नई दिल्ली: भारतीय परंपरा पर चलने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने बीते 100 वर्षों के अपने अभियान में समय और काल के साथ कई परिवर्तनकारी कदम भी उठाए हैं। जैसे संघ के स्वयंसेवक अब हाफ पैंट से फुलपैंट में आ चुके हैं। इसी कड़ी में आरएसएस ने टेक्नोलॉजी और उसके प्रति दीवानी युवा पीढ़ी के साथ तालमेल बिठाए रखने के लिए खुद को समय-समय पर ढालने की भी कोशिश की है। जिस समय दुनिया में Gen Z चर्चा में हैं, उस समय आरएसएस भी इस वर्ग में बहुत ही सक्रियता के साथ सकारात्मक रूप से कदम ताल कर रहा है। सबसे बड़ी बात है कि बच्चों के माता-पिता भी मोबाइल की बढ़ती लत को देखते हुए, उन्हें संघ की शाखाओं में भेजने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं।
Gen Z के जमाने में बदल रहा है संघ
1925 में अपनी स्थापना के समय से आरएसएस के स्वयंसेवक सादगी और जमीनी स्तर पर पूरी लगन के साथ योगदान देने के लिए ही जाने जाते रहे हैं। सुबह की प्रभात शाखा से लेकर शाम की सांय शाखा तक स्वयंसेवकों को सादगी, सच्चरित्रता और अनुशासन का ही पाठ पढ़ाया जाता रहा है, जिसका परम लक्ष्य सामाजिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद रहा है। लेकिन, Gen Z के जमाने में संघ ने भी अपने आपको बदलती हुई दुनिया के साथ ढालना शुरू कर दिया है।
टेक्नोलॉजी, एआई चर्चा के अहम विषय
आज संघ की शाखाओं और बौद्धिक गोष्ठियों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर भी बात की जाने लगी है तो टेक्नोलॉजी में हो रहे बदलाव भी चर्चा का विषय होता है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इसके पीछे संघ के ढांचे में Gen Z को जोड़े रखने की रणनीति है। संघ अपनी शाखाओं के जरिए अगली पीढ़ी का नेता और स्वयंसेवक भी तैयार करता रहा है, जिसमें अब टेक्नोलॉजी से दूर रहना मुश्किल है। रिपोर्ट में संघ के कुछ ऐसे ही स्वयंसेवकों से बातचीत के आधार पर जो कुछ सामने आया है, उससे शताब्दी वर्ष में संघ में आ चुके और आ रहे बदलावों की तस्वीर साफ होती है।
टिफिन पार्टी, वॉकथॉन और डिनर भी हिस्सा
मसलन, पुणे के एक पॉश कॉलोनी में रहने वाले 18 वर्षीय कंप्यूटर इंजीनियर सोहम जोशी एक शाखा प्रमुख हैं। वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो संघ से जुड़े हैं। उन्होंने शाखा में बढ़ने वाले किशोरों की तादाद को लेकर बड़ी रोचक जानकारी दी है और कहा है कि इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि शारीरिक प्रशिक्षण से अब शाखा में और भी ज्यादा कुछ हो रहा है। सांय शाखाओं में राजनीति, सामाजिक मुद्दों के साथ एआई की चुनौतियों पर भी विचार हो रहा है। वे युवाओं को जोड़ने के लिए टिफिन पार्टी, वॉकथॉन और डिनर भी आयोजित करते हैं, ताकि जुड़ाव और बढ़ सके।
देश में लग रहे 83,000 से ज्यादा शाखा
आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर के मुताबिक आज देश में शाखाओं की संख्या 83,000 से ज्यादा हो चुकी है। उनका कहना है,'जब नागपुर में आरएसएस ने शुरू किया था, शाखा में मात्र 17 स्वयंसेवक थे। आज हम देश भर में साप्ताहिक 32,000 बैठकों के अलावा प्रतिदिन 83,000 से अधिक शाखा लगा रहे हैं।'
माता-पिता का भी शाखा के प्रति रुझान
पुणे के ही एक और 24 वर्षीय युवा सौमित्र मंडके मोबाइल के जमाने में युवाओं के बीच संघ के प्रति झुकाव की एक बहुत ही सकारात्मक तस्वीर पेश की है। वो विवेकानंद सांय शाखा का बाल विभाग संभालते हैं। उनका कहना है कि 13 साल पहले जब वह संघ से जुड़े थे, तब से अब में बहुत बदलाव हो चुका है। आज उनकी शाखा में कई ऐसे बच्चे आ रहे हैं, जिनके परिवार में पहले कोई शाखा नहीं गया। इसके पीछे वह बच्चों में मोबाइल की बढ़ती लत को वजह बता रहे हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता उन्हें यह सोचकर शाखा में भेज रहे हैं,ताकि वह शारीरिक गतिविधियों से भी जुड़ें और उनके जीवन में अनुशासन भी आए।
खेल और सोशल नेटवर्किंग अहम कड़ी
