नई दिल्ली: विदेशी निवेशकों ने इस साल भारतीय बाजारों से करीब 17 अरब डॉलर (करीब 1.50 लाख करोड़ रुपये) निकाल लिए हैं। इस बड़ी निकासी से घबराकर भारत अपने वित्तीय क्षेत्र में बड़े सुधार करने की कोशिश कर रहा है। इसका मकसद है कि देश में और ज्यादा पैसा आए और निवेश बढ़े। खासकर तब, जब अमेरिका के टैरिफ की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की चिंताएं बढ़ रही हैं।
हाल के महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) और बाजार नियामक सेबी ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने और लोन को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें कंपनियों के लिए शेयर बाजार में लिस्ट होने की प्रक्रिया को आसान बनाना शामिल है। साथ ही विदेशी फंडों और विदेशी बैंकों के लिए भारत में आने के रास्ते भी खोले गए हैं। ऐसे नियम भी बनाए गए हैं जिनसे कंपनियां आसानी से कर्ज ले सकें और बैंक विलय (मर्जर) के लिए पैसा दे सकें।
क्या है सरकार का प्लान?रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भारत के 260 अरब डॉलर के वित्तीय क्षेत्र में अगले छह से बारह महीनों में और भी कई नियमों को आसान बनाने पर विचार चल रहा है। इन संभावित बदलावों में छोटे शहरों के आम निवेशकों को शेयर बाजार में ज्यादा भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना और बैंकिंग नियमों को और ढीला करना शामिल है।
यह दशकों पुराने नियमों को खत्म करने का कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आर्थिक रूप से और आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं। अमेरिका के टैरिफ की वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले असर की चिंताओं ने विदेशी निवेशकों को परेशान कर दिया है।
इस साल कैसा रहा निवेश?इस साल विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों में करीब 17 अरब डॉलर की बिकवाली की है। इसकी तुलना में साल 2024 में 124 मिलियन डॉलर का निवेश आया था और साल 2023 में 20 अरब डॉलर का निवेश आया था। इस बिकवाली के कारण भारत विदेशी पोर्टफोलियो निकासी के मामले में एशिया का सबसे ज्यादा प्रभावित बाजार बन गया है।
क्या चीन की राह पर चल रहा भारत?भारत में नियमों को धीरे-धीरे ढीला करने का यह कदम चीन द्वारा हाल के महीनों में उठाए गए कदमों के साथ मेल खाता है। चीन ने विदेशी निवेशकों के लिए अपने स्टॉक ऑप्शन बाजार को खोला है और अपने बॉन्ड रीपरचेज बाजार में विदेशी पहुंच का विस्तार किया है। सूत्रों का कहना है कि इन नियामक बदलावों का मकसद व्यापार-अनुकूल माहौल बनाना, विदेशी निवेश को फिर से बढ़ाना और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना है।
हाल के महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) और बाजार नियामक सेबी ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने और लोन को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें कंपनियों के लिए शेयर बाजार में लिस्ट होने की प्रक्रिया को आसान बनाना शामिल है। साथ ही विदेशी फंडों और विदेशी बैंकों के लिए भारत में आने के रास्ते भी खोले गए हैं। ऐसे नियम भी बनाए गए हैं जिनसे कंपनियां आसानी से कर्ज ले सकें और बैंक विलय (मर्जर) के लिए पैसा दे सकें।
क्या है सरकार का प्लान?रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भारत के 260 अरब डॉलर के वित्तीय क्षेत्र में अगले छह से बारह महीनों में और भी कई नियमों को आसान बनाने पर विचार चल रहा है। इन संभावित बदलावों में छोटे शहरों के आम निवेशकों को शेयर बाजार में ज्यादा भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना और बैंकिंग नियमों को और ढीला करना शामिल है।
यह दशकों पुराने नियमों को खत्म करने का कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आर्थिक रूप से और आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं। अमेरिका के टैरिफ की वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले असर की चिंताओं ने विदेशी निवेशकों को परेशान कर दिया है।
इस साल कैसा रहा निवेश?इस साल विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों में करीब 17 अरब डॉलर की बिकवाली की है। इसकी तुलना में साल 2024 में 124 मिलियन डॉलर का निवेश आया था और साल 2023 में 20 अरब डॉलर का निवेश आया था। इस बिकवाली के कारण भारत विदेशी पोर्टफोलियो निकासी के मामले में एशिया का सबसे ज्यादा प्रभावित बाजार बन गया है।
क्या चीन की राह पर चल रहा भारत?भारत में नियमों को धीरे-धीरे ढीला करने का यह कदम चीन द्वारा हाल के महीनों में उठाए गए कदमों के साथ मेल खाता है। चीन ने विदेशी निवेशकों के लिए अपने स्टॉक ऑप्शन बाजार को खोला है और अपने बॉन्ड रीपरचेज बाजार में विदेशी पहुंच का विस्तार किया है। सूत्रों का कहना है कि इन नियामक बदलावों का मकसद व्यापार-अनुकूल माहौल बनाना, विदेशी निवेश को फिर से बढ़ाना और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना है।
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