राजेश पाठक
देश और धर्म की रक्षा आचरण से भी होती है। समाज और जीवन को दोषरहित-अभाव रहित बनाने में योगदान से भी होती है, वो भले किसी रूप में हो। और सचिन तेंदुलकर ने अपने स्वयं के उदाहरण से दिखाया कि सज्जन और सफल होना काफी नहीं, सामाजिक-राष्ट्रीय चरित्र की झलक भी अपने आचरण में दिखनी चाहिए। देश के वनवासी क्षेत्र किन चुनौतियों के कारण आज सम्पूर्ण देश के लिए खतरा बन गए हैं, इस पर अब कोई बहस बाकी नहीं। और सचिन तेंदुलकर ने राजनीति से दूर इससे निपटने में अपनी भूमिका निश्चित करी। माई देशी फाउंडेशन के साथ मिलकर उनकी संस्था सचिन फाउंडेशन जनजाति बाहुल्य दंतेवाड़ा (बस्तर) से लगे गांवों में 50 नए खेल-मैदान तैयार करने जा रही है, जबकि 20 पहले ही पूरे हो चुके हैं। इस योजना के अंतर्गत 13 विभिन्न खेलों की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की इस पहल ने बच्चों में उमंग की लहर पैदा कर दी है। देश के सूदूर वन-क्षेत्र के जनजाति बंधुओं को माओवाद के चंगुल से निकाल सामाजिक-जीवन की मुख्यधारा में लाने के लिए अनेक योजनाओं पर काम चल रहा है, उनमें से एक यहां के बच्चों को खेलकूद से जोड़ना है।
अमित शाह ने यूं ही नहीं देश को माओवाद से सदा के लिए मुक्त करने का संकल्प लिया है। कुछ वर्ष पूर्व जनजाति बाहुल्य नागालैंड के तत्कालीन गवर्नर ने भारत सरकार को सचेत करते हुए एक रिपोर्ट भेजी, जो कि इन क्षेत्रों की अंदर की असली कहानी बयान करती है । इस रिपोर्ट में उल्लेख था, ये क्षेत्र खनिज संपदा से समृद्ध हैं, जहां देश का 98.5 फीसद क्रोमाइट, 77 फीसद कोबाल्ट, 95 फीसद निकिल और अन्य खनिज पाए जाते हैं। विदेश पोषित माओवादी और अन्य देशविरोधी तत्व नहीं चाहते कि इनके उत्खनन के लिए सरकारी एजेंसियां यहां फटकें भी। इसलिये इस क्षेत्र को सदैव हिंसा की आग में झोंके रखना उनके लिए परम कर्तव्य के पालन करने जैसा है।
2007 में देश की एक ख्याति पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट से देश को चौंका दिया था कि कैसे चर्च , माओवादी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां देश की संपदा को हजम करने में जुटी हैं। आगे चल कर धर्मांतरण और इस लूट के विरुद्ध स्थानीय जनजाति-समाज को सेवा-शिक्षा के कार्य से जागृत करने की कीमत इसी समाज के एक हिन्दू संन्यासी लक्ष्मणानन्द सरस्वती को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। उन पर लगातार 10 हमले हुए और ये तब जाकर रुके जब उनकी अपने चार अन्य शिष्यों के साथ जन्माष्टमी वर्ष 2008 में हत्या कर दी गई। हत्या की साजिश ईसाई गतिविधियों के केंद्र ओडिशा के कंधमाल जिले में रची गई थी। जांच में ईसाई प्रचारक और नक्सल-कार्यकर्ता कुल 8 लोग शामिल पाए गए, जिन्हें कोर्ट ने सजा सुनाई।
धर्म आधारित सदाचरण के आधार पर खान-पान-स्नान आदि में सीमित कर केवल स्वयं के शरीर को दोष रहित कर लेने में परमार्थ को देखना अधूरे निष्कर्ष में आबद्ध कर लेने जाने जैसा है। संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत कहते हैं, धर्म केवल पूजा गृह नहीं। धर्म केवल भोजन गृह भी नहीं। हमारी गलती ये हो गई पिछले कुछ वर्षों में हमने धर्म को अपने पूजा घर में , भोजन घर में बंदिश कर दिया। धर्म का स्पष्ट वर्णन हमारी परंपरा में है । धर्म के चार पैर हैं: सत्य, करुणा, शुचिता , तपस। जिसको भी आप धर्म मानते हो उसकी चौखट में बैठना चाहिए। इसके बाहर है तो वो अधर्म है।
जम्मू का चर्चित किस्सा है। एक हरिजन बंधु ने चर्च में शादी की, क्योंकि पादरी उसके घर पर आता-जाता था। फिर मंदिर में दिक्कतें भी आ रहीं थी। और वो फिर भी हिन्दू बना हुआ है। ये ऐसा ही न चलते रहे, आज देश में ऐसे अनेक वैदिक संस्थान संचालित हैं , जिसमें सभी जाति के जिज्ञासु पुरोहित कर्म का प्रशिक्षण पाते हैं। विश्व हिन्दू परिषद ने अनुसूचित जाति- जनजाति के 5000 से ऊपर पुरोहितों को प्रशिक्षित किया है , जिनमें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से 2000 से भी अधिक हैं।. आज ये अपने-अपने ग्रामों- बस्तियों में पौरोहित्य कर्म को संपन्न कर धर्मान्तरण को रोकने में अपना योगदान दे रहें हैं। इस क्षेत्र में मार्ग प्रशस्त करने वाली सबसे उलेखनीय घटना संघ के प्रचारक श्री माधवन की पहल पर कांची कामकोटि के दिवंगत शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती द्वारा की गई। श्री शंकराचार्य ने गुरुवायुर में चातुर्मास के समय विभिन्न जातियों के 29 लोगों को पुरोहिताई की शिक्षा दी व प्रशिक्षण वर्ग के आखिर दिन 4 हजार लोगों की जनसभा में सबके सामने उन्हें रुद्राक्ष की माला सहित कांची कामकोटि पीठ की अधिकृत मुद्रा से अंकित प्रमाणपत्र प्रदान किया। अब तो इस प्रकार के काम देश के विभिन्न स्थानों में धर्मरक्षा न्यास के माध्यम से निरंतर होते रहते हैं।
शेर भले अपनी ताकत के बल पर इकट्ठे न चला करते हों। लेकिन कई बार जंगली सूअर मिलकर उसका भी शिकार कर लेते हैं। जात-पात में बंटकर अकेले शेर बने रहने की कीमत हमने पाकिस्तान, बांग्लादेश और पिछले दिनों मुर्शिदाबाद में चुकाई है। अच्छे काम और जरूरी काम में भेद को समझ कर भी इस बात को समझा जा सकता है। अकेले व्यक्ति का सक्षम होना या पौरुष युक्त हो जाना अच्छा है। लेकिन काफी नहीं, सम्पूर्ण समाज के द्वारा संगठित रूप से इन गुणों को अर्जित करने की दिशा में बढ़े कदम ही देश के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करते हैं। इस जरूरी काम के कई प्रकार हो सकते हैं। लेकिन इसका एक प्रकार क्या हो सकता है, सचिन तेंदुलकर ने अपने इस कदम से देश को ये बताया है।
देशभक्ति कोई पदवी नहीं, ये सामान्य गुण की तरह एक नागरिक के अंदर अपेक्षित है। फिर ये बोलकर नहीं, कर के दिखाने वाला काम है। और ये कोई ऐसा काम भी नहीं जो केवल सीमा पर खड़े होकर ही सम्पन्न हो। देश का संकट , मेरे परिवार का संकट, ये समाज मेरा , मैं इस समाज का इस एकत्व की भावना के साथ जीवनयापन, हिन्दू के नाते विचार, साथ ही आचरण ही देशभक्ति की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है। कुछ और नहीं, सदियों से मिले संचित अनुभव का ये सदा स्मरण में रखने वाला निष्कर्ष है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद
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