मुंबई, 26 जून . महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार ने छह महीने में 2.5 लाख चूहे मारने को लेकर बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर सवाल उठाए हैं. इसके जवाब में शिवसेना (यूबीटी) प्रवक्ता आनंद दुबे ने गुरुवार को कहा कि वह पालक मंत्री होते हुए भी बीएमसी चुनाव कराने में सफल नहीं हो सके. वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के दो माह बाद भी हमलावर नहीं पकड़े गए.
आनंद दुबे ने समाचार एजेंसी से कहा कि आशीष शेलार पालक मंत्री होते हुए भी बीएमसी चुनाव कराने में विफल रहे हैं. उन्होंने कहा, “साल 2022 के बाद चुनाव नहीं हुए, जबकि प्रशासन आपके अधीन है. विपक्ष को दोषी बताकर निशाना बनाना ठीक नहीं, जब भ्रष्टाचार की जांच भी आपके अधिकारी ही करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चार माह में चुनाव कराने का आदेश दिया, लेकिन परिसीमन अब तक अधूरा है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा चुनाव से डरती है, इसलिए विपक्ष पर दोष मढ़ती है. खुद की गलतियों को छिपाने के लिए पुरानी सरकारों को कोसना बंद करें.”
चीन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करने के बयान पर उन्होंने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले को दो महीने से ज्यादा हो गए, लेकिन अब तक हमलावर नहीं पकड़े गए. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को तुरंत एक्शन लेना चाहिए था, लेकिन वह निष्क्रिय नजर आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा में लोकतंत्र नहीं, बल्कि ‘राजा तंत्र’ चलता है, जहां ‘बड़े और छोटे राजा’ फैसले लेते हैं. रक्षा मंत्री पूरे देश का होता है, न कि सिर्फ पार्टी का. प्रवक्ता ने अपील की कि राजनाथ सिंह देशहित में काम करें और प्रधानमंत्री को भी देश की सुरक्षा पर सख्त सलाह दें.
कांग्रेस में दो बड़े नेताओं शशि थरूर और खड़गे में जुबानी जंग पर आनंद दुबे ने कहा कि दोनों वरिष्ठ और समकक्ष नेता हैं. थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था, वह हार के बावजूद आज भी प्रभावशाली नेता हैं. कांग्रेस में मतभेद है, मनभेद नहीं, जबकि भाजपा में गुलामी की संस्कृति है, जहां जे.पी. नड्डा जैसे नेता केवल दिखावे के लिए हैं. थरूर और खड़गे लोकतांत्रिक तरीके से विचार रख सकते हैं, यही लोकतंत्र की खूबी है. प्रवक्ता ने कहा कि थरूर लोकप्रिय नेता हैं और कांग्रेस ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, उम्मीद है वह पार्टी का सम्मान रखेंगे.
मालेगांव शुगर फैक्ट्री चुनाव में भतीजे अजित पवार की एकतरफा जीत हुई जबकि शरद पवार का सूपड़ा साफ हो गया. चाचा शरद पवार के लिए अपने ही गढ़ में यह एक बड़ा झटका है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आनंद दुबे ने कहा कि राजनीति और सामाजिक जीवन में जीत होती है या हार. शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता ने अजित पवार को राजनीति की शिक्षा दी, उंगली पकड़कर सिखाया. हो सकता है अजित पवार ने उनसे कुछ अधिक ही सीख लिया हो. कभी-कभी शिष्य गुरु से आगे निकल जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गुरु की योग्यता खत्म हो जाती है.
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एएसएच/एकेजे
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