जेफरीज के ग्लोबल इक्विटी स्ट्रैटजिस्ट क्रिस वुड का मानना है कि अमेरिकी शेयर बाजार आने वाले समय में बाकी देशों के बाजारों से पीछे रह सकता है. इसकी वजह है कमजोर होता अमेरिकी डॉलर और ट्रेजरी बॉन्ड मार्केट में गिरावट. उनका कहना है यह सब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी की वजह से हो रहा है.अपनी पॉपुलर रिपोर्ट 'Greed & Fear' में क्रिस वुड ने लिखा- 'अमेरिकी स्टॉक्स अभी भी 19.2 के पीई रेशियो पर ट्रेड कर रहे हैं, जो महंगे माने जाते हैं. ऐसे में ग्लोबल इन्वेस्टर्स को अमेरिका में निवेश कम करके यूरोप, चीन और भारत जैसे देशों की ओर रुख करना चाहिए.' अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत खतरे मेंवुड ने ये भी कहा- 'अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत यही थी कि वो दुनिया की रिजर्व करेंसी छाप सकता है, लेकिन अब ये भी खतरे में दिख रही है.' दरअसल, दुनिया के ज्यादातर देशों और बड़ी-बड़ी कंपनियों के बीच जो लेन-देन होता है, वो डॉलर में होता है. इसलिए डॉलर को 'दुनिया की रिजर्व करेंसी' कहा जाता है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हाल ही में हमने देखा कि अमेरिका का शेयर बाजार गिरा, साथ ही डॉलर और ट्रेजरी बॉन्ड्स में भी बिकवाली हुई - जो साफ इशारा कर रही है कि मंदी की आहट महसूस की जा रही है.' वुड बोले - पिछले 30 सालों में कभी ऐसा नहीं देखाअमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स को दुनियाभर में सबसे सुरक्षित निवेशों में गिना जाता है. जब भी दुनिया में कोई बड़ा संकट आता है, तो निवेशक घबरा जाते हैं और अपना पैसा सुरक्षित जगह पर लगाने लगते हैं. ऐसे में अक्सर उनकी पहली पसंद होती है: अमेरिका के सरकारी बॉन्ड्स और डॉलर. नतीजा? ट्रेजरी यील्ड्स (यानि ब्याज दरें) नीचे आ जाती हैं और डॉलर मज़बूत हो जाता है. लेकिन इस बार कुछ अलग ही हुआ.वुड का कहना है कि पिछले 30 सालों में ऐसा कभी नहीं देखा कि जब बाजार में डर फैला हो, तब डॉलर कमजोर हो गया हो. वो याद दिलाते हुए बताते हैं- 1997 का एशियाई आर्थिक संकट, फिर LTCM नाम की एक बड़ी इन्वेस्टमेंट फर्म का डूबना, 2008 की सबप्राइम क्राइसिस और 2020 की कोरोना महामारी- इस सब के दौरान जब बाजार में डर का माहौल बना, तो निवेशकों ने तेजी से डॉलर खरीदा. इसका मतलब कि डॉलर मजबूत हो गया, क्योंकि लोग इसे सुरक्षित मानते थे.लेकिन अब हालात उलटे हैं. हाल ही में ET को दिए इंटरव्यू में ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के CIO एस. नरन ने भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि जब ग्लोबल स्टॉक मार्केट में गिरावट आई, खासकर ट्रंप के टैरिफ फैसलों के बाद तब निवेशकों ने डॉलर या बॉन्ड की तरफ भागने के बजाय, सोने को चुना. उनके शब्दों में -'अबकी बार अमेरिकी बॉन्ड की यील्ड्स बढ़ रही हैं. इसका मतलब है कि लोग अब ट्रेजरी को उस पुराने भरोसेमंद 'सेफ हेवन' के रूप में नहीं देख रहे. पहले जब बाजार गिरते थे, लोग डॉलर और ट्रेजरी में पनाह लेते थे. लेकिन इस बार तो सोना ही सबसे भरोसेमंद साथी बन गया है और यही सबसे ज्यादा चिंताजनक बात है.' बाजार से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें.... 4 दिन में 4,700 अंक चढ़ा सेंसेक्स, क्या यह तेजी टिकेगी? एक्सपर्ट्स से जानें बाजार का अगला कदम
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