पूर्णिया: पूर्णिया जिले के कसबा विधानसभा क्षेत्र का चुनाव 'अजूबा' हो गया है। कल तक जो दलीय प्रत्याशी के रूप में पार्टी के तारणहार थे, आज वे निर्दलीय उम्मीदवार हैं। और जो कहीं राजनीति की मुख्यधारा में नहीं थे, वे दलीय प्रत्याशी बन कर चुनावी रण में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। दिलचस्प तो यह है कि दोनों गठबंधन एनडीए और महागठबंधन ने यह अजीबोगरीब खेला कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के इस अजीबोगरीब 'जंग' में जिताऊ समीकरण भी अजीब बन जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चलिए जानते हैं कसवा की 'चुनावी जंग' को...
वर्ष 2020 के विधानसभा में क्या हुआ था?वर्ष 2020 के कसबा विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के आफाक आलम ने लोजपा के प्रदीप दास को चुनावी जंग में परास्त किया था। तब कांग्रेस के अफाक आलम ने लोजपा के प्रदीप दास को 14 हजार से ज्यादा मतों से परास्त किया था।आफाक आलम को तब 77410 मत मिले थे और लोजपा के प्रदीप दास को 60132 मत मिले थे।
वर्ष 2025 विधानसभा के उम्मीदवार
11 नवंबर को कसबा विधानसभा का चुनाव होना है। इस बार दलीय प्रत्याशी के नाम ने राजनीतिक जगत को चौंकाया है। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में कसबा के न तो सीटिंग विधायक को पार्टी ने टिकट दिया और न ही दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को ही पार्टी ने टिकट दिया। सीटिंग विधायक कांग्रेस के थे और रनर लोजपा के थे। कांग्रेस ने इस बार सीटिंग विधायक मो. अफाक आलम का टिकट काट कर मो इरफान आलम को टिकट दिया है और लोजपा (आर) ने इस बार रनर रहे प्रदीप दास को विराम दे कर नितेश कुमार सिंह को चुनावी जंग में उतारा है।
कौन हैं ये अफाक आलम और प्रदीप दास
कांग्रेस ने जिस अफाक आलम का टिकट काटा है, वो वर्ष 2010, 2015 और 2020 का चुनावी जंग जीत कर विधायक बने थे। वही प्रदीप दास 1995, 2000 और 2005 (अक्टूबर) के चुनाव में बीजेपी के विधायक रहे थे। लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी के शिकार इन दोनों नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने टिकट से बेदखल कर दिया है।
क्या हो रहा है कसबा के चुनावी रण में?
कसबा विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या लगभग 40 प्रतिशत है। इसके बाद सर्वाधिक आबादी वैश्य और महादलित समुदाय की है। चुनावी रण में गठबंधन के प्रत्याशी के साथ आम तौर से उनका जातीय समीकरण होता है। महागठबंधन का एमवाई तो एनडीए का सवर्ण और वैश्य मत का सहारा है। अन्य वोटों की बात करें तो महागठबंधन के साथ मल्लाह तो एनडीए के साथ पासवान का वोट जुड़ता है।
लेकिन इन समीकरणों के बाबजूद बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक अफाक आलम और पूर्व विधायक प्रदीप दास कसबा विधानसभा के चुनाव को चतुष्कोणीय बना डाला है। अब यहां के जीत का आधार वोट प्रतिशत बनने जा रहा है। जुड़े और कटे मतदाता की विचारधारा क्या है,इस पर भी कसबा विधानसभा का चुनाव प्रभावित होगा।
वर्ष 2020 के विधानसभा में क्या हुआ था?वर्ष 2020 के कसबा विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के आफाक आलम ने लोजपा के प्रदीप दास को चुनावी जंग में परास्त किया था। तब कांग्रेस के अफाक आलम ने लोजपा के प्रदीप दास को 14 हजार से ज्यादा मतों से परास्त किया था।आफाक आलम को तब 77410 मत मिले थे और लोजपा के प्रदीप दास को 60132 मत मिले थे।
वर्ष 2025 विधानसभा के उम्मीदवार
11 नवंबर को कसबा विधानसभा का चुनाव होना है। इस बार दलीय प्रत्याशी के नाम ने राजनीतिक जगत को चौंकाया है। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव में कसबा के न तो सीटिंग विधायक को पार्टी ने टिकट दिया और न ही दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को ही पार्टी ने टिकट दिया। सीटिंग विधायक कांग्रेस के थे और रनर लोजपा के थे। कांग्रेस ने इस बार सीटिंग विधायक मो. अफाक आलम का टिकट काट कर मो इरफान आलम को टिकट दिया है और लोजपा (आर) ने इस बार रनर रहे प्रदीप दास को विराम दे कर नितेश कुमार सिंह को चुनावी जंग में उतारा है।
कौन हैं ये अफाक आलम और प्रदीप दास
कांग्रेस ने जिस अफाक आलम का टिकट काटा है, वो वर्ष 2010, 2015 और 2020 का चुनावी जंग जीत कर विधायक बने थे। वही प्रदीप दास 1995, 2000 और 2005 (अक्टूबर) के चुनाव में बीजेपी के विधायक रहे थे। लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी के शिकार इन दोनों नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने टिकट से बेदखल कर दिया है।
क्या हो रहा है कसबा के चुनावी रण में?
कसबा विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या लगभग 40 प्रतिशत है। इसके बाद सर्वाधिक आबादी वैश्य और महादलित समुदाय की है। चुनावी रण में गठबंधन के प्रत्याशी के साथ आम तौर से उनका जातीय समीकरण होता है। महागठबंधन का एमवाई तो एनडीए का सवर्ण और वैश्य मत का सहारा है। अन्य वोटों की बात करें तो महागठबंधन के साथ मल्लाह तो एनडीए के साथ पासवान का वोट जुड़ता है।
लेकिन इन समीकरणों के बाबजूद बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक अफाक आलम और पूर्व विधायक प्रदीप दास कसबा विधानसभा के चुनाव को चतुष्कोणीय बना डाला है। अब यहां के जीत का आधार वोट प्रतिशत बनने जा रहा है। जुड़े और कटे मतदाता की विचारधारा क्या है,इस पर भी कसबा विधानसभा का चुनाव प्रभावित होगा।
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