नई दिल्ली, 22 जून . अमेरिका की ओर से ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किए जाने के बाद से वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ गया है और इससे कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हो सकता है, जो कि इस महीने पहले ही 20 प्रतिशत के करीब बढ़ चुकी हैं.
आखिरी कारोबारी सत्र में बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड का फ्यूचर्स लगभग 77 डॉलर प्रति बैरल पर था और अब अमेरिका के मध्य पूर्व संघर्ष में हस्तक्षेप करने के कारण कच्चा तेल एक और उछाल के लिए तैयार है.
माना जा रहा है कि मध्य पूर्व में व्यापक संघर्ष का सऊदी अरब, इराक, कुवैत और यूएई से तेल आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, जिससे कीमतों में भारी उछाल आएगा. शिपिंग पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि हूती विद्रोहियों ने पहले ही चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो वे जहाजों पर अपने हमले फिर से शुरू कर देंगे.
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है, और तेल की कीमतों में उछाल से देश के तेल आयात बिल में वृद्धि हो सकती है और मुद्रास्फीति की दर बढ़ सकती है, जिससे आर्थिक विकास को नुकसान पहुंच सकता है. विदेशी मुद्रा के बड़े पैमाने पर आउटफ्लो से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में भी कमजोरी आ सकती है.
एमके ग्लोबल की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान प्रतिदिन लगभग 3.3 मिलियन बैरल (एमबीपीडी) कच्चे तेल का उत्पादन करता है और लगभग 1.5 एमबीपीडी का निर्यात करता है, जिसमें चीन 80 प्रतिशत भागीदारी के साथ मुख्य आयातक है. ईरान होर्मुज स्ट्रेट के उत्तरी किनारे पर भी है, जिसके माध्यम से दुनिया में 20 एमबीपीडी से अधिक कच्चे तेल का व्यापार होता है.
होर्मुज स्ट्रेट मध्य-पूर्व में एक चोक प्वाइंट है. इस मार्ग से सऊदी अरब और यूएई आदि भी शिपिंग करते हैं और पहले भी ईरान ने इसे बंद करने की चेतावनी दी है.
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एबीएस/
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