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अमेरिका झूठा, चीन दगाबाज... भारत बना भरोसे का इंजन, दुनिया आखिर क्यों कर रही विश्वास?

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नई दिल्ली: दुनिया ने दो महाशक्तियों अमेरिका और चीन का चरित्र देख लिया है। अमेरिका ने अपनी नीतियों से साबित किया है वह किसी का सगा नहीं है। वो आज जो कह रहा है, उस पर कल टिकेगा इसकी गारंटी नहीं है। चीन ब्लैकमेलर और दगाबाज के तौर पर सामने आया है। चीन की 'डेट-ट्रैप डिप्लोमेसी' (कर्ज जाल कूटनीति) कई देशों का बेड़ागर्क कर चुकी है। गरीब देशों को बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए कर्ज देकर वह उन्‍हें अपना गुलाम बना लेता है। उसकी विस्तारवादी सोच के बारे में भी सभी को पता है। इन दोनों से अलग भारत ने अपनी अलग छवि बनाई है। पिछले कुछ सालों में वह बड़ी महाशक्ति के तौर पर उभरा है। लेकिन, वह अपनी तरक्की के साथ दुनिया को जोड़ रहा है। भारत ग्लोबल इंजन बनकर आगे आया है। उस पर दुनिया के बढ़ते भरोसे का यही सबसे बड़ा कारण है।



बीते दिनों मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईओ) वी अनंत नागेश्वरन ने भी भारत की इस खूबी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत आज अनिश्चितताओं से जूझ रही दुनिया में एक उम्मीद की किरण बना हुआ है। उन्होंने यह बात वैश्विक चुनौतियों के बावजूद देश के स्थिर आर्थिक प्रदर्शन को देखते हुए कही। सीईओ ने कहा कि 2022 से संघर्ष और व्यवधान वैश्विक स्तर पर बने हुए हैं। लेकिन, ये और भी ज्यादा गंभीर और अप्रत्याशित हो गए हैं। इससे राजनीतिक, आर्थिक या सुरक्षा से जुड़ा माहौल दुनिया भर में विकास के लिए और भी मुश्किल हो गया है।



निवेशकों का बढ़ा है भरोसा

पश्चिम एशिया में तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्षों के साथ टैरिफ युद्धों के कारण वैश्विक अनिश्चितता बढ़ी है। लेकिन, इन परिस्थितियों में भी भारत वास्तव में एक 'उम्मीद की किरण' के रूप में खड़ा है। कोरोना महामारी के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था ने मजबूती दिखाई है। इसने मजबूत विकास हासिल किया है। अपनी वित्तीय स्थिति में भी सुधार किया है। इससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। यह भारत और अमेरिका के 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड के बीच घटते अंतर में दिखता है। सीईए ने कहा कि भारत की मौजूदा 6.5 फीसदी की ग्रोथ इन परिस्थितियों में महत्वपूर्ण उपलब्धि है।



नागेश्वरन के अनुसार, 2008 के वित्तीय संकट के बाद से वैश्विक माहौल जितना कठिन हो गया है, उसे देखते हुए इस दर को बनाए रखना कोई छोटी बात नहीं है। सरकार विकास दर को 7 फीसदी और उससे आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। लेकिन, उन्होंने चेतावनी दी कि दुनिया अब उन अनुकूल परिस्थितियों में काम नहीं कर रही है, जिनमें वह पहले करती थी।



अमेरिका और चीन ने खोया है भरोसाहाल ही के वर्षों में अमेरिका में आंतरिक राजनीतिक ध्रुवीकरण और विदेश नीति में अनिश्चितता ने कुछ देशों के विश्वास को हिलाया है। उसकी बदलती विदेश नीतियों और वादों से पीछे हटने (जैसे अफगानिस्तान से सैनिकों की अचानक वापसी) का पैटर्न देखने को मिला है। कुछ देश अमेरिका पर अपने भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए कभी-कभी दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हैं।



दूसरी तरफ चीन की 'डेब्ट-ट्रैप डिप्लोमेसी' गरीब देशों को संकट में डालने वाली साबित हुई है। बड़े बुनियादी ढांचा प्रोजेक्टों के लिए कर्ज देकर चीन ने उन्हें भारी कर्ज तले दबा दिया है। श्रीलंका, मालदीव जैसे देश इसका उदाहरण हैं। दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दावे और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अनदेखी जगजाहिर है। चीन पर व्यापार असंतुलन और बौद्धिक संपदा की चोरी के आरोप लगते रहे हैं।



भारत ने भरोसे का इंजन बनकर जीता है विश्वासभारत लंबे समय से गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रहा है। उसने वैश्विक मामलों में अपेक्षाकृत स्वतंत्र रुख बनाए रखा है। इससे उसे विभिन्न गुटों के बीच एक भरोसेमंद मध्यस्थ के रूप में देखा जा सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत साझा लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने वाले देशों के लिए एक प्राकृतिक भागीदार है। भारत तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। उसे ग्लोबल सप्लाई चेन के विविधीकरण (चीन+1 रणनीति) में महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। उसने आपदा राहत, वैक्सीन डिप्लोमेसी (कोविड-19 के दौरान) और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर सक्रिय रूप से सहयोग किया है।

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