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जापान-चीन के बीच आया ताइवान! पीएम ताकाइची ने संसद में जो कहा वो बीजिंग को नामंजूर

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New Delhi / टोक्यो, 11 नवंबर 2025 . एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ताकाइची के एक बयान ने चीन को नाराज कर दिया है. संसद में उन्होंने जो भी कुछ ताइवान को लेकर कहा उसका बीजिंग ने तल्ख अंदाज में जवाब दिया.

ताकाइची ने संसद में बयान दिया था कि यदि चीन ताइवान पर हमला करता है और वह जापान के अस्तित्व के लिए खतरा बन जाता है, तो जापान अपने आत्म-रक्षा बलों (सेल्फ डिफेंस फोर्सेस) को तैनात करने पर विचार कर सकता है. उन्होंने कहा, “अगर युद्धपोत और बल का प्रयोग हुआ, तो वह जापान की ‘ स्थिति’ को प्रभावित कर सकता है.”

‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ में चीन के रवैए का जिक्र है. स्पष्ट लिखा है कि यह बात चीन के लिए सीधा रेडलाइन थी, क्योंकि बीजिंग ताइवान को अपना आंतरिक मामला मानती है. चीन ने जापान के इस बयान को ‘भड़काऊ’, ‘घातक’ और द्विपक्षीय संबंधों को ‘गंभीर रूप से नुकसान’ पहुंचाने वाला बताया है.

जापान ने Monday को औपचारिक रूप से विरोध दर्ज कराया क्योंकि ओसाका में चीनी कौंसल-जनरल ने social media पर एक पोस्ट में ताकाइची को प्रत्यक्ष रूप से धमकी दी थी. इस धमकी में विवादित भाषा का प्रयोग किया गया था, जिसमें कहा गया था, “हम बिना हिचकिचाहट गले को काटने का विकल्प नहीं छोड़ेंगे. क्या आप तैयार हैं?”

जापानी Government ने इसे “अत्यंत अनुचित” माना. इस विवाद से ठीक पहले, ताकाइची ने विपक्षी सदस्य की ओर से पूछे गए एक सवाल के जवाब में आन्तरिक संसदीय समिति को बताया कि जापान को “सबसे बुरे परिदृश्य” के लिए तैयार रहना होगा. उन्होंने ये भी कहा कि यदि ताइवान के आसपास युद्धपोत तैनात हों या सेना कार्रवाई करे, तो जापान को सीधे तौर पर खतरा महसूस हो सकता है.

चीन ने जापान को चेतावनी दी है कि वह ताइवान की सेनाओं को किसी तरह का समर्थन नहीं दे और जापान को इस मुद्दे पर कुछ भी ऐसा संदेश नहीं भेजना चाहिए जो बीजिंग को उसके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप के रूप में लगे.

बिजिंग का मानना है कि ताकाइची ने जो संसद में कहा वो दोनों देशों के बीच 1972 में हुए समझौते का उल्लंघन है. उस समझौते के तहत जापान ताइवान पर चीनी प्रभुत्व मानता है और बिजिंग की स्थिति को सम्मान देता है.

जापान ने संकेत दिया है कि ताकाइची अपने बयान को नहीं दोहराएंगी और सतर्क रहेंगी. कैबिनेट सचिव मिनोरू किहारा ने Tuesday को विश्वास दिलाया कि जापान 1972 के समझौते का सम्मान करता है और पीएम ताइवान मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने की इच्छा रखती हैं.

वहीं, Monday को खुद ताकाइची ने माना कि संसद में उन्होंने जो कहा वो परिकल्पना के आधार पर कहा गया था और वो भविष्य में ऐसी बयानबाजी से बचने का प्रयास करेंगी.

जापान की सुरक्षा नीति में यह स्पष्ट बदलाव देखे जा सकते हैं. जापान के लिए परंपरागत तौर पर यह कहा जाता रहा है कि वह सीधे तौर पर ताइवान विवाद में प्रवेश नहीं करेगा — लेकिन ताकाइची ने इसे अपने अस्तित्व को जिंदा रखने की स्थिति तक पर ले जाने वाला मामला बताया.

इस घटना से जापान-चीन संबंधों में नई दरार दिखने लगी है, जबकि हाल ही में दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने “स्थिर और रचनात्मक” रिश्तों पर सहमति जताई थी. यह टकराव क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी प्रभाव डाल सकता है, खासकर अमेरिका-जापान-चीन त्रिकोणीय रिश्तों में. जापान एक प्रमुख अमेरिकी सहयोगी है; यदि ताइवान संकट उभरा, तो जापान को भी मजबूरी में कथित रूप से सक्रिय होना पड़ सकता है.

ताइवान और अमेरिका इस विवाद को सिर्फ दो-पक्षीय के रूप में नहीं देख रहे हैं; यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन से जुड़ा मामला बन सकता है.

केआर/

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