रामपुर: उत्तर प्रदेश के रामपुर दो दिनों से चर्चा में बना हुआ है। सीतापुर जेल से निकल कर यूपी की राजनीति के कद्दावर चेहरे आजम खान अपने गृह क्षेत्र रामपुर पहुंच चुके हैं। इसके बाद अब प्रदेश की राजनीति में एक नया विवाद शुरू हो गया है। क्या आजम खान समाजवादी पार्टी छोड़ने वाले हैं। उन्होंने रामपुर पहुंचते ही जिस प्रकार से अपने तेवर दिखाए हैं, उसने सवाल खड़ा कर दिया है। सीतापुर जेल से निकलकर रामपुर पहुंचते ही आजम खान ने जिस प्रकार के तेवर दिखाए हैं, वह कई चीजों को सामने ला रहा है। सभी निगाहें इस पर टिक गई हैं कि आजम का अगला कदम क्या होगा? हालांकि, जेल से बाहर आने के बाद मीडिया से बातचीत में बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने के सवाल पर आजम ने कहा कि कयास लगाने वालों से पूछिए...।
आजम ने नहीं दिया कोई स्पष्ट जवाबसीतापुर जेल से रिहा होने के बाद रामपुर लौटने के क्रम में धमोरा में मीडिया से चलते-चलते बातचीत के दौरान आजम खान ने जेल में बिताए गए समय पर कहा कि पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है। बसपा में शामिल होने को लेकर चल रही अटकलें पर उन्होंने कहा कि अभी इस पर कुछ नहीं कह सकते। यह पूछे जाने पर कि क्या सपा मुखिया अखिलेश यादव से कोई बातचीत हुई?
आजम खान ने इस पर कहा कि जेल में किसी से भी फोन पर बात करने की अनुमति नहीं थी। सक्रिय राजनीति के बारे में उन्होंने कहा कि अभी अपना इलाज कराऊंगा। सेहत ठीक होने के बाद ही अगला कदम तय करेंगे। ऐसे में आजम के विरोधी उनके अगले कदम को लेकर अनुमान लगाने में जुट गए हैं।
अखिलेश की तीन टेंशन:आजम खान ने भले ही बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने को लेकर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया, लेकिन इन कयासबाजियों का वे सीधे खंडन भी नहीं करते दिखे। 2022 में भी जब आजम खान सीतापुर जेल से निकलने वाले थे, उनकी नाराजगी के चर्चे थे। हालांकि, उस दौरान शिवपाल यादव सीतापुर जेल पहुंचे थे। उन्होंने जेल के बाहर आजम की आगवानी की थी। इस बार का नजारा अलग रहा। आजम खान के बेटे और समर्थक सीतापुर जेल के बाहर जुटे। एक प्रकार से शक्ति प्रदर्शन करते हुए आजम खान सीतापुर से रामपुर पहुंचे।
सीतापुर से रामपुर की दूरी करीब 240 किलोमीटर है। अमूमन कार से इस दूरी को तीन घंटे में तय कर लिया जाता है। आजम की रिहाई के बाद इस दूरी को तय करने में दोगुना समय लग गया। इसका कारण रहा कि आजम को लेकर सीतापुर जेल छह दर्जन गाड़ियां पहुंच गई थीं। रास्ते में काफिला और बड़ा होता चला गया। यह एक प्रकार से लखनऊ को संदेश देना था। अगर आजम अब राह बदलते हैं तो अखिलेश की टेंशन ऐसे बढ़ सकती है...
पहली टेंशन- पीडीए पॉलिटिक्स: अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के जरिए अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया है। माय(मुस्लित+यादव) समीकरण से आगे बढ़ते हुए गैर यादव ओबीसी और दलित जातियों को जोड़ने में अखिलेश यादव कामयाब रहे। पिछले दो चुनावों, यूपी चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024, में समाजवादी पार्टी को एकमुश्त अल्पसंख्यक वोट बैंक का समर्थन मिलता रहा है। आजम के रुख बदलने के बाद इसमें सेंधमारी की आशंका बढ़ने लगी है।
दूसरी टेंशन- समर्थकों का भरोसा: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अखिलेश यादव पर समर्थन करने वालों को जोड़कर रखने में असफल रहने का ठप्पा लगा था। यूपी चुनाव 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन हुआ। चुनाव के बाद यह टूट गया। चुनाव से पहले ही चाचा शिवपाल यादव सपा छोड़ गए थे। लोकसभा चुनाव 2019 में पिछली तमाम असहमतियों को भुलाते हुए सपा-बसपा ने गठबंधन किया। यह भी चुनाव खत्म होते ही टूट गया। यूपी चुनाव 2022 के बाद अखिलेश के साथ जुड़े महान दल, सुभासपा आदि एक-एक कर बिखड़ते गए। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस-सपा गठबंधन फिर हुआ और अब तक बरकरार है। ऐसे में आजम के जाने के बाद एक बार फिर समर्थकों का भरोसा घटने की आशंका है।
तीसरी टेंशन- मजबूत छवि पर डेंट: लोकसभा चुनाव के बाद से अखिलेश यादव ने यूपी की राजनीति में अपनी छवि मजबूत की है। लखनऊ से दिल्ली तक वे दमदार तरीके से भाजपा को घेरते रहे हैं। ऐसे में अगर उनकी पार्टी का एक बड़ा नेता साथ छोड़ता है तो एक बार फिर उनकी छवि पर धब्बा लगेगा। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ पर जिस प्रकार से अभी वे हमलावर दिखते हैं। चुनाव आयोग पर हमला कर रह हैं। आजम खान के एक्शन के बाद उनकी नीतियों पर सवाल उठेगा।
बनी हुई है ऊहापोह की स्थितिआजम खान के समाजवादी पार्टी छोड़ने या बने रहने को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। इस बीच दोनों तरह के बयान सामने आ रहे हैं। अखिलेश यादव ने आजम के रिहा होते ही सपा की सरकार बनने पर सभी केस वापस लेने की बात कही। शिवपाल यादव ने भी कहा कि आजम खान कहीं नहीं जाएंगे। वहीं, सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष एवं आजम के करीबी वीरेंद्र गोयल भी कह रहे हैं कि आजम खान सपा के संस्थापक सदस्य हैं। उन्होंने सपा के विधान को लिखा है। ऐसे में वे कहीं नहीं जाएंगे।
हालांकि, समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता और पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन का बयान सामने आया है। आजम की रिहाई पर पूर्व सांसद ने कहा कि आजम पार्टी के बड़े नेता हैं। हम उनसे मिलने रामपुर जाएंगे। सपा छोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं। जिस घर को उन्होंने बनाया है, उसे कैसे छोड़कर चले जाएंगे। अगर परिस्थितिवस लोगों के बहकावे में अकर इधर-उधर चले भी गए तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
आजम ने नहीं दिया कोई स्पष्ट जवाबसीतापुर जेल से रिहा होने के बाद रामपुर लौटने के क्रम में धमोरा में मीडिया से चलते-चलते बातचीत के दौरान आजम खान ने जेल में बिताए गए समय पर कहा कि पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है। बसपा में शामिल होने को लेकर चल रही अटकलें पर उन्होंने कहा कि अभी इस पर कुछ नहीं कह सकते। यह पूछे जाने पर कि क्या सपा मुखिया अखिलेश यादव से कोई बातचीत हुई?
आजम खान ने इस पर कहा कि जेल में किसी से भी फोन पर बात करने की अनुमति नहीं थी। सक्रिय राजनीति के बारे में उन्होंने कहा कि अभी अपना इलाज कराऊंगा। सेहत ठीक होने के बाद ही अगला कदम तय करेंगे। ऐसे में आजम के विरोधी उनके अगले कदम को लेकर अनुमान लगाने में जुट गए हैं।
अखिलेश की तीन टेंशन:आजम खान ने भले ही बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने को लेकर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया, लेकिन इन कयासबाजियों का वे सीधे खंडन भी नहीं करते दिखे। 2022 में भी जब आजम खान सीतापुर जेल से निकलने वाले थे, उनकी नाराजगी के चर्चे थे। हालांकि, उस दौरान शिवपाल यादव सीतापुर जेल पहुंचे थे। उन्होंने जेल के बाहर आजम की आगवानी की थी। इस बार का नजारा अलग रहा। आजम खान के बेटे और समर्थक सीतापुर जेल के बाहर जुटे। एक प्रकार से शक्ति प्रदर्शन करते हुए आजम खान सीतापुर से रामपुर पहुंचे।
सीतापुर से रामपुर की दूरी करीब 240 किलोमीटर है। अमूमन कार से इस दूरी को तीन घंटे में तय कर लिया जाता है। आजम की रिहाई के बाद इस दूरी को तय करने में दोगुना समय लग गया। इसका कारण रहा कि आजम को लेकर सीतापुर जेल छह दर्जन गाड़ियां पहुंच गई थीं। रास्ते में काफिला और बड़ा होता चला गया। यह एक प्रकार से लखनऊ को संदेश देना था। अगर आजम अब राह बदलते हैं तो अखिलेश की टेंशन ऐसे बढ़ सकती है...
पहली टेंशन- पीडीए पॉलिटिक्स: अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स के जरिए अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया है। माय(मुस्लित+यादव) समीकरण से आगे बढ़ते हुए गैर यादव ओबीसी और दलित जातियों को जोड़ने में अखिलेश यादव कामयाब रहे। पिछले दो चुनावों, यूपी चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024, में समाजवादी पार्टी को एकमुश्त अल्पसंख्यक वोट बैंक का समर्थन मिलता रहा है। आजम के रुख बदलने के बाद इसमें सेंधमारी की आशंका बढ़ने लगी है।
दूसरी टेंशन- समर्थकों का भरोसा: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अखिलेश यादव पर समर्थन करने वालों को जोड़कर रखने में असफल रहने का ठप्पा लगा था। यूपी चुनाव 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन हुआ। चुनाव के बाद यह टूट गया। चुनाव से पहले ही चाचा शिवपाल यादव सपा छोड़ गए थे। लोकसभा चुनाव 2019 में पिछली तमाम असहमतियों को भुलाते हुए सपा-बसपा ने गठबंधन किया। यह भी चुनाव खत्म होते ही टूट गया। यूपी चुनाव 2022 के बाद अखिलेश के साथ जुड़े महान दल, सुभासपा आदि एक-एक कर बिखड़ते गए। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस-सपा गठबंधन फिर हुआ और अब तक बरकरार है। ऐसे में आजम के जाने के बाद एक बार फिर समर्थकों का भरोसा घटने की आशंका है।
तीसरी टेंशन- मजबूत छवि पर डेंट: लोकसभा चुनाव के बाद से अखिलेश यादव ने यूपी की राजनीति में अपनी छवि मजबूत की है। लखनऊ से दिल्ली तक वे दमदार तरीके से भाजपा को घेरते रहे हैं। ऐसे में अगर उनकी पार्टी का एक बड़ा नेता साथ छोड़ता है तो एक बार फिर उनकी छवि पर धब्बा लगेगा। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ पर जिस प्रकार से अभी वे हमलावर दिखते हैं। चुनाव आयोग पर हमला कर रह हैं। आजम खान के एक्शन के बाद उनकी नीतियों पर सवाल उठेगा।
बनी हुई है ऊहापोह की स्थितिआजम खान के समाजवादी पार्टी छोड़ने या बने रहने को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। इस बीच दोनों तरह के बयान सामने आ रहे हैं। अखिलेश यादव ने आजम के रिहा होते ही सपा की सरकार बनने पर सभी केस वापस लेने की बात कही। शिवपाल यादव ने भी कहा कि आजम खान कहीं नहीं जाएंगे। वहीं, सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष एवं आजम के करीबी वीरेंद्र गोयल भी कह रहे हैं कि आजम खान सपा के संस्थापक सदस्य हैं। उन्होंने सपा के विधान को लिखा है। ऐसे में वे कहीं नहीं जाएंगे।
हालांकि, समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता और पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन का बयान सामने आया है। आजम की रिहाई पर पूर्व सांसद ने कहा कि आजम पार्टी के बड़े नेता हैं। हम उनसे मिलने रामपुर जाएंगे। सपा छोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं। जिस घर को उन्होंने बनाया है, उसे कैसे छोड़कर चले जाएंगे। अगर परिस्थितिवस लोगों के बहकावे में अकर इधर-उधर चले भी गए तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
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