मोतिहारी, 8 मई . कोरोना महामारी ने जहां पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, वहीं भारत में इस आपदा को अवसर में बदलने की एक अनूठी कहानी बिहार के मोतिहारी से सामने आई है. जब महामारी के दौरान लोग अपने घरों को लौटे, बड़े-बड़े कारखाने बंद हुए और बेरोजगारी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया, तब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘लोकल फॉर वोकल’ का नारा दिया.
इस नारे ने न केवल स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की बात कही, बल्कि लोगों को अपने गांव-घर में ही रोजगार के नए अवसर तलाशने के लिए प्रेरित किया. इसका जीता-जागता उदाहरण है मोतिहारी के लखौरा गांव का युवक मोहम्मद नूरैज, जिसने अपने गांव में बैग की फैक्ट्री स्थापित कर करीब 100 लोगों को रोजगार दिया और ‘वोकल फॉर लोकल’ की भावना को साकार किया.
मोहम्मद नूरैज की कहानी प्रेरणादायक है. कोरोना से पहले वह महाराष्ट्र में अपनी बैग बनाने की फैक्ट्री चलाते थे. लेकिन महामारी के दौरान लॉकडाउन ने उनकी फैक्ट्री को बंद कर दिया. मजबूरन उन्हें अपने गांव लखौरा लौटना पड़ा. उस समय बेरोजगारी और अनिश्चितता का माहौल था. लेकिन नूरैज ने हार नहीं मानी. प्रधानमंत्री के ‘लोकल फॉर वोकल’ और स्टार्टअप को बढ़ावा देने वाले नारे से प्रेरित होकर उन्होंने अपने गांव में ही बैग की फैक्ट्री शुरू करने का फैसला किया. आज उनकी यह फैक्ट्री न केवल उनके लिए आय का स्रोत बन चुकी है, बल्कि उनके गांव के उन सैकड़ों लोगों के लिए भी रोजगार का आधार बनी है, जो कोरोना के दौरान बिहार लौटे और बेरोजगार हो गए थे.
नूरैज की फैक्ट्री में वर्तमान में करीब 100 लोग काम कर रहे हैं. ये सभी कर्मचारी स्थानीय हैं और अधिकतर वे लोग हैं जो पहले दिल्ली, मुंबई या अन्य शहरों में काम करते थे. लॉकडाउन के बाद घर लौटने पर उनके सामने रोजगार का संकट था. लेकिन नूरैज की पहल ने उनकी जिंदगी बदल दी. फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुए हैं, बल्कि उन्हें अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका भी मिला है.
मोहम्मद नूरैज ने कहा, “लॉकडाउन के बाद सभी लोग घर लौट आए. फिर प्रधानमंत्री की योजना ‘लोकल फॉर वोकल’ पहल के साथ आई, जिसमें लोगों को घर पर रहने, व्यवसाय शुरू करने और स्थानीय स्तर पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. इसलिए, हमने यहां बैग की फैक्ट्री लगाने का फैसला किया. यहां काम करने वाले लोग आते हैं और इस समय यहां करीब 110 कर्मचारी हैं. हमें अच्छी आमदनी भी हो रही है. मुझे इस काम से बहुत संतुष्टि मिलती है. हमारी फैक्ट्री में काम करने वाले लोग खुश हैं, उन्हें नियमित आय मिल रही है और वे अपने परिवार के साथ रहकर जीवन का आनंद ले रहे हैं.”
फैक्ट्री में काम करने वाले एक कर्मचारी मोहम्मद जीशान ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “कोरोना के बाद हम गांव लौट आए थे और रोजगार की कोई उम्मीद नहीं थी. लेकिन इस फैक्ट्री ने हमें नया जीवन दिया. अब हमें दिल्ली या मुंबई जाने की जरूरत नहीं. यहीं अपने गांव में अच्छा काम मिल रहा है, परिवार के साथ रहने का हमें अवसर भी मिल रहा है.”
‘लोकल फॉर वोकल’ की इस पहल ने न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा किए, बल्कि गांव की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया. नूरैज की फैक्ट्री में तैयार होने वाले बैग न केवल स्थानीय बाजारों में बिक रहे हैं, बल्कि उनकी मांग अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ रही है. यह फैक्ट्री अब गांव के लिए एक मॉडल बन चुकी है, जो यह दिखाता है कि सही दिशा और मेहनत से विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता हासिल की जा सकती है. नूरैज का यह प्रयास न केवल उनके गांव के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है. उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर इच्छाशक्ति हो और सरकार की योजनाओं का सही उपयोग किया जाए, तो हर आपदा को अवसर में बदला जा सकता है.
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एकेएस/एकेजे
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