उत्तराखंड के चार धाम में हुआ एक और हेलिकॉप्टर हादसा नियमों की अनदेखी, लापरवाही और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की होड़ का नतीजा है। केवल मई-जून में ही हुई पांच दुर्घटनाएं और उनमें 13 लोगों की मौत बताती हैं कि पिछली घटनाओं से सबक नहीं लिया गया और न ही सरकारी कार्रवाई का हेलिकॉप्टर ऑपरेटरों पर असर हो रहा है।
निगरानी क्यों नहीं: हालिया क्रैश केदारनाथ से लौटते समय गौरीकुंड के पास हुआ। कारण खराब मौसम बताया जा रहा । SOP का पालन नहीं करने पर संबंधित कंपनी आर्यन एविएशन के अफसरों पर FIR दर्ज कर ली गई है। लेकिन, इससे यह सवाल भी उठता है कि जब मौसम अनुकूल नहीं था, तो उड़ान हुई कैसे - क्या हेलिकॉप्टर सर्विस पर निगरानी का कोई सिस्टम नहीं है ? कुछ दिनों पहले ही एक कंपनी के दो पायलटों पर इसी मामले में एक्शन लिया गया था। इसके बावजूद एक अन्य कंपनी फिर वही गलती दोहराती है।
नियमों की अनदेखी: उत्तराखंड में श्रद्धालुओं की संख्या बेहिसाब ढंग से बढ़ी है और इसी के साथ हेलिकॉप्टर सेवा भी। लेकिन, इसमें सुरक्षा मानकों की अनदेखी के आरोप भी खूब लगे हैं। चूंकि यात्रा सीजन सीमित होता है, ऐसे में ज्यादातर कंपनियों का जोर अधिक से अधिक उड़ान भरने और मुनाफा कमाने पर होता है। इसी वजह से कभी उत्तरकाशी जैसे हादसे होते हैं और कभी सड़क पर हार्ड लैंडिंग की तस्वीरें आती हैं। इसका एक पहलू पर्यावरण पर पड़ने वाला नकारात्मक असर भी है।
इंफ्रा की कमी: एविएशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि चार धाम रूट, खासकर केदारनाथ रूट एक पायलट के लिहाज से सबसे चुनौतीपूर्ण है। यहां उड़ानें तो बढ़ी हैं, लेकिन रडार या एयर ट्रैफिक कंट्रोल जैसा जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। पायलटों को केवल अपनी आंख पर भरोसा करके आगे बढ़ना होता है, लेकिन उस ऊंचाई पर, जहां मौसम अचानक करवट ले लेता है, यह बहुत जोखिम भरा है। ऊपर से कंपनियों का लालच इस जोखिम को और बढ़ा देता है।
कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी: कुछ दिनों पहले ही DGCA ने चार धाम कॉरिडोर में उड़ानों की संख्या आधी कर दी और उत्तराखंड सिविल एविएशन डिवेलपमेंट अथॉरिटी के कंट्रोल रूम में अपने ऑफिसर भी नियुक्त किए हैं। हालांकि इसके साथ हेलिकॉप्टर सर्विस देने वाली कंपनियों पर अंकुश की भी जरूरत है। मानकों को और कड़ा किया जाना चाहिए। देश के किसी और हिस्से की तुलना में हिमालय में उड़ान भरना अतिरिक्त सावधानी की मांग करता है।
निगरानी क्यों नहीं: हालिया क्रैश केदारनाथ से लौटते समय गौरीकुंड के पास हुआ। कारण खराब मौसम बताया जा रहा । SOP का पालन नहीं करने पर संबंधित कंपनी आर्यन एविएशन के अफसरों पर FIR दर्ज कर ली गई है। लेकिन, इससे यह सवाल भी उठता है कि जब मौसम अनुकूल नहीं था, तो उड़ान हुई कैसे - क्या हेलिकॉप्टर सर्विस पर निगरानी का कोई सिस्टम नहीं है ? कुछ दिनों पहले ही एक कंपनी के दो पायलटों पर इसी मामले में एक्शन लिया गया था। इसके बावजूद एक अन्य कंपनी फिर वही गलती दोहराती है।
नियमों की अनदेखी: उत्तराखंड में श्रद्धालुओं की संख्या बेहिसाब ढंग से बढ़ी है और इसी के साथ हेलिकॉप्टर सेवा भी। लेकिन, इसमें सुरक्षा मानकों की अनदेखी के आरोप भी खूब लगे हैं। चूंकि यात्रा सीजन सीमित होता है, ऐसे में ज्यादातर कंपनियों का जोर अधिक से अधिक उड़ान भरने और मुनाफा कमाने पर होता है। इसी वजह से कभी उत्तरकाशी जैसे हादसे होते हैं और कभी सड़क पर हार्ड लैंडिंग की तस्वीरें आती हैं। इसका एक पहलू पर्यावरण पर पड़ने वाला नकारात्मक असर भी है।
इंफ्रा की कमी: एविएशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि चार धाम रूट, खासकर केदारनाथ रूट एक पायलट के लिहाज से सबसे चुनौतीपूर्ण है। यहां उड़ानें तो बढ़ी हैं, लेकिन रडार या एयर ट्रैफिक कंट्रोल जैसा जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। पायलटों को केवल अपनी आंख पर भरोसा करके आगे बढ़ना होता है, लेकिन उस ऊंचाई पर, जहां मौसम अचानक करवट ले लेता है, यह बहुत जोखिम भरा है। ऊपर से कंपनियों का लालच इस जोखिम को और बढ़ा देता है।
कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी: कुछ दिनों पहले ही DGCA ने चार धाम कॉरिडोर में उड़ानों की संख्या आधी कर दी और उत्तराखंड सिविल एविएशन डिवेलपमेंट अथॉरिटी के कंट्रोल रूम में अपने ऑफिसर भी नियुक्त किए हैं। हालांकि इसके साथ हेलिकॉप्टर सर्विस देने वाली कंपनियों पर अंकुश की भी जरूरत है। मानकों को और कड़ा किया जाना चाहिए। देश के किसी और हिस्से की तुलना में हिमालय में उड़ान भरना अतिरिक्त सावधानी की मांग करता है।
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