नई दिल्ली, 15 अक्टूबर . भारतीय वेटलिफ्टर संकेत सरगर ने जब 2022 में बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में 55 किग्रा भारवर्ग में सिल्वर मेडल जीता तो यह जीत बड़ी खास थी, जो सिर्फ एक खिलाड़ी की मेहनत, लगन, संघर्ष, तपस्या जैसी परंपरागत चीजों से तो जुड़ी ही हुई थी बल्कि चाय बेचने वाले पिता के सपनों से भी जुड़ी थी. संकेत के पिता को उनकी जिंदगी का हीरो कहना गलत नहीं होगा जिन्होंने न सिर्फ अपने लड़के के लिए सपना देखा बल्कि उसको हकीकत में तब्दील हो जाने तक बेटे को लगातार हौसला भी दिया.
महाराष्ट्र में सांगली में 16 अक्टूबर 2000 को संकेत का जन्म हुआ था. यहीं मुख्य बाजार में संकेत के पिता महादेव की चाय की दुकान है. यहां पर पकौड़े भी मिलते हैं और पान भी. इस दुकान पर संकेत ने मूंग के दाल के पकौड़े और वड़ा पाव खूब बनाए हैं. यह पृष्ठभूमि संकेत के आगे बढ़ने के लिए एक चुनौती जरूर थी लेकिन पिता चाहते थे कि बेटा या तो खेल में आगे बढ़े या पढ़ाई करे. संकेत ने दोनों को चुना. महादेव तब वेटलिफ्टिंग कोच नाना सिंहासने के फैन थे जो उनके टी-स्टाल के पास ही अपने वेटलिफ्टिंग ट्रेनिंग सेंटर को चलाते थे. साल 2012 में संकेत ने यहां जाना शुरू कर दिया था. नए और मुश्किल रूटीन के हिसाब से ढलने में संकेत को 6 महीने लगे थे.
जल्द ही संकेत की प्रतिभा, जुनून और समपर्ण ने आगे बढ़ने के ‘संकेत’ देने शुरू कर दिए थे. बाद में उन्होंने एक अकादमी में दाखिला लिया और वहां के कोच की नजर में छा गए. सिर्फ चाय और पान की दुकान की कमाई से वेटलिफ्टिंग जैसे खेल की सभी जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं था. ऐसे समय में संकेत को अच्छे कोचों का साथ मिला. शायद ही संकेत ने कभी समय पर अकादमी जाना और ट्रेनिंग करना छोड़ा था, सिवाए अपनी 10वीं क्लास की परीक्षा के अलावा. इस समय खेल की ट्रेनिंग के साथ पढ़ाई करने के अलावा संकेत पिता के काम में पूरा हाथ बटा रहे थे.
संकेत साल 2020 में खेलो इंडिया यूथ गेम्स और खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के भी चैपियन साबित हुए थे. इसी बीच कोविड लॉकडाउन ने संकेत की जिंदगी को ‘लॉक’ और उनकी सोच को ‘डाउन’ कर दिया था. तब न तो उनके पिता के टी-स्टॉल पर कोई कमाई थी और घर में ट्रेनिंग के दौरान संकेत को बैक इंजरी भी हो चुकी थी. वह खेल छोड़ने को सोच रहे थे, तब पिता ने पुराने अखबार की वह क्लिप दिखाई जिसमें बेटा पदक जीत रहा है. संकेत को इस तरह से प्रेरणा मिलती रही. उन्होंने सिंगापुर इंटरनेशनल 2022 में भी गोल्ड मेडल हासिल किया. इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में उनको सिल्वर मेडल मिला और एक अविश्वसनीय कहानी सामने आई.
16 अक्टूबर को ही भारत की एक और खेल हस्ती का जन्म हुआ है. यह है ओलंपियन मुक्केबाज अमित पंघाल. महज 5’2″ लंबे, जिनके हौसलों ने आसमान छूकर दिखाया. उनकी बॉक्सिंग अकादमी का नाम भी छोटूराम था जहां कोच अनिल धनखड़ के मार्गदर्शन में उनका करियर निखरा.
हरियाणा के रोहतक में जन्में पंघाल को अपने बड़े भाई से मुक्केबाजी को अपनाने की प्रेरणा मिली थी. अमित ने अपनी कदकाठी की भरपाई अपने रिफ्लेक्स और मुक्कों में बिजली की गति लाकर की. अमित पंघाल को पहली बड़ी सफलता 2017 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर मिली थी. उसी साल एशियाई चैंपियनशिप में भी कांस्य पदक जीता और विश्व चैंपियनशिप में भी दमदार खेल दिखाया. हालांकि वह मेडल नहीं जीत सके थे.
यहां से अमित पंघाल का सफर तेज रफ्तार से आगे बढ़ा और उन्होंने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता. 2018 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता. उसी साल उन्होंने विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया. वह विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बन चुके थे.
इन सब सफलताओं और आकांक्षाओं की पृष्ठभूमि में अमित पंघाल टोकयो ओलंपिक पहुंचे लेकिन उनका सफर अप्रत्याशित तौर पर पहले ही दौर में समाप्त हो गया था. इस हार से उभरते हुए उन्होंने बर्मिंघम 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर शानदार वापसी की. उसी साल उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया लेकिन इस साल पेरिस ओलंपिक में फिर से उनका अभियान प्री क्वार्टर फाइनल में ही समाप्त हो गया. इस तरह से तमाम उपलब्धियों के बावजूद अमित पंघाल मानते हैं कि एक मुक्केबाज के रूप में उनकी यात्रा अभी शुरू नहीं हो पाई है. वह ओलंपिक मेडल जीतने के बाद ही शुरू होगी.
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एएस/
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