नई दिल्ली: देश में मॉनसून का सीजन चल रहा है। पूरे देश में कई शहर पानी में डूबे हुए हैं। भारत में अक्सर शहर बेतरतीब ढंग से फैले होते हैं। शहरों की कोई प्लानिंग नहीं होती। शहर भीड़भाड़ वाले और खराब हालत में होते हैं। सड़कों पर हर तरह की गाड़ियां और आवारा जानवर घूमते रहते हैं। लेकिन यह शहर बिल्कुल अलग था। यह एक प्राइवेट शहर था, जिसे बिल्कुल नए तरीके से बनाया जा रहा था। यह शहर एक सपने जैसा था। यह यूरोप के किसी तटीय शहर जैसा दिखता था। इसमें ओपन स्पेस था, पैदल सैर करने के लिए शानदार रास्ते थे और रंगीन घर थे जो पहाड़ियों के बीच एक झील के चारों ओर बने हुए थे। इस शहर को चलाने के लिए एक अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेटर भी था। हम बात कर रहे हैं लवासा सिटी की।
पुणे के पास बन रहा लवासा शहर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से महज तीन घंटे की दूरी पर था। यह शहर भविष्य के साथ-साथ अतीत को भी देखता था। अंग्रेजों ने भारत में कई हिल स्टेशन बसाए थे। इनमें नैनीताल, मसूरी, शिमला, डलहौजी और ऊटी शामिल हैं। लवासा को स्वतंत्र भारत को पहला नया हिल स्टेशन बताया गया था। यह एक आधुनिक शहर भी था, जहां लोग रह सकते थे, खेल सकते थे और काम कर सकते थे। लेकिन यह सपना सच नहीं हो सका। लवासा शहर पर्यावरणीय और कानूनी मुद्दों में फंस गया। इस पर बहुत ज्यादा कर्ज हो गया और यह दिवालिया हो गया।
उम्मीद की किरण
लवासा कॉर्पोरेशन को खरीदने के लिए बोलियां मंगाई गई थीं। हाल में खबर आई कि रियल एस्टेट कंपनी वैलोर एस्टेट सबसे बड़ी बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में सामने आई है। पहले इस कंपनी का नाम डीबी रियल्टी था। वैलोर एस्टेट ने लवासा के लिए 771.09 करोड़ रुपये की बोली लगाई है। यह बोली प्रोजेक्ट की आज की वैल्यू के हिसाब से सबसे ज्यादा है। यह नीलामी कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत हो रही है। अब कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) इस कंपनी से और बातचीत करेगी ताकि प्रोजेक्ट की वैल्यू को और बढ़ाया जा सके।
लवासा को खरीदने की होड़ में और भी कंपनियां थीं। इनमें वेल्सपन ग्रुप, लोढ़ा डेवलपर्स, प्राइड पर्पल ग्रुप, जिंदल स्टील एंड पावर ग्रुप और योगायतन ग्रुप शामिल थे। वेल्सपन ग्रुप ने 750 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी जबकि योगायतन ग्रुप की बोली 725 करोड़ रुपये की थी। लवासा के खिलाफ CIRP की प्रक्रिया IBC, 2016 के तहत शुरू हुई थी क्योंकि कंपनी अपना कर्ज चुकाने में फेल हो गई थी। लवासा कॉरपोरेशन पर 6,642 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो गया था। लवासा को दिवालिया होने से बचाने की यह तीसरी कोशिश है। इससे पहले, जुलाई 2023 में डार्विन प्लेटफॉर्म इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPIL) की 1,814 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गई थी। लेकिन, यह योजना फेल हो गई क्योंकि कंपनी ने पैसे नहीं दिए थे।
कैसे हुई शुरुआत
वैलोर का अधिग्रहण लवासा के दिवालियापन के मामले में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। इससे रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने और घर खरीदारों और लेनदारों को संपत्ति सौंपने की उम्मीदें बढ़ सकती हैं। वैलोर एस्टेट की बोली लवासा प्रोजेक्ट के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आई है। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए अब भी कई चुनौतियां बाकी हैं। इनमें पर्यावरण मंजूरी मिलना और लेनदारों को संतुष्ट करना शामिल है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो लवासा फिर से एक खूबसूरत हिल स्टेशन बन सकता है।
लवासा की कल्पना अजीत गुलाबचंद ने की थी। वह भारत के बड़े बिजनेस ग्रुप वालचंद ग्रुप के मालिक थे। साथ ही वह हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) के चेयरमैन भी थे। इस कंपनी ने देश में कई बांध, सुरंग और पुल बनाए हैं। लवासा को पुणे के पास मुलशी वैली में वरसगांव झील के चारों ओर बनाया जाना था। गुलाबचंद ने झील के आसपास की पहाड़ियों में स्थानीय डेवलपर्स से जमीन खरीदी थी। ये डेवलपर्स यहां टूरिस्ट कॉटेज बनाना चाहते थे। लवासा को 100 वर्ग किलोमीटर में बसाया जाना था। यहां 3 लाख लोगों के रहने की व्यवस्था की जानी थी और सात पहाड़ियों पर पांच शहर बनाने की कल्पना थी।
इटली से प्रेरणा
गुलाबचंद ने पहाड़ियों में अपने प्राइवेट शहर की योजना बड़े उत्साह के साथ बनाई थी। यह शहर एक सपने जैसा था क्योंकि भारत में ऐसा कुछ भी पहले नहीं था। किसी ने भी ऐसा विचार पहले नहीं सोचा था। लवासा नाम अमेरिका की एक ब्रांडिंग कंपनी ने दिया था। इस नाम का कोई मतलब नहीं है। यह नाम ऐसा था कि यूरोप के लोगों को यह एक इतालवी शब्द जैसा लगता और भारतीयों को अपना सा। लेकिन यह भारतीय संस्कृति से अलग था। यह अमीरों के लिए था, जहां वे यूरोप जैसा महसूस कर सकते थे।
कहा जाता है कि लवासा शहर इटली के Portofino नाम के एक गांव जैसा दिखता था। इसमें एक सड़क का नाम भी Portofino रखा गया था। इस शहर ने गोल्फ कोर्स बनाने के लिए Sir Nick Faldo के साथ, फुटबॉल अकादमी बनाने के लिए Manchester City Football Club के साथ और रोइंग अकादमी बनाने के लिए Sir Steve Redgrave के साथ एग्रीमेंट भी किया था। यहा अपोलो हॉस्पिटल, Christel House का एक स्कूल और Ecole Hoteliere Lavasa नाम का एक होटल मैनेजमेंट स्कूल भी है।
कैसा था शहर
आम भारतीय शहरों की तरह लवासा में घरों के ऊपर पानी की टंकियां नहीं होंगी। इसकी कल्पना एक ऐसे शहर के रूप में की गई थी यहां पानी की सप्लाई सेंट्रलाइज्ड होगी और आप सीधे नल से पानी पी सकते हैं। यह शहरीकरण के नए सिद्धांतों पर बनाया गया था। यह खुली और हरी-भरी जगहों वाला शहर होगा, जहां हर चीज पैदल दूरी पर होगी। लवासा एक प्राइवेट शहर था जिसे द लवासा कॉरपोरेशन द्वारा चलाया जाना था। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता, सिर्फ पुलिस और टैक्स के मामलों में सरकार शामिल होती।
इस शहर को चलाने के लिए एक अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेटर Scot Wrighton को भी रखा गया था। उन्होंने 2010 में Forbes पत्रिका को बताया था कि लवासा के आसपास रहने वाले लोगों को अपने जानवरों को शहर में घूमने से रोकने के लिए मनाना उनके लिए एक चुनौती थी। The Guardian ने साल 2015 में बताया था कि लवासा में सबसे सस्ते अपार्टमेंट की कीमत $17,000 से $36,000 के बीच थी। यानी यह शहर केवल अमीरों के लिए ही था। लेकिन गुलाबचंद ने यह भी वादा किया था कि वे युवा पेशेवरों के लिए कम कीमत वाले मकान भी बनाएंगे। साथ ही मजदूरों के लिए भी सस्ते किराए वाले मकान बनाएंगे।
कैसे हुई दुर्गति
लवासा का सिर्फ एक-पांचवां हिस्सा ही बन पाया था। कंपनी IPO के जरिए पैसा जुटाने की तैयारी कर रही थी, तभी पर्यावरणीय मुद्दों के कारण यह कानूनी अड़चन में फंस गई। तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया क्योंकि कंपनी ने नियमों का पालन नहीं किया था। सरकार ने कहा कि HCC जरूरी पर्यावरणीय मंजूरी लेने में विफल रही है। इस बात को लेकर भी विवाद था कि कंपनी ने स्थानीय आदिवासियों से जमीन सस्ते दामों पर खरीदी थी।
2012 में सीएजी ने इस प्रोजेक्ट को लेकर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी। CAG ने कहा कि प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय और कैबिनेट की मंजूरी नहीं दी गई थी। यह प्रोजेक्ट राकांपा प्रमुख शरद पवार के परिवार के साथ कथित संबंधों के कारण भी विवादों में रहा। सरकार ने लवासा में सभी निर्माण कार्यों को एक साल के लिए रोक दिया। बाद में सरकार ने जुर्माना भरने और नियमों का पूरी तरह से पालन करने पर इसे आगे बढ़ने की अनुमति दे दी, लेकिन कर्ज लवासा पर भारी पड़ने लगा क्योंकि उसे इस पर ब्याज चुकाने में मुश्किल हो रही थी। आखिरकार 2018 में कंपनी के खिलाफ दिवालियापन याचिका को स्वीकार कर लिया गया।
पुणे के पास बन रहा लवासा शहर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से महज तीन घंटे की दूरी पर था। यह शहर भविष्य के साथ-साथ अतीत को भी देखता था। अंग्रेजों ने भारत में कई हिल स्टेशन बसाए थे। इनमें नैनीताल, मसूरी, शिमला, डलहौजी और ऊटी शामिल हैं। लवासा को स्वतंत्र भारत को पहला नया हिल स्टेशन बताया गया था। यह एक आधुनिक शहर भी था, जहां लोग रह सकते थे, खेल सकते थे और काम कर सकते थे। लेकिन यह सपना सच नहीं हो सका। लवासा शहर पर्यावरणीय और कानूनी मुद्दों में फंस गया। इस पर बहुत ज्यादा कर्ज हो गया और यह दिवालिया हो गया।
उम्मीद की किरण
लवासा कॉर्पोरेशन को खरीदने के लिए बोलियां मंगाई गई थीं। हाल में खबर आई कि रियल एस्टेट कंपनी वैलोर एस्टेट सबसे बड़ी बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में सामने आई है। पहले इस कंपनी का नाम डीबी रियल्टी था। वैलोर एस्टेट ने लवासा के लिए 771.09 करोड़ रुपये की बोली लगाई है। यह बोली प्रोजेक्ट की आज की वैल्यू के हिसाब से सबसे ज्यादा है। यह नीलामी कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के तहत हो रही है। अब कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) इस कंपनी से और बातचीत करेगी ताकि प्रोजेक्ट की वैल्यू को और बढ़ाया जा सके।
लवासा को खरीदने की होड़ में और भी कंपनियां थीं। इनमें वेल्सपन ग्रुप, लोढ़ा डेवलपर्स, प्राइड पर्पल ग्रुप, जिंदल स्टील एंड पावर ग्रुप और योगायतन ग्रुप शामिल थे। वेल्सपन ग्रुप ने 750 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी जबकि योगायतन ग्रुप की बोली 725 करोड़ रुपये की थी। लवासा के खिलाफ CIRP की प्रक्रिया IBC, 2016 के तहत शुरू हुई थी क्योंकि कंपनी अपना कर्ज चुकाने में फेल हो गई थी। लवासा कॉरपोरेशन पर 6,642 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज हो गया था। लवासा को दिवालिया होने से बचाने की यह तीसरी कोशिश है। इससे पहले, जुलाई 2023 में डार्विन प्लेटफॉर्म इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPIL) की 1,814 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गई थी। लेकिन, यह योजना फेल हो गई क्योंकि कंपनी ने पैसे नहीं दिए थे।
कैसे हुई शुरुआत
वैलोर का अधिग्रहण लवासा के दिवालियापन के मामले में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। इससे रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने और घर खरीदारों और लेनदारों को संपत्ति सौंपने की उम्मीदें बढ़ सकती हैं। वैलोर एस्टेट की बोली लवासा प्रोजेक्ट के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आई है। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए अब भी कई चुनौतियां बाकी हैं। इनमें पर्यावरण मंजूरी मिलना और लेनदारों को संतुष्ट करना शामिल है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो लवासा फिर से एक खूबसूरत हिल स्टेशन बन सकता है।
लवासा की कल्पना अजीत गुलाबचंद ने की थी। वह भारत के बड़े बिजनेस ग्रुप वालचंद ग्रुप के मालिक थे। साथ ही वह हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) के चेयरमैन भी थे। इस कंपनी ने देश में कई बांध, सुरंग और पुल बनाए हैं। लवासा को पुणे के पास मुलशी वैली में वरसगांव झील के चारों ओर बनाया जाना था। गुलाबचंद ने झील के आसपास की पहाड़ियों में स्थानीय डेवलपर्स से जमीन खरीदी थी। ये डेवलपर्स यहां टूरिस्ट कॉटेज बनाना चाहते थे। लवासा को 100 वर्ग किलोमीटर में बसाया जाना था। यहां 3 लाख लोगों के रहने की व्यवस्था की जानी थी और सात पहाड़ियों पर पांच शहर बनाने की कल्पना थी।
इटली से प्रेरणा
गुलाबचंद ने पहाड़ियों में अपने प्राइवेट शहर की योजना बड़े उत्साह के साथ बनाई थी। यह शहर एक सपने जैसा था क्योंकि भारत में ऐसा कुछ भी पहले नहीं था। किसी ने भी ऐसा विचार पहले नहीं सोचा था। लवासा नाम अमेरिका की एक ब्रांडिंग कंपनी ने दिया था। इस नाम का कोई मतलब नहीं है। यह नाम ऐसा था कि यूरोप के लोगों को यह एक इतालवी शब्द जैसा लगता और भारतीयों को अपना सा। लेकिन यह भारतीय संस्कृति से अलग था। यह अमीरों के लिए था, जहां वे यूरोप जैसा महसूस कर सकते थे।
कहा जाता है कि लवासा शहर इटली के Portofino नाम के एक गांव जैसा दिखता था। इसमें एक सड़क का नाम भी Portofino रखा गया था। इस शहर ने गोल्फ कोर्स बनाने के लिए Sir Nick Faldo के साथ, फुटबॉल अकादमी बनाने के लिए Manchester City Football Club के साथ और रोइंग अकादमी बनाने के लिए Sir Steve Redgrave के साथ एग्रीमेंट भी किया था। यहा अपोलो हॉस्पिटल, Christel House का एक स्कूल और Ecole Hoteliere Lavasa नाम का एक होटल मैनेजमेंट स्कूल भी है।
कैसा था शहर
आम भारतीय शहरों की तरह लवासा में घरों के ऊपर पानी की टंकियां नहीं होंगी। इसकी कल्पना एक ऐसे शहर के रूप में की गई थी यहां पानी की सप्लाई सेंट्रलाइज्ड होगी और आप सीधे नल से पानी पी सकते हैं। यह शहरीकरण के नए सिद्धांतों पर बनाया गया था। यह खुली और हरी-भरी जगहों वाला शहर होगा, जहां हर चीज पैदल दूरी पर होगी। लवासा एक प्राइवेट शहर था जिसे द लवासा कॉरपोरेशन द्वारा चलाया जाना था। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता, सिर्फ पुलिस और टैक्स के मामलों में सरकार शामिल होती।
इस शहर को चलाने के लिए एक अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेटर Scot Wrighton को भी रखा गया था। उन्होंने 2010 में Forbes पत्रिका को बताया था कि लवासा के आसपास रहने वाले लोगों को अपने जानवरों को शहर में घूमने से रोकने के लिए मनाना उनके लिए एक चुनौती थी। The Guardian ने साल 2015 में बताया था कि लवासा में सबसे सस्ते अपार्टमेंट की कीमत $17,000 से $36,000 के बीच थी। यानी यह शहर केवल अमीरों के लिए ही था। लेकिन गुलाबचंद ने यह भी वादा किया था कि वे युवा पेशेवरों के लिए कम कीमत वाले मकान भी बनाएंगे। साथ ही मजदूरों के लिए भी सस्ते किराए वाले मकान बनाएंगे।
कैसे हुई दुर्गति
लवासा का सिर्फ एक-पांचवां हिस्सा ही बन पाया था। कंपनी IPO के जरिए पैसा जुटाने की तैयारी कर रही थी, तभी पर्यावरणीय मुद्दों के कारण यह कानूनी अड़चन में फंस गई। तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया क्योंकि कंपनी ने नियमों का पालन नहीं किया था। सरकार ने कहा कि HCC जरूरी पर्यावरणीय मंजूरी लेने में विफल रही है। इस बात को लेकर भी विवाद था कि कंपनी ने स्थानीय आदिवासियों से जमीन सस्ते दामों पर खरीदी थी।
2012 में सीएजी ने इस प्रोजेक्ट को लेकर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी। CAG ने कहा कि प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय और कैबिनेट की मंजूरी नहीं दी गई थी। यह प्रोजेक्ट राकांपा प्रमुख शरद पवार के परिवार के साथ कथित संबंधों के कारण भी विवादों में रहा। सरकार ने लवासा में सभी निर्माण कार्यों को एक साल के लिए रोक दिया। बाद में सरकार ने जुर्माना भरने और नियमों का पूरी तरह से पालन करने पर इसे आगे बढ़ने की अनुमति दे दी, लेकिन कर्ज लