोर दिया और उन्होंने पाकिस्तान को भारत की बराबरी पर लाने की कोशिश शुरू कर दी."

इसी साल उन्होंने पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसियों के साथ संपर्क बनाना शुरू किया. पत्रिका के अनुसार, सीआईए और डच खुफ़िया एजेंसियों ने उन पर नज़र रखना शुरू कर दिया.

हालांकि उन्हें रोकने के बजाय यह तय किया गया कि उनकी जासूसी के ज़रिए पाकिस्तान के परमाणु प्रयासों और संभावित तस्करी नेटवर्क का पता लगाया जाए.

पत्रिका के मुताबिक़, "यह स्पष्ट नहीं है कि डॉक्टर ख़ान की जो जासूसी की जा रही थी उसके बारे में उन्हें पता था या नहीं. लेकिन दिसंबर 1975 में वह अचानक अपने परिवार सहित हॉलैंड छोड़कर पाकिस्तान लौट आए."

पाकिस्तान पहुंचने के बाद डॉ. ख़ान ने जर्मन डिज़ाइन के आधार पर सेंट्रीफ्यूज़ का एक प्रोटोटाइप तैयार किया. पुर्ज़ों की व्यवस्था के लिए उन्होंने कई यूरोपीय कंपनियों से संपर्क किया. इस दौरान उन्होंने बार-बार यह दावा किया कि उनके काम के पीछे कोई सैन्य उद्देश्य नहीं है.

3. 1998 में परमाणु परीक्षण image BANARAS KHAN/AFP via Getty Images पाकिस्तान ने दावा किया कि1998 में उसने बलूचिस्तान क्षेत्र में सफल परमाणु परीक्षण किया

फ़ेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफएएस) के मुताबिक़, 1985 में पाकिस्तान ने हथियार-योग्य यूरेनियम के उत्पादन की सीमा पार कर ली थी.

28 मई 1998 को पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि उसने पाँच सफल परमाणु परीक्षण किए हैं. पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन के अनुसार, इन परीक्षणों से रिक्टर पैमाने पर 5.0 तीव्रता का भूकंपीय कंपन दर्ज हुआ और कुल विस्फोट क्षमता लगभग 40 किलोटन (टीएनटी के बराबर) आंकी गई.

डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान ने दावा किया कि इन परीक्षणों में एक डिवाइस "बूस्टेड फ़िज़न डिवाइस" थी, जबकि बाक़ी चार सब-किलोटन (एक किलोटन से कम क्षमता वाले) परमाणु उपकरण थे.

इसके बाद, 30 मई 1998 को पाकिस्तान ने एक और परमाणु परीक्षण किया, जिसकी अनुमानित शक्ति 12 किलोटन बताई गई. ये सभी परीक्षण बलूचिस्तान क्षेत्र में किए गए, जिससे पाकिस्तान के कुल घोषित परमाणु परीक्षणों की संख्या छह हो गई.

4. विवादों में रहे डॉ. ख़ान image PRESS INFORMATION DEPARTMENT/AFP via Getty Images डॉक्टर अब्दुल क़दीर ख़ान पर परमाणु सामग्री और तकनीक को अन्य देशों में फैलाने का आरोप लगा

पाकिस्तान अब आधिकारिक रूप से एक परमाणु शक्ति बन चुका था, लेकिन साल 2004 में डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान वैश्विक परमाणु प्रसार से जुड़े एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गए.

उन पर परमाणु सामग्री और तकनीक को अन्य देशों में फैलाने (प्रसार) का आरोप लगा. इस मामले में पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी डॉ. ख़ान पर उंगली उठाई थी.

टेलीविज़न पर प्रसारित एक संदेश में डॉ. ख़ान ने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया को परमाणु तकनीक बेचने में भूमिका निभाई है.

हालांकि, बाद में उन्होंने इस बयान से मुकरते हुए कहा कि उन्होंने यह दबाव में माना था. साल 2008 में ब्रिटिश अख़बार 'द गार्डियन' को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. ख़ान ने दावा किया कि, 'उन पर राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ का दबाव था, और इसी वजह से उन्होंने परमाणु तकनीक बेचने की बात स्वीकारी.'

इसके साथ ही उन्होंने परमाणु प्रसार के मामले में इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी को जांच में सहयोग देने से भी इनकार कर दिया था.

5. कितने परमाणु हथियार image BBC किसके पास कितने परमाणु हथियार

फ़िलहाल, अगर पाकिस्तान के मौजूदा परमाणु हथियारों की बात की जाए, तो इसकी कोई आधिकारिक संख्या उपलब्ध नहीं है. हालांकि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) और अमेरिकन फ़ेडरेशन ऑफ साइंटिस्ट्स जैसे संगठन इनके अनुमानित आंकड़ों का आकलन करते हैं.

सिपरी की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान के पास लगभग 170 परमाणु हथियार हैं.

वहीं विश्लेषकों का मानना है कि सवाल सिर्फ संख्या का नहीं, बल्कि इन आंकड़ों की विश्वसनीयता और रणनीतिक महत्व का भी है. परमाणु हथियारों के मामले में यह भी पूछा जाता है कि क्या सिर्फ़ संख्या से ही किसी देश की ताक़त का आकलन किया जा सकता है?

बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा से बातचीत में इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कन्फ्लिक्ट स्टडीज़ के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. मुनीर अहमद कहते हैं, ''अमेरिकन फ़ेडरेशन ऑफ़ साइंटिस्ट्स ने ताज़ा आकलन में भारत के पास 180 और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियारों का अनुमान लगाया है. लेकिन वास्तविकता में परमाणु हथियारों के मामलों में संख्या बहुत मायने नहीं रखती है. अगर बात इनके इस्तेमाल तक पहुंची तो बहुत कम हथियारों से ही बहुत भारी तबाही की जा सकती है."

6. पाकिस्तान की परमाणु नीति image BBC

पाकिस्तान की कोई लिखित या स्पष्ट परमाणु नीति नहीं है. विश्लेषक मानते हैं कि इसका मुख्य कारण है कि वह भारत की 'परंपरागत सैन्य प्रभुत्व' या कन्वेंशनल मिलिट्री सुपिरियरिटी को रोकना चाहता है.

पाकिस्तान की परमाणु नीति पर बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिफ़ेंस स्टडीज़ से जुड़े और रक्षा और परमाणु मामलों के विशेषज्ञ राजीव नयन से बातचीत की थी.

राजीव नयन कहते हैं कि, 'जिस देश की भी फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी है उसमें बहुत अस्पष्टता है.'

राजीव नयन कहते हैं, "फ़र्स्ट यूज़ नीति की सबसे बड़ी अस्पष्टता ये है कि किस स्थिति में परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाएगा. पाकिस्तान ये तो कहता है कि हम परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ये कभी स्पष्ट नहीं किया है कि इसे इस्तेमाल करने का थ्रेशोल्ड या सीमा क्या होगी. ये भी स्पष्ट नहीं है कि शुरुआत किस तरह के हथियार के इस्तेमाल से की जाएगी. क्या छोटा वेपन इस्तेमाल किया जाएगा जिसे बैटलफ़ील्ड वेपन कहा जाता है या फिर स्ट्रेटेजिक वेपन इस्तेमाल किया जाएगा."

7. चेन ऑफ कमांड image Getty Images

पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के लिए जो चेन ऑफ़ कमांड है उसमें सबसे ऊपर नेशनल कमांड अथॉरिटी (एनसीए) है. इसका ढांचा भी लगभग भारत जैसा ही है.

इसके चेयरमैन प्रधानमंत्री होते हैं और इसमें राष्ट्रपति, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, चेयरमैन ऑफ़ ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ (सीजेसीएससी), सेना, वायुसेना और नौसेना के प्रमुख और स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीज़न के महानिदेशक होते हैं.

एनसीए के तहत स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीज़न है जिसका मुख्य काम परमाणु एसेट का प्रबंधन और एनसीए को तकनीकी और ऑपरेशनल सलाह देना है.

वहीं स्ट्रेटेजिक फ़ोर्सेज़ कमांड सीजेसीएससी के नीचे काम करती है और इसका काम परमाणु हथियारों को लॉन्च करना है.

ये वॉरहेड ले जाने में सक्षम मिसाइलों जैसे शाहीन और नस्र मिसाइलों का प्रबंधन करती है और एनसीए से आदेश मिलने पर परमाणु हथियार दाग सकती है.

भारत के साथ हालिया तनाव के दौरान भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाने की रिपोर्टें आईं थीं. हालांकि भारत के साथ संघर्ष विराम की घोषणा के बाद कहा गया था कि पाकिस्तान ने ऐसी बैठक नहीं बुलाई.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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