आज के चिकित्सा विज्ञान में इतनी तरक्की करने के बावजूद भी कुछ बिमारियों का पक्का और अचूक इलाज़ नहीं है। चिकित्सा विज्ञान से हटकर एक पद्यति और भी है जिस पद्यति में लगभग तमाम बीमारियों का हल मौज़ूद है, और वो पद्यति है योग या प्राणायाम।
योग में लगभग हर बिमारी का इलाज़ संभव है। योग में कई तरह के प्राणायाम मौज़ूद है जिनसे लगभग हर तरह की बिमारियों का निवारण है।
उन प्राणायामों में से एक प्राणायाम है, भुजंगासन। भुजंगासन से लगभग हर वो बिमारी ठीक होती है जिनका सम्बन्ध फेफड़ों, रीढ़ की हड्डी, छाती, पेट आदि हिस्सों से है।
भुजंगासन करने का तरीकापेट के बल लेटकर पाँवों को एक-दूसरे से मिलाते हुए, टांगें सीधी करें। पैरों के तलुवे ऊपर की ओर रहें। हथेलियाँ छाती के बगल में फर्श पर टिकी रहें और भुजाएँ कोहनी पर से मुड़ी रहें। इसके बाद सिर, फिर गर्दन, फिर सीने, फिर पेट को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ।
इसमें पैरों की उंगलियों से नाभि तक का हिस्सा जमीन से समान रूप से सटा रहना चाहिए और गर्दन को तानते हुए सिर धीरेधीरे अधिक से अधिक पीछे की ओर उठाएँ। दृष्टि को आकाश या छत की ओर स्थिर रखें।
आसन पूरा तब होगा जब आपका सिर, गर्दन, छाती और कमर से ऊपर का भाग (उध्वगि) सर्प के फण के समान ऊँचा हो जाय और पीठ पर नीचे की ओर, नितम्ब और कमर की जोड़ पर, काफी खिचाव और जोर मालूम पड़ने लगे।
ऐसी स्थिति में आकाश को देखते हुए 2-3 सैकण्ड तक साँस रोकिए। साँस रोक नहीं सकें तो श्वास-प्रश्वास सामान्य रूप से लें। इसके बाद पहले छाती को जमीन पर रखें और माथे से जमीन को छुएँ और बायाँगाल जमीन पर लगाते हुए शरीर को ढीला छोड़ दें। भुजंगासन को तीन बार दुहरा लेना पर्याप्त है।

शुरू की कठिनाई के बाद इस आसन को करते समय हथेलियों को सहारे के लिए उपयोग न करते हुए उन्हें जमीन से ऊपर रखें। इसे तीन बार तक करें। पूर्णरूप से सफलता प्राप्त होने के उपरान्त सिर उठाते समय साँस लें और नीचे करते समय साँस छोड़े।
कृपया ध्यान दे : विशेषयह आसन स्त्री-पुरुष के लिए समान रूप से उपकारी है तथा बाल, युवा, वृद्ध रोगी तथा नीरोग सभी कर सकते हैं। प्रतिदिन दो मिनट करें।
हर्निया के रोगी को यह आसन कदापि नहीं करना चाहिए। गर्भवती स्त्रियाँ यह आसन न करें। जो व्यक्ति धनुरासन न कर सकें उन्हें धनुरासन का लाभ सपसिन से ही मिल जाता है। तीन-चार मिनट सुबह-शाम करने से गैस में तुरन्त लाभ होता है।
भुजंगासन के बेहतरीन फायदेपूरी रीढ़ की हड्डी का तनाव दूर होकर लचीली बनने के साथ-साथ छाती और पीठ की तमाम खराबियाँ दूर होकर उनका विकास होता है। रीढ़ की हड्डी में यदि किसी प्रकार टेढ़ापन आ गया हो तो यह आसन नसों एवं मांसपेशियों को प्रभावित किये बिना ही उसे ठीक कर देता है।
मेरुदण्ड की कोई हड्डी या कशेरुका अपने स्थान से हट गई हो तो भुजंगासन के अभ्यास से अपने स्थान पर वापस आ जाती है।
इस आसन से कमर पतली तथा सीना चौड़ा होता है। यह आसन बढ़े हुए पेट तथा बैडोल कमर को ठीक अनुपात में लाकर उन्हें सुडौल तथा आकर्षक बनाता है। कद बढ़ता है। मोटापा दूर होकर सम्पूर्ण शरीर सुन्दर एवं कान्तिमान हो जाता है।
युवक और युवतियाँ इस आसन का अभ्यास कर अपने व.क्षस्थल को समुन्नत बना सकते हैं। युवाओं के शारीरिक कमजोरी के रोग दूर करने में यह अकेला आसन विशेष प्रभावशाली है।
पीठ, छाती, हृदय, कंधे, गर्दन, भुजाएँवपेशियाँ शक्तिशाली बनती हैं। टान्सिल वगले की ग्रन्थियाँ पुष्ट होती हैं। गण्डमाला तथा गुल्म आदि के रोग नहीं होते। गर्दन, कमर, रीढ़ की हड्डी, पीठ आदि का दर्द दूर होता है।
नाड़ी तंत्र शक्तिशाली बनता है। ज्ञान तन्तु पुष्ट होते हैं। आधे सिर का दर्द दूर होता है।
गुर्दो का कार्य विशेष रूप से सुधर जाता है। पेडू की नसें स्वस्थ होती हैं। थकावट दूर होती है।
हृदय रोग में विशेष लाभ होता है। हृदय मजबूत होता है जिससे पूरे शरीर मे रक्त का संचरण अच्छे से होता है।
इस आसन के अभ्यास से पेट के रोग जैसे कब्ज, मन्दानि दूर होती है। गैस बनने की शिकायत में विशेष लाभ होता हैं। उदर की पेशियाँ व आंतें शक्तिशाली बनती हैं।
फेफड़े मजबूत बनते हैं। खाँसी, दमा, ब्रोंकाइटिस, इयोसिनोफिलिया आदि रोगों से भय नहीं रहता और ये रोग पहली अवस्था के हो भी गये हों तो अवश्य ही दूर हो जाते हैं। फेफडों से हवा निकलने के छेद भली प्रकार स्वस्थावस्था प्राप्त करते हैं।
महिलाओं के लिए आसन बहुत लाभकारी है। मासिक धर्म की अनियमितता, कष्टदायक मासिक, एवं प्रदर रोग तथा गभाशय और भीतरी यौ.नांगों के अनेक विकार दूर होते हैं। महिलाओं का यौवन और सौन्दर्य भुजंगासन से सुरक्षित रहता है।
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