नई दिल्ली, 6 जुलाई . सावन का पावन महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है. यह महीना भगवान शिव की भक्ति और साधना के लिए विशेष माना जाता है. इस दौरान ‘शिव पंचाक्षर स्तोत्र’ का पाठ भक्तों के लिए असीम पुण्य और आध्यात्मिक शांति का स्रोत बनता है. ‘नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय…’ जैसे शब्दों से सजा यह स्तोत्र भगवान शिव के विराट स्वरूप को उजागर करता है, जो उनकी महिमा, शक्ति और करुणा को दिखाता है. ‘नम: शिवाय’ पंचाक्षर मंत्र में विश्व के नाथ का स्वरुप सम्माहित है.
‘शिव पंचाक्षर स्तोत्र’ पांच शब्दांशों ‘न, म, शि, व, य’ के माध्यम से भगवान शिव के गुणों का बखान करता है. प्रत्येक शब्द उनके एक विशिष्ट रूप को प्रकट करता है. ‘नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय’ में शिव को सर्पों के राजा को हार के रूप में धारण करने वाले और त्रिनेत्रधारी महेश्वर बताया गया है. उनके शरीर पर भस्म और दिगंबर स्वरूप उनकी शाश्वत पवित्रता को दिखाता है. ‘मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय’ में उनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल और चंदन से होने का वर्णन है, जो उनकी भक्तों के प्रति करुणा को उजागर करता है.
‘शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय’ में शिव को माता गौरी के चेहरे को कमल की तरह खिलाने वाले और दक्ष यज्ञ के संहारक के रूप में चित्रित किया गया है. उनके नीले कंठ और वृषभ ध्वज दैवीय स्वरूप की महिमा को और बढ़ाते हैं. ‘वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतम’ में वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम जैसे महर्षि वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतम’ में वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम जैसे ऋषियों और देवताओं द्वारा पूजित शिव को ब्रह्मांड का मुकुट बताया गया है, जिनकी चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान तीन आंखें हैं. ‘यक्षस्वरूपाय जटाधराय’ में शिव को त्रिशूलधारी, जटाधारी और दिगंबर दिव्य देवता के रूप में वर्णित किया गया है.
इस स्तोत्र का पाठ सावन में विशेष फलदायी माना जाता है. यह भक्तों को शिव के स्वरूप से जोड़ता है और मन को शांति प्रदान करता है. स्तोत्र के अंत में कहा गया है, “जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और उनके साथ आनंदित होता है.” सावन में इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भोलेनाथ की कृपा और आशीर्वाद दिलाता है.
संस्कृत में पंचाक्षर मंत्र इस प्रकार है:- नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय. नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय.
यानी जिनके पास सांपों का राजा उनकी माला के रूप में है और जिनकी तीन आंखें हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है. वह शाश्वत हैं और चारों दिशाओं को अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश “न” द्वारा दिखाया गया है.
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय. मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय. तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय. जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है, जो नंदी और भूत-पिशाचों के स्वामी हैं, मंदार और कई अन्य फूलों के साथ उनकी पूजा की जाती है. उस शिव को प्रणाम, जिन्हें शब्दांश “म” द्वारा दिखाया गया है.
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द-सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय. श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवाय. जो शुभ हैं और जो नए उगते सूरज की तरह हैं, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है, वह दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं, जिनका कंठ नीला है और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश “शि” द्वारा दिखाया गया है.
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य- मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवाय. वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों – वशिष्ट, अगस्त्य और गौतम और देवताओं द्वारा भी पूजित हैं और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं, जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश “वा” द्वारा दिखाया गया है.
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवाय. जो यज्ञ का अवतार हैं, जिनकी जटाएं हैं, जिनके हाथ में त्रिशूल है, जो शाश्वत हैं, जो दिव्य हैं, जो चमकीले हैं, और चारों दिशाएं जिनका वस्त्र हैं, उस शिव को नमस्कार, जिन्हें शब्दांश “य” द्वारा दिखाया गया है
स्त्रोत के अंत में कहा गया है, पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ. शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते, जिसका अर्थ है, जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं, वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे.
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एमटी/केआर
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