छठ महापर्व का आरंभ 25 अक्टूबर से होने जा रहा है। दिवाली के 6 दिन बाद छठ महापर्व मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पर्व के नाम से जाना जाता है। छठ पूजा में छठी मैया के साथ साथ सूर्यदेव की आराधना की जाती है। छठ के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही जीवन में खुशहाली और दीर्घायु प्राप्त होती है। आइए जानते हैं कौन है छठी मैय्या और क्यों सूर्यदेव को दिया जाता है अर्घ्य।
छठी मैया कौन है?
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने अपने आप को छठ भागों में बांटा था। प्रकृति देवी का जो छठा भाग था वह सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मां के छठे स्वरूप को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जानते हैं। जोकि ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि इनके छठे अंश को छठी मैय्या के नाम से जाना गया है।
छठ पर क्यों होती है छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा
ऐसी मान्यता है कि छठी मैय्या को सूर्यदेव की बहन माना जाता है। इस वजह से छठ के इस पर्व पर छठी मैया और सूर्यदेव दोनों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब किसी नवजात बच्चे का जन्म होता है तो उसके बाद 6 महीने तक छठी मैय्या उनके पास रहती हैं और बच्चों की रक्षा करती हैं।
छठ पर्व से जुड़ी कथाएं
छठ पर्व की जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद थे जिनके कोई संतान नहीं थी। इसके बाद महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इस यज्ञ का प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई लेकिन, वह मरी हुई थी। राजा प्रियंवद बच्चे के वियोग में प्राण त्यागने लगे। उस वक्त ही वहां देवसेना प्रकट हुई और कहा कि हे राजन आप मेरी पूजा करें और बाकी लोगों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करें। संतान की इच्छा रखकर राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। जब से संतान की कामना के लिए भी छठ पूजा की जाने लगी।
छठ पर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है। जब पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने को कहा था। द्रौपदी ने छठ का व्रत किया और उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया।
छठी मैया कौन है?
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने अपने आप को छठ भागों में बांटा था। प्रकृति देवी का जो छठा भाग था वह सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मां के छठे स्वरूप को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जानते हैं। जोकि ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि इनके छठे अंश को छठी मैय्या के नाम से जाना गया है।
छठ पर क्यों होती है छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा
ऐसी मान्यता है कि छठी मैय्या को सूर्यदेव की बहन माना जाता है। इस वजह से छठ के इस पर्व पर छठी मैया और सूर्यदेव दोनों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब किसी नवजात बच्चे का जन्म होता है तो उसके बाद 6 महीने तक छठी मैय्या उनके पास रहती हैं और बच्चों की रक्षा करती हैं।
छठ पर्व से जुड़ी कथाएं
छठ पर्व की जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद थे जिनके कोई संतान नहीं थी। इसके बाद महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इस यज्ञ का प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई लेकिन, वह मरी हुई थी। राजा प्रियंवद बच्चे के वियोग में प्राण त्यागने लगे। उस वक्त ही वहां देवसेना प्रकट हुई और कहा कि हे राजन आप मेरी पूजा करें और बाकी लोगों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करें। संतान की इच्छा रखकर राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। जब से संतान की कामना के लिए भी छठ पूजा की जाने लगी।
छठ पर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है। जब पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने को कहा था। द्रौपदी ने छठ का व्रत किया और उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया।
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