नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी सैन्य तनाव की स्थिति पैदा होती है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दोनों पड़ोसी देशों के शस्त्र भंडार में रखे परमाणु बमों के इस्तेमाल की चिंता सताने लगती है। ‘पृथ्वी को परमाणु विनाश से बचाने के लिए’ पाकिस्तान पर विशेष प्रभाव रखने वाला दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका तुरंत बीच-बचाव की भूमिका में आ जाता है। 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा सैन्य तनाव को खत्म करने में अमेरिकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। भारत की ओर से पहल नहीं : अमेरिका पहली बार ऐसी भूमिका में नहीं दिखा है। पिछले करीब चार दशकों में कम से कम पांच ऐसे मौके आ चुके हैं, जब दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध छिड़ने की बातें हुईं। इन सभी मौकों पर अमेरिका ने अंपायर की भूमिका निभाई। गौर करने की बात यह है कि भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ वर्षों के अंतराल पर युद्ध की स्थिति पैदा होती रही हो, भारत की ओर से कभी अमेरिकी बीच-बचाव के लिए पहल नहीं की गई। इसके बावजूद यह सच है कि बीच-बचाव प्रयासों में अमेरिकी शामिल हुए। 21वीं सदी में दूसरी बार : अस्सी के दशक के मध्य, नब्बे दशक के शुरू, 1999 की करगिल घुसपैठ, 2001 में संसद पर आतंकवादी हमला और फिर इसी 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और परस्पर आरोप-प्रत्यारोप का चिर परिचित माहौल बना। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि अमेरिका के बीच-बचाव के बाद ही भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव दूर किया जा सका है। अटकलों का दौर : जब भी दोनों देशों में सैन्य तनाव की स्थिति पैदा होती है, पाकिस्तान के नेता और जनरल भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी देने लगते हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान ने 1998 में परीक्षण के बाद अपने को परमाणु हथियारों से लैस देश घोषित किया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आशय की अटकलें लगती रही हैं कि भारत ने 1974 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद और पाकिस्तान ने अस्सी के दशक के शुरू में परमाणु बम बना लिए थे। पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कदीर खान ने 1986 में भारतीय पत्रकार कुलदीप नैयर से इस बात का खुलासा किया था कि उनकी प्रयोगशाला के तहखाने में परमाणु बम रखा हुआ है। ऑपरेशन ब्रासटैक्स : 1986 में ही भारतीय सेना ने राजस्थान सीमा पर पांच लाख से अधिक सैनिक जमा कर ऑपरेशन ब्रासटैक्स सैन्य अभ्यास किया तो पाकिस्तानी सेना ने इसे पाकिस्तान में अतिक्रमण की रणनीति से जोड़ते हुए अपने हजारों सैनिकों को भारतीय सीमांत इलाके में रवाना कर दिया। इस वजह से दोनों देशों में तनाव के हालात पैदा हो गए। अमेरिका को भी यह विश्वास था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम हैं। लिहाजा उसने दोनों देशों पर दबाव डाला कि वे सीमा पर से सैन्य जमावड़ा खत्म करें। कश्मीर में अशांति : इसके बाद मई, 1990 में कश्मीर में अशांति पैदा हुई तो भारत ने इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया और नियंत्रण रेखा पर सैन्य जमावड़ा किया। जवाब में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मिर्जा असलम बेग ने भी भारतीय सीमाओं पर सेना भेजी। दोनों देशों के बीच तनाव बढता देख अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार रॉबर्ट गेट्स ने नई दिल्ली और इस्लामाबाद के दौरे किए और दोनों देशों के रिश्तों का तापमान कम किया। करगिल का संघर्ष : नब्बे के दशक के अंत में जब पाकिस्तानी सेना ने करगिल की बर्फीली चोटियों पर जिहादी के भेष में अपने सैनिक भेजकर कब्जा किया तो भारत और पाकिस्तान के बीच अभूतपूर्व तनाव पैदा हुआ और दोनों परमाणु युद्ध के कगार पर आ गए। तब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने बीच-बचाव किया औऱ भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बातचीत के लिए वॉशिंगटन आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अमेरिकी पहल से किनारा करते हुए वॉशिंगटन जाने से इनकार कर दिया, लेकिन नवाज शरीफ चार जुलाई, 1999 को वॉशिंगटन गए और बिल क्लिंटन के निर्देशों का पालन करते हुए करगिल से अपने सैनिक हटाने का एलान किया। ऑपरेशन पराक्रम : इसके बाद भी पाकिस्तान अपनी आतंकवाद समर्थक नीतियां चलाता रहा। 2001 में भारतीय संसद पर भीषण आतंकवादी हमला करवाया गया। तब पाकिस्तान को इसकी समुचित सजा दिलवाने के लिए भारतीय नेतृत्व ने सीमाओं पर ऑपरेशन पराक्रम के तहत अपने लाखों सैनिकों को 18 महीने तक तैनात रखा। पाकिस्तान ने भी जवाबी तैनाती की। उसकी ओर से परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकियां दी जाने लगीं तो अमेरिकी प्रशासन को माहौल शांत करने के लिए बीच-बचाव करना पड़ा। तत्कालीन विदेश मंत्री कोलिन पावेल ने तब मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए तनाव दूर किया। (लेखक सामरिक मामलों के जानकार हैं)
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