मंडके का कहना है कि Gen Z का शाखाओं से बढ़ते जुड़ाव का एक कारण यह भी है कि चेस और एथलेटिक्स के प्रतियोगी टूर्नामेंट करवाए जाते हैं। शाखाओं में सालाना सैकड़ों खेल आयोजित हो रहे हैं और युवाओं के आकर्षण का यह बहुत बड़ा कारण बन रहा है। इसके अलावा शाखा से जुड़े होने की वजह से एक जो सामाजिक नेटवर्क बन रहा है, जिसमें हर स्वयंसेवक किसी भी परिस्थिति में एक-दूसरे की सहायता के लिए तैयार रहते हैं, यह युवाओं को तेजी से अपनी ओर खींच रहा है।
Gen Z के जमाने में बदल रहा है संघ
1925 में अपनी स्थापना के समय से आरएसएस के स्वयंसेवक सादगी और जमीनी स्तर पर पूरी लगन के साथ योगदान देने के लिए ही जाने जाते रहे हैं। सुबह की प्रभात शाखा से लेकर शाम की सांय शाखा तक स्वयंसेवकों को सादगी, सच्चरित्रता और अनुशासन का ही पाठ पढ़ाया जाता रहा है, जिसका परम लक्ष्य सामाजिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद रहा है। लेकिन, Gen Z के जमाने में संघ ने भी अपने आपको बदलती हुई दुनिया के साथ ढालना शुरू कर दिया है।
टेक्नोलॉजी, एआई चर्चा के अहम विषय
आज संघ की शाखाओं और बौद्धिक गोष्ठियों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर भी बात की जाने लगी है तो टेक्नोलॉजी में हो रहे बदलाव भी चर्चा का विषय होता है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इसके पीछे संघ के ढांचे में Gen Z को जोड़े रखने की रणनीति है। संघ अपनी शाखाओं के जरिए अगली पीढ़ी का नेता और स्वयंसेवक भी तैयार करता रहा है, जिसमें अब टेक्नोलॉजी से दूर रहना मुश्किल है। रिपोर्ट में संघ के कुछ ऐसे ही स्वयंसेवकों से बातचीत के आधार पर जो कुछ सामने आया है, उससे शताब्दी वर्ष में संघ में आ चुके और आ रहे बदलावों की तस्वीर साफ होती है।
टिफिन पार्टी, वॉकथॉन और डिनर भी हिस्सा
मसलन, पुणे के एक पॉश कॉलोनी में रहने वाले 18 वर्षीय कंप्यूटर इंजीनियर सोहम जोशी एक शाखा प्रमुख हैं। वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो संघ से जुड़े हैं। उन्होंने शाखा में बढ़ने वाले किशोरों की तादाद को लेकर बड़ी रोचक जानकारी दी है और कहा है कि इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि शारीरिक प्रशिक्षण से अब शाखा में और भी ज्यादा कुछ हो रहा है। सांय शाखाओं में राजनीति, सामाजिक मुद्दों के साथ एआई की चुनौतियों पर भी विचार हो रहा है। वे युवाओं को जोड़ने के लिए टिफिन पार्टी, वॉकथॉन और डिनर भी आयोजित करते हैं, ताकि जुड़ाव और बढ़ सके।
देश में लग रहे 83,000 से ज्यादा शाखा
आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर के मुताबिक आज देश में शाखाओं की संख्या 83,000 से ज्यादा हो चुकी है। उनका कहना है,'जब नागपुर में आरएसएस ने शुरू किया था, शाखा में मात्र 17 स्वयंसेवक थे। आज हम देश भर में साप्ताहिक 32,000 बैठकों के अलावा प्रतिदिन 83,000 से अधिक शाखा लगा रहे हैं।'
माता-पिता का भी शाखा के प्रति रुझान
पुणे के ही एक और 24 वर्षीय युवा सौमित्र मंडके मोबाइल के जमाने में युवाओं के बीच संघ के प्रति झुकाव की एक बहुत ही सकारात्मक तस्वीर पेश की है। वो विवेकानंद सांय शाखा का बाल विभाग संभालते हैं। उनका कहना है कि 13 साल पहले जब वह संघ से जुड़े थे, तब से अब में बहुत बदलाव हो चुका है। आज उनकी शाखा में कई ऐसे बच्चे आ रहे हैं, जिनके परिवार में पहले कोई शाखा नहीं गया। इसके पीछे वह बच्चों में मोबाइल की बढ़ती लत को वजह बता रहे हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता उन्हें यह सोचकर शाखा में भेज रहे हैं,ताकि वह शारीरिक गतिविधियों से भी जुड़ें और उनके जीवन में अनुशासन भी आए।
खेल और सोशल नेटवर्किंग अहम कड़ी
मंडके का कहना है कि Gen Z का शाखाओं से बढ़ते जुड़ाव का एक कारण यह भी है कि चेस और एथलेटिक्स के प्रतियोगी टूर्नामेंट करवाए जाते हैं। शाखाओं में सालाना सैकड़ों खेल आयोजित हो रहे हैं और युवाओं के आकर्षण का यह बहुत बड़ा कारण बन रहा है। इसके अलावा शाखा से जुड़े होने की वजह से एक जो सामाजिक नेटवर्क बन रहा है, जिसमें हर स्वयंसेवक किसी भी परिस्थिति में एक-दूसरे की सहायता के लिए तैयार रहते हैं, यह युवाओं को तेजी से अपनी ओर खींच रहा है।
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