लखनऊ, 7 अक्टूबर . उत्तर प्रदेश के किसानों को केले की खेती खूब रास आ रही है. प्रदेश के पूर्वांचल, अवध आदि क्षेत्रों के कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, अंबेडकर नगर, बाराबंकी, प्रतापगढ़, अमेठी, कौशाम्बी, सीतापुर और लखीमपुर जिलों में केले की खेती होती है.
योगी सरकार द्वारा केले की प्रति हेक्टेयर खेती पर करीब 31 हजार रुपये का अनुदान दिया जाता है. पारदर्शी तरीके से अनुदान पर मिलने वाले कृषि यंत्रों का वितरण और सिंचाई के अपेक्षाकृत प्रभावी ड्रिप और स्प्रिंकलर और सोलर पंप पर मिलने वाले अनुदान के नाते किसानों का क्रेज केले जैसी नकदी फसलों की ओर बढ़ा है.
परंपरागत रूप से केला दक्षिण भारत की फसल है. लेकिन, कुछ दशक पूर्व महाराष्ट्र के भुसावल और इसके आसपास के कुछ इलाकों में इसकी खेती शुरू हुई, तो भुसावल और केला (चित्तीदार) एक दूसरे के पर्याय बन गए. देखते-देखते भुसावल का हरी छाल केला पूरे उत्तर भारत के बाजार में छा गया.
करीब दो दशक पहले बिहार के नवगछिया के केले ने भुसावल के हरी छाल को लगभग बाजार से बाहर कर दिया. बिहार से सटे कुशीनगर के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर रहे हैं. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ से मिले आंकड़ों के अनुसार पूरे भारत में लगभग 3.5 करोड़ मीट्रिक टन केले का उत्पादन होता है. देश में केले की फसल का रकबा करीब 9,61,000 हेक्टेयर है.
उत्तर प्रदेश में करीब 70,000 हेक्टेयर रकबे में केले की खेती हो रही है. कुल उत्पादन 3.172 लाख मिट्रिक टन और प्रति हेक्टेयर उपज 45.73 मिट्रिक टन है. केला आर्थिक के साथ धार्मिक और पोषण के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है. कोई भी धार्मिक अनुष्ठान केले और इसके पत्ते के बिना पूरा नहीं होता.
केला रोज के नाश्ते के अलावा व्रत में भी खाया जाता है. केले के कच्चे, पके फल और तने से निकलने वाले रेशे से ढेर सारे सह उत्पाद बनने लगे हैं. बाजार में मौसमी फलों की उपलब्धता सीजन के कुछ महीनों तक रहती है, लेकिन केला उन चुनिंदा फलों में से है जो लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है. अधिकांश फलों को खाने के लिए धोने, काटने की आवश्यकता होती है, लेकिन केले को बिना किसी समस्या के छीलकर खा सकते हैं.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन के अनुसार केला पोषण के लिहाज से भी खासा महत्त्वपूर्ण है. अन्य पोषक तत्वों के अलावा इसमें भरपूर मात्रा में पोटेशियम तो होता ही है, यह कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन बी-6 का भी अच्छा स्रोत है. पोटेशियम हृदय की सेहत, विशेष रूप से रक्तचाप प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है. पोटेशियम युक्त आहार रक्तचाप को प्रबंधित करने और उच्च रक्तचाप के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकता है. यह हृदय रोग का जोखिम 27 फीसद तक कम कर सकता है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक प्रभात कुमार शुक्ला के अनुसार केले से प्राप्त विटामिन बी-6 आसानी से शरीर में अवशोषित हो जाता है. एक मध्यम आकार का केला दैनिक विटामिन बी-6 की जरूरतों का लगभग एक चौथाई प्रदान कर सकता है. यह विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के चयापचय के लिए आवश्यक है. यह उन्हें ऊर्जा में बदलता है, यकृत और गुर्दे से अवांछित रसायनों को हटाता है, और एक स्वस्थ तंत्रिका तंत्र को बनाए रखता है.
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एसके/एबीएम
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