चंडीगढ़ : उत्तर प्रदेश के अमरोहा की दो साल की बच्ची की आंखों की रोशनी जा रही थी। पीजीआई चंडीगढ़ के न्यूरोसर्जन की टीम ने एक बड़ा ऑपरेशन किया। डॉक्टरों ने बच्ची के नाक के ज़रिये 4.5 cm का ब्रेन ट्यूमर निकाला। बच्चों के न्यूरोसर्जरी में यह बहुत मुश्किल माना जाता है। डॉ. एस एस धंडापानी की टीम ने यह ऑपरेशन किया। उन्होंने बताया कि 4 cm से बड़े ट्यूमर को नाक से निकालने का ऑपरेशन 2 साल की उम्र में पहले सिर्फ एक बार स्टैनफोर्ड में हुआ है। उन्होंने बताया कि बच्ची की आंखों की रोशनी जा रही थी और हॉर्मोन की कमी थी। एमआरआई स्कैन से पता चला कि उसके दिमाग के निचले हिस्से में एक बड़ा ट्यूमर है। यह ट्यूमर ऑप्टिक नर्व और हाइपोथैलेमस जैसी ज़रूरी चीज़ों के पास था।
बेहद मुश्किल थी सर्जरी
डॉक्टरों के लिए यह सर्जरी बहुत मुश्किल थी। खासकर जब बच्चा 4 साल से छोटा हो। न्यूरोसर्जन ने बताया कि बच्चे की नाक के रास्ते बहुत छोटे होते हैं। खोपड़ी की हड्डियां भी पूरी तरह से नहीं बनी होती हैं और खून की नसें भी बहुत पास होती हैं। हमें कैरोटिड आर्टरी के पास छेद करना था। यह गर्दन की बड़ी नसें हैं जो दिमाग, चेहरे और गर्दन को खून पहुंचाती हैं। ऑपरेशन के 10 दिन बाद सीटीस्कैन किया गया। इससे पता चला कि ट्यूमर लगभग पूरी तरह से निकल गया है। बच्ची अब ठीक है। डॉ. धंडापानी ने कहा कि लेकिन हमें उसकी रोशनी वापस आने का इंतजार करना होगा। रोशनी आने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि वे लोग हमारे पास देर से आए।
डॉक्टर्स ने क्या बताया
डॉ. धंडापानी ने बताया कि बच्ची को देखने में बहुत परेशानी हो रही थी। उसे हॉर्मोन से जुड़ी दिक्कतें भी थीं। MRI में पता चला कि उसके दिमाग में 'क्रानियोफेरिंजियोमा' नाम का ट्यूमर है। यह दिमाग के अंदर गहराई में था। डॉक्टरों के सामने मुश्किल यह थी कि आम तौर पर ऐसे ट्यूमर को निकालने के लिए खोपड़ी खोलनी पड़ती है। लेकिन, बच्ची बहुत छोटी थी। इसलिए यह तरीका सुरक्षित नहीं थ। इसलिए डॉक्टरों ने नाक के ज़रिये सर्जरी करने का फैसला किया। यह एक आधुनिक तकनीक है। ऑपरेशन के बाद बच्ची की हालत स्थिर है। डॉक्टर उसकी रोशनी वापस आने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर बच्ची को पहले लाया जाता तो शायद रोशनी जल्दी वापस आ जाती।
बेहद मुश्किल थी सर्जरी
डॉक्टरों के लिए यह सर्जरी बहुत मुश्किल थी। खासकर जब बच्चा 4 साल से छोटा हो। न्यूरोसर्जन ने बताया कि बच्चे की नाक के रास्ते बहुत छोटे होते हैं। खोपड़ी की हड्डियां भी पूरी तरह से नहीं बनी होती हैं और खून की नसें भी बहुत पास होती हैं। हमें कैरोटिड आर्टरी के पास छेद करना था। यह गर्दन की बड़ी नसें हैं जो दिमाग, चेहरे और गर्दन को खून पहुंचाती हैं। ऑपरेशन के 10 दिन बाद सीटीस्कैन किया गया। इससे पता चला कि ट्यूमर लगभग पूरी तरह से निकल गया है। बच्ची अब ठीक है। डॉ. धंडापानी ने कहा कि लेकिन हमें उसकी रोशनी वापस आने का इंतजार करना होगा। रोशनी आने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि वे लोग हमारे पास देर से आए।
डॉक्टर्स ने क्या बताया
डॉ. धंडापानी ने बताया कि बच्ची को देखने में बहुत परेशानी हो रही थी। उसे हॉर्मोन से जुड़ी दिक्कतें भी थीं। MRI में पता चला कि उसके दिमाग में 'क्रानियोफेरिंजियोमा' नाम का ट्यूमर है। यह दिमाग के अंदर गहराई में था। डॉक्टरों के सामने मुश्किल यह थी कि आम तौर पर ऐसे ट्यूमर को निकालने के लिए खोपड़ी खोलनी पड़ती है। लेकिन, बच्ची बहुत छोटी थी। इसलिए यह तरीका सुरक्षित नहीं थ। इसलिए डॉक्टरों ने नाक के ज़रिये सर्जरी करने का फैसला किया। यह एक आधुनिक तकनीक है। ऑपरेशन के बाद बच्ची की हालत स्थिर है। डॉक्टर उसकी रोशनी वापस आने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर बच्ची को पहले लाया जाता तो शायद रोशनी जल्दी वापस आ जाती।
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