अजमेर: राजस्थान के अजमेर जिले में उपभोक्ता आयोग ने भ्रामक विज्ञापन के मामले में बड़ी कार्रवाई की है। आयोग ने बोरोप्लस एंटीसेप्टिक क्रीम को 'विश्व की नंबर वन क्रीम' बताने के दावे को झूठा करार देते हुए निर्माता कंपनी 'इमामी' पर 30 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही कंपनी को सुधारात्मक विज्ञापन जारी करने और भविष्य में इस तरह के भ्रामक दावे न करने की सख्त हिदायत दी गई है।
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एडवोकेट तरुण अग्रवाल की याचिका पर फैसला
यह फैसला अजमेर के एडवोकेट तरुण अग्रवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया। अग्रवाल ने उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी कि वे लंबे समय से बोरोप्लस क्रीम का उपयोग कर रहे हैं। कंपनी ने समाचार पत्र में क्रीम को 'विश्व की नंबर वन क्रीम' बताया था। वहीं, कंपनी की वेबसाइट पर इसे 'भारत की नंबर वन क्रीम' कहा गया और पैकेजिंग पर 'भारत में सबसे अधिक बिकने वाली क्रीम' का दावा किया गया।
तीन अलग-अलग दावों पर उठे सवाल
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि कंपनी ने अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर भिन्न-भिन्न दावे किए, जो उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाले हैं। यह भ्रामक विज्ञापन की श्रेणी में आता है। आयोग ने इसे सार्वजनिक हित का मामला मानते हुए इमामी को 5000 रुपये परिवाद व्यय और 25000 रुपये राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा कराने का आदेश दिया।
सुधारात्मक विज्ञापन जारी करने के आदेश
साथ ही, आयोग ने कंपनी को आदेश दिया कि वह भ्रामक विज्ञापन को सुधारने के लिए सार्वजनिक रूप से सुधारात्मक विज्ञापन जारी करे। इसके अतिरिक्त, बिना किसी वैधानिक प्रमाण के भविष्य में 'विश्व की नंबर वन' जैसे दावे दोबारा करने पर रोक लगाई गई है। इस फैसले को उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में अहम माना जा रहा है, जो झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने का उदाहरण पेश करता है।
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एडवोकेट तरुण अग्रवाल की याचिका पर फैसला
यह फैसला अजमेर के एडवोकेट तरुण अग्रवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया। अग्रवाल ने उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी कि वे लंबे समय से बोरोप्लस क्रीम का उपयोग कर रहे हैं। कंपनी ने समाचार पत्र में क्रीम को 'विश्व की नंबर वन क्रीम' बताया था। वहीं, कंपनी की वेबसाइट पर इसे 'भारत की नंबर वन क्रीम' कहा गया और पैकेजिंग पर 'भारत में सबसे अधिक बिकने वाली क्रीम' का दावा किया गया।
तीन अलग-अलग दावों पर उठे सवाल
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि कंपनी ने अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर भिन्न-भिन्न दावे किए, जो उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाले हैं। यह भ्रामक विज्ञापन की श्रेणी में आता है। आयोग ने इसे सार्वजनिक हित का मामला मानते हुए इमामी को 5000 रुपये परिवाद व्यय और 25000 रुपये राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा कराने का आदेश दिया।
सुधारात्मक विज्ञापन जारी करने के आदेश
साथ ही, आयोग ने कंपनी को आदेश दिया कि वह भ्रामक विज्ञापन को सुधारने के लिए सार्वजनिक रूप से सुधारात्मक विज्ञापन जारी करे। इसके अतिरिक्त, बिना किसी वैधानिक प्रमाण के भविष्य में 'विश्व की नंबर वन' जैसे दावे दोबारा करने पर रोक लगाई गई है। इस फैसले को उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में अहम माना जा रहा है, जो झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने का उदाहरण पेश करता है।
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