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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर : भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचयिता, जिन्होंने लौटा दी थी 'नाइट हुड' की उपाधि

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New Delhi, 6 अगस्त . दो देश, दो राष्ट्रगान, और रचयिता एक… ऐसा कम ही होता है जब दो देशों के राष्ट्रगान के रचयिता एक ही शख्स हों. इस अनूठे संयोग में एक महान साहित्यकार और दार्शनिक की विरासत छिपी है, जिनकी रचनाओं ने भारत और बांग्लादेश के दिलों को जोड़ा. उनकी लिखी कालजयी कृति ‘जन गण मन’ और ‘आमार सोनार बांग्ला’ ने न केवल दो राष्ट्रों को पहचान दी बल्कि उनकी साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी जीवंत किया.

हम बात कर रहे हैं रवींद्रनाथ टैगोर की, जिन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है. भारत के महान कवि, लेखक, दार्शनिक, संगीतकार, चित्रकार और शिक्षाविद् रवींद्रनाथ टैगोर पहले गैर-यूरोपीय थे, जिन्होंने साहित्य में नोबेल पुरस्कार (1913) जीता. इतना ही नहीं, टैगोर ने अपनी रचनाओं से बंगाली और भारतीय साहित्य को विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाई. उनकी रचनाओं में मानवतावाद, प्रकृति, प्रेम और आध्यात्मिकता का संगम दिखाई देता है.

7 मई, 1861 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता (कलकत्ता) में जन्मे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज के प्रमुख नेता थे. बताया जाता है कि औपचारिक स्कूली शिक्षा में उनकी रुचि कम थी, इसलिए उन्होंने घर पर विद्वानों से साहित्य, दर्शन और विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की. उनका बचपन से ही कविता और साहित्य की ओर झुकाव था और यही वजह था कि उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिख दी. जब वह 16 साल के थे तो उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था. समय के साथ उनकी रचनाओं का भी कारवां बढ़ता चला गया और उन्होंने ‘गीतांजलि’, ‘चोखेर बाली’, ‘गोरा’, ‘काबुलीवाला’, ‘चार अध्याय’ और ‘घरे बाइरे’ समेत कई मशहूर उपन्यास लिख दिए.

उनकी कविताओं का संग्रह गीतांजलि ने बंगाली साहित्य को समृद्ध बनाने का काम किया. ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले एशियाई थे. टैगोर ने करीब 2,000 गीत लिखे, जिन्हें ‘रवींद्र संगीत’ के नाम से जाना जाता है. भारत का राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांग्ला’ उनकी रचनाएं हैं.

‘द नोबेल प्राइज’ की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार ने साल 1915 में उन्हें नाइट की उपाधि दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के विरोध में इस सम्मान को त्याग दिया था.

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1921 में ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी, जिसे आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी ‘विश्व भारती’ के नाम से जाना जाता है. टैगोर विश्वभ्रमण करने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने पांच महाद्वीपों के 30 से अधिक देशों की यात्रा की थी. उन्होंने उस समय की जानी मानी हस्तियों में शामिल अल्बर्ट आइंस्टीन, रोमेन रोलांड, रॉबर्ट फ्रॉस्ट, जीबी शॉ, थॉमस मान समेत कई लोगों से मुलाकात की थी.

इसके अलावा, रवींद्रनाथ टैगोर का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी अनोखा रिश्ता था. विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘भारत संदर्श’ में महात्मा गांधी के एक बयान का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की तारीफ की थी.

महात्मा गांधी ने रवींद्रनाथ टैगोर के लिए कहा था, “अपने हजारों देशवासियों के समान मैं भी उनका ऋणी हूं, जिन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा और जीवन की बेजोड़ निर्मलता से भारत की छवि को संसार में एक बुलंदी प्रदान की.”

इसके अलावा, टैगोर ने 1929 और 1937 में विश्व धर्म संसद में भाषण दिया. टैगोर ने साहित्यकार होने के साथ-साथ चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया. 7 अगस्त, 1941, ये वो दिन था, जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

एफएम/जीकेटी

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