वॉशिंगटन: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर भारत को धोखा देने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक और दोस्त देश को धोखा दे दिया है। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते पराग्वे, ग्वाटेमाला और बेलिज के दौरे पर जाने वाले थे। ताइवान राष्ट्रपति अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में रुककर वहां से आगे लैटिन अमेरिका के लिए निकलते लेकिन चीन के दबाव में उनकी इस यात्रा को ट्रंप प्रशासन ने मंजूरी ही नहीं दी। इससे पहले बाइडन प्रशासन ने ताइवानी राष्ट्रपति की ट्रांजिट यात्रा की मंजूरी दे दी थी। डोनाल्ड ट्रंप के चीन के आगे लगातार सरेंडर करने से क्वॉड देश जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत अलर्ट हो रहे हैं और उनका अमेरिका से भरोसा खत्म हो रहा है।
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन ने यह फैसला ऐसे समय पर किया है जब अमेरिका और चीन के बीच संवेदनशील व्यापार वार्ता चल रही है। चीन ने अमेरिका से ताइवानी नेतृत्व के साथ किसी आधिकारिक आदान प्रदान का कड़ा विरोध किया है। ताइवान रिलेशन ऐक्ट के मुताबिक ताइवान की सुरक्षा का जिम्मा अमेरिका का है। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से ही चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ वार चल रहा है। ट्रंप प्रशासन और चीन के बीच कई मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पराग्वे, ग्वाटेमाला और बेलिज तीनों ही देश ताइवान की आजादी को मान्यता देते हैं।
ताइवानी राष्ट्रपति चाहते थे कि न्यूयॉर्क और डलास शहरों में रुकते हुए वह लैटिन अमेरिका के दौरे पर जाएं। अमेरिका ने ताइवानी राष्ट्रपति से कहा कि वह न्यूयॉर्क की यात्रा नहीं कर सकते हैं। वहीं ताइवानी राष्ट्रपति के कार्यालय ने दावा किया है कि उनका विदेश दौरे का कोई प्लान नहीं है क्योंकि वह अभी अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता और तूफान से उबरने के प्रयासों पर फोकस कर रहे हैं। सोमवार को चीन और अमेरिका के अधिकारियों ने स्टॉकहोम में व्यापार को लेकर बातचीत की है। चीन का दावा है कि ताइवान उसका क्षेत्र है और अमेरिका तथा ताइवान के बीच किसी सहयोग को वह खारिज करता है।
चीन लगातार अपनी सेना का विस्तार कर रहा है और ताकत के बल पर ताइवान पर कब्जे की योजना रखता है। ताइवान के राष्टपति के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा कि लाई की बाद में दौरे की योजना है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के इस कदम से अमेरिका पर निर्भर देशों के अंदर खतरे की घंटी बज सकती है। उन्होंने कहा कि ट्रंप अब अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं। अमेरिका का कर्ज बढ़ रहा है और उसे अपने प्रभाव के क्षेत्र को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ट्रंप अब केवल उत्तरी और दक्षिण अमेरिका पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक ट्रंप के इस कदम से दुनिया के अन्य इलाकों में प्रभाव बढ़ाने के लिए होड़ शुरू हो सकती है। इसका फायदा चीन और रूस उठाने की करेंगे। ट्रंप का ताइवान को लेकर उठाया गया कदम बदलती दुनिया की एक शुरुआत भर है। दक्षिण कोरिया पहले अमेरिका से अपने सैन्य अड्डों की वापसी को लेकर बातचीत कर रहा है। क्वॉड का सदस्य देश जापान अपने सैन्य बजट का जमकर इजाफा कर रहा है। वहीं भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया तीनों ही देश चीन के साथ अपने तनाव को कम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के पीएम ने हाल ही में चीन की यात्रा की है।
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन ने यह फैसला ऐसे समय पर किया है जब अमेरिका और चीन के बीच संवेदनशील व्यापार वार्ता चल रही है। चीन ने अमेरिका से ताइवानी नेतृत्व के साथ किसी आधिकारिक आदान प्रदान का कड़ा विरोध किया है। ताइवान रिलेशन ऐक्ट के मुताबिक ताइवान की सुरक्षा का जिम्मा अमेरिका का है। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से ही चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ वार चल रहा है। ट्रंप प्रशासन और चीन के बीच कई मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पराग्वे, ग्वाटेमाला और बेलिज तीनों ही देश ताइवान की आजादी को मान्यता देते हैं।
ताइवानी राष्ट्रपति चाहते थे कि न्यूयॉर्क और डलास शहरों में रुकते हुए वह लैटिन अमेरिका के दौरे पर जाएं। अमेरिका ने ताइवानी राष्ट्रपति से कहा कि वह न्यूयॉर्क की यात्रा नहीं कर सकते हैं। वहीं ताइवानी राष्ट्रपति के कार्यालय ने दावा किया है कि उनका विदेश दौरे का कोई प्लान नहीं है क्योंकि वह अभी अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता और तूफान से उबरने के प्रयासों पर फोकस कर रहे हैं। सोमवार को चीन और अमेरिका के अधिकारियों ने स्टॉकहोम में व्यापार को लेकर बातचीत की है। चीन का दावा है कि ताइवान उसका क्षेत्र है और अमेरिका तथा ताइवान के बीच किसी सहयोग को वह खारिज करता है।
चीन लगातार अपनी सेना का विस्तार कर रहा है और ताकत के बल पर ताइवान पर कब्जे की योजना रखता है। ताइवान के राष्टपति के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा कि लाई की बाद में दौरे की योजना है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के इस कदम से अमेरिका पर निर्भर देशों के अंदर खतरे की घंटी बज सकती है। उन्होंने कहा कि ट्रंप अब अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं। अमेरिका का कर्ज बढ़ रहा है और उसे अपने प्रभाव के क्षेत्र को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ट्रंप अब केवल उत्तरी और दक्षिण अमेरिका पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक ट्रंप के इस कदम से दुनिया के अन्य इलाकों में प्रभाव बढ़ाने के लिए होड़ शुरू हो सकती है। इसका फायदा चीन और रूस उठाने की करेंगे। ट्रंप का ताइवान को लेकर उठाया गया कदम बदलती दुनिया की एक शुरुआत भर है। दक्षिण कोरिया पहले अमेरिका से अपने सैन्य अड्डों की वापसी को लेकर बातचीत कर रहा है। क्वॉड का सदस्य देश जापान अपने सैन्य बजट का जमकर इजाफा कर रहा है। वहीं भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया तीनों ही देश चीन के साथ अपने तनाव को कम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के पीएम ने हाल ही में चीन की यात्रा की है।
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