देशभर में बुधवार, 9 जुलाई को एक ऐसा दृश्य देखने को मिल सकता है, जब सड़कों पर सिर्फ भीड़ नहीं बल्कि नाराज़गी और आवाज़ बुलंद होती दिखाई देगी। करीब 25 करोड़ कर्मचारियों का यह गुस्सा अब सड़कों पर उतरने जा रहा है — वो भी सरकार की मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ। इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल और भारत बंद का असर हर किसी की जिंदगी पर दिख सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था को भी करोड़ों का नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है।
इस दिन बिहार में महागठबंधन ने भी चक्का जाम का ऐलान किया है। खास बात ये है कि इस विरोध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद पटना पहुंचकर शामिल होने जा रहे हैं, जिससे इस आंदोलन को न सिर्फ सियासी बल मिलेगा बल्कि जनभावनाओं की गूंज और तेज़ हो सकती है।
हड़ताल की बुनियाद: कौन-कौन और क्यों?
इस हड़ताल का नेतृत्व कर रही हैं देश की 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनें, जिनमें AITUC, HMS, CITU, INTUC जैसी यूनियनें शामिल हैं। इनके साथ-साथ संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दे दिया है। यह हड़ताल सिर्फ शहरों में नहीं, बल्कि गांव-गांव तक असर छोड़ने वाली है।
अमरजीत कौर (AITUC) ने बताया, “25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों की भागीदारी की उम्मीद है।” वहीं, हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने चेताया कि बैंकिंग, डाक, कोयला, फैक्ट्रियां और परिवहन जैसे अहम क्षेत्र ठप हो सकते हैं।
कर्मचारी आखिर क्यों गुस्से में हैं?
विरोध करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने 17 सूत्री मांगपत्र श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को सौंपा, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हुई। यूनियनों का आरोप है कि सरकार लेबर कोड के नाम पर अधिकार छीनने और ट्रेड यूनियनों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। काम के घंटे बढ़ाना, मजदूरों की भर्तियां रोकना, निजीकरण को बढ़ावा देना और ELI जैसी योजनाओं के नाम पर अस्थायी राहत देना, इन सबने मिलकर माहौल को विस्फोटक बना दिया है।
यह पहली बार नहीं है। 2020, 2022 और 2024 में भी ऐसी हड़तालें हो चुकी हैं, लेकिन दर्द जस का तस है।
बिहार बंद का अलग सियासी रंग
बिहार में यह बंद वोटर लिस्ट पुनरीक्षण (SIR) को लेकर है, जिसे विपक्ष 'वोटबंदी' की संज्ञा दे रहा है। RJD के तेजस्वी यादव ने इसकी तुलना नोटबंदी से कर दी है और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। इसमें पप्पू यादव जैसे जननेता भी खुलकर शामिल हो चुके हैं।
बिहार में यह बंद आने वाले विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार कर सकता है। 24 जून से शुरू हुई SIR प्रक्रिया के विरोध में INDIA गठबंधन ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है।
जनजीवन होगा कितना प्रभावित?
इस हड़ताल और बिहार बंद का असर सार्वजनिक परिवहन, माल ढुलाई, बैंकिंग, डाक सेवा और राज्य परिवहन पर भारी पड़ सकता है। लाखों लोगों को अपनी यात्रा और जरूरी कामों में कठिनाई हो सकती है। लेकिन राहत की बात यह है कि आपातकालीन सेवाएं चालू रहेंगी।
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