
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शुक्रवार को अलास्का में मिलने वाले हैं. भारतीय समयानुसार ये मुलाक़ात रात 12 बजे के बाद होने वाली है.
इस बैठक में दोनों के मक़सद अलग-अलग हैं और वे रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने पर बातचीत करेंगे.
पुतिन का रुख़ साफ़ है- वह यूक्रेन का इलाक़ा हासिल करना चाहते हैं. वहीं, ट्रंप ख़ुद को दुनिया में शांति लाने वाले नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं.
दोनों नेताओं को इस मुलाक़ात से और भी फ़ायदे दिख सकते हैं. पुतिन के लिए यह वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीतिक छवि बहाल करने का मौक़ा हो सकता है. ट्रंप का असली मक़सद समझना मुश्किल है, क्योंकि उन्होंने हाल में पुतिन के बारे में अलग-अलग तरह के बयान दिए हैं.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
मीटिंग से पुतिन की उम्मीदेंस्टीव रोज़नबर्ग, बीबीसी रूस संपादक

इस मीटिंग से पुतिन की पहली चाहत वही है, जो उन्हें पहले ही मिल चुकी है- मान्यता.
पुतिन को दुनिया के सबसे ताक़तवर देश, अमेरिका से यह मान्यता मिली है कि पश्चिमी देशों के पुतिन को अलग-थलग करने के प्रयास नाकाम रहे हैं. ट्रंप और पुतिन के बीच हो रही उच्च-स्तरीय बैठक और रूस की ओर से संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस का ऐलान इस बात का सबूत है.
रूस अब कह सकता है कि वह फिर से वैश्विक राजनीति की मुख्यधारा में लौट आया है.
रूस के अख़बार मॉस्कोव्स्की कोम्सोमोलत्स ने इस हफ़्ते की शुरुआत में तंज कसते हुए लिखा, "अलग-थलग किए जाने की बात यहीं ख़त्म."
पुतिन ने न सिर्फ़ अमेरिका और रूस के बीच मीटिंग तय करवाई है, बल्कि इसके लिए एक अहम जगह भी चुनी है- अलास्का.
सुरक्षा के नज़रिए से, अलास्का का मुख्य भूभाग रूस के चुकोतका इलाक़े से सिर्फ़ 90 किलोमीटर दूर है. पुतिन यहां (अलास्का) 'विरोधी' देशों के ऊपर से गुज़रे बिना पहुंच सकते हैं.
दूरी की बात करें तो, यह यूक्रेन और यूरोप से बहुत दूर है. यह रूस की इस योजना के अनुकूल है कि यूक्रेन और यूरोपीय नेताओं को अलग रखा जाए और सीधे अमेरिका से बात हो.
इसमें ऐतिहासिक प्रतीकात्मकता भी है. 19वीं सदी में रूस ने अलास्का को अमेरिका को बेच दिया था. अब रूस इसी बात का सहारा लेकर कह रहा है कि 21वीं सदी में भी सीमाएं बदली जा सकती हैं.
ट्रंप और पुतिन की मुलाक़ात से जुड़ीं अहम ख़बरें-
- भारत को अमेरिका की चेतावनी: ट्रंप-पुतिन वार्ता नाकाम हुई तो बढ़ेंगे टैरिफ़
- ट्रंप-पुतिन की अलास्का में मुलाकात, भारत के लिए नया मोड़ या नई मुश्किल?
- अलास्का में मिलेंगे ट्रंप और पुतिन, जो कभी रूस का हिस्सा था
- ट्रंप की भारत पर सख़्ती की 'असली' वजह रूसी मीडिया तेल नहीं, कुछ और बता रहा
मॉस्कोव्स्की कोम्सोमोलत्स ने लिखा: "अलास्का साफ़ उदाहरण है कि देश की सीमाएं बदल सकती हैं और बड़े इलाक़े का मालिकाना हक़ भी बदल सकता है."
लेकिन पुतिन सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय मान्यता और प्रतीकों से संतुष्ट नहीं हैं, वह जीत चाहते हैं.
वह लगातार इस बात पर अड़े हैं कि रूस, यूक्रेन के चार क्षेत्रों (दोनेत्स्क, लुहान्स्क, ज़ापोरिज़िया और खेरसॉन) में कब्ज़ा किए सभी इलाक़ों को अपने पास रखे और यूक्रेन, उन हिस्सों से भी हट जाए जो अभी उसके नियंत्रण में हैं.
यूक्रेन इसे स्वीकार नहीं करेगा. राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की कहते हैं, "यूक्रेन के लोग अपना इलाक़ा क़ब्ज़ा करने वाले को नहीं देंगे."
रूस यह अच्छी तरह से जानता है. लेकिन अगर उसे ट्रंप का समर्थन मिल जाता है तो शायद अमेरिकी राष्ट्रपति यूक्रेन को दी जाने वाली अमेरिकी मदद रोक देंगे. इस बीच, रूस और अमेरिका आपसी रिश्ते और आर्थिक सहयोग बढ़ाने में लग जाएंगे.
हालाँकि, एक और संभावना है.
रूस की अर्थव्यवस्था दबाव में है. बजट घाटा बढ़ रहा है. तेल और गैस निर्यात से होने वाली कमाई घट रही है. अगर आर्थिक मुश्किलें पुतिन को युद्ध ख़त्म करने की तरफ धकेलती हैं, तो रूस समझौता कर सकता है.
फ़िलहाल इसका कोई संकेत नहीं है. रूसी अधिकारी लगातार कहते आ रहे हैं कि युद्ध के मैदान में बढ़त रूस के पास है.
- भारत को अमेरिका की चेतावनी: ट्रंप-पुतिन वार्ता नाकाम हुई तो बढ़ेंगे टैरिफ़
- अलास्का में मिलेंगे ट्रंप और पुतिन, जो कभी रूस का हिस्सा था
- ट्रंप-पुतिन के बीच अलास्का में होने वाली मुलाक़ात पर यूरोपीय नेताओं का क्या कहना है
एंथनी जर्चर, बीबीसी के उत्तरी अमेरिका संवाददाता
2024 में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने वादा किया था कि यूक्रेन युद्ध ख़त्म करना आसान होगा और वे इसे कुछ दिनों में कर देंगे.
यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है. इसके कारण जनवरी में व्हाइट हाउस में लौटने वाले ट्रंप कभी यूक्रेनियों से तो कभी रूसियों से नाराज़गी जताते रहे हैं.
फरवरी में व्हाइट हाउस की एक बैठक में उनकी ज़ेलेंस्की से बहस हो गई थी. इसके बाद अमेरिका ने कुछ समय के लिए यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य मदद और ख़ुफ़िया जानकारियां साझा करना बंद कर दी थी.
हाल के महीनों में वे (ट्रंप) पुतिन की जिद और आम नागरिकों पर हमले को लेकर ज़्यादा मुखर हो गए हैं. उन्होंने रूस और उसके साथ कारोबार करने वाले अन्य देशों पर नए प्रतिबंध लगाने के लिए कई समय-सीमाएं तय कीं लेकिन उन्हें कई बार पीछे भी हटना पड़ा था.
अब वे रूसी राष्ट्रपति को अमेरिकी ज़मीन पर बुला रहे हैं और 'ज़मीन के बदले शांति' जैसी बातें कर रहे हैं. ट्रंप की पहल से यूक्रेन को डर है कि उसे अपनी कुछ ज़मीन छोड़नी पड़ सकती है.
इसलिए पुतिन के साथ शुक्रवार की बातचीत में ट्रंप क्या चाहते हैं, यह उनकी बदलती बातों और फैसलों की वजह से साफ़ समझना मुश्किल है.
इस हफ़्ते ट्रंप ने बैठक से पहले अपनी उम्मीदों को कम करने की कोशिश की- शायद यह मानते हुए कि जब युद्ध में शामिल सिर्फ़ एक पक्ष वार्ता में मौजूद हो, तो किसी बड़े नतीजे की संभावना सीमित होती है.
सोमवार को उन्होंने कहा कि यह मीटिंग एक 'फील-आउट' मीटिंग होगी. उनका कहना था कि वे 'शायद पहले दो मिनट में ही' जान जाएंगे कि क्या वे रूसी नेता के साथ कोई समझौता कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, "मैं उठकर कह सकता हूँ- गुड लक और बस वहीं ख़त्म. या मैं कह सकता हूँ कि यह मामला (रूस-यूक्रेन युद्ध) सुलझने वाला नहीं है."
मंगलवार को, व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने इस मैसेज को दोहराते हुए बैठक को 'लिसनिंग सेशन' कहा. लेकिन इस हफ़्ते के बीच में, ट्रंप एक बार फिर समझौते की संभावना की बात करने लगे. उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि ज़ेलेंस्की और पुतिन दोनों शांति चाहते हैं.
ट्रंप के मामले में, अक़्सर अप्रत्याशित उम्मीद रखना ही बेहतर होता है. बुधवार को ज़ेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं ने उनसे बातचीत की ताकि वे पुतिन के साथ ऐसा समझौता न कर लें जिसे यूक्रेन स्वीकार न कर पाए.
हालाँकि, इस पूरे साल एक बात साफ़ रही है कि ट्रंप यह मौका चाहेंगे कि वे ख़ुद को युद्ध ख़त्म करवाने वाला शख़्स कह सकें.
अपने उद्घाटन भाषण में ट्रंप ने कहा था कि उनके लिए सबसे गर्व की बात 'पीसमेकर' होने की होगी. यह कोई राज़ नहीं कि वे अंतरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार पाना चाहते हैं.
गुरुवार को ओवल ऑफ़िस में ट्रंप ने दावा किया कि जनवरी में पद संभालने के बाद से उन्होंने दुनिया के कई संघर्ष सुलझा दिए हैं. लेकिन जब यूक्रेन युद्ध के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने मान लिया कि यह एक कठिन चुनौती है.
उन्होंने कहा, "मुझे लगा था कि यह सबसे आसान होगा. दरअसल, यह सबसे मुश्किल निकला."
ट्रंप बारीकियों में उलझने वाले इंसान नहीं हैं. लेकिन अगर अलास्का में होने वाली बातचीत के दौरान उन्हें यह दावा करने का मौक़ा मिले कि वो शांति की दिशा में आगे बढ़े हैं, तो वे ज़रूर करेंगे.
पुतिन, शायद ऐसा तरीका ढूँढें जिससे ट्रंप ऐसा दावा कर सकें- बेशक, रूस की शर्तों पर.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
- ट्रंप का टैरिफ़: इस चुनौती से निपटने के लिए भारत के पास अब भी हैं ये विकल्प
- ट्रंप और पुतिन की अगले सप्ताह मुलाक़ात, रूस-यूक्रेन जंग रोकने पर क्या बनेगी बात?
- रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन, फिर भी ट्रंप के निशाने पर भारत
- 'ट्रंप इसी राह पर चले तो...', अमेरिकी टैरिफ़ से क्या भारत और चीन आएंगे क़रीब?
You may also like
नींबू का पौधा सूखा-सूखा लग रहा है? अपनाओ येˈ 5 देसी उपाय और तैयार हो जाओ बंपर फसल के लिए
PL राज: हिंदी सिनेमा के अनसुने नायक की कहानी
नेपाल में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर मनाया गया स्वतंत्रता दिवस समारोह
'शोले' में अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर बनने के लिए असरानी ने कैसे ली थी हिटलर से प्रेरणा?
हरियाणा लाडली पेंशन योजना: हर महीने मिलेंगे 3000 रुपये, जानिए कैसे उठाएं फायदा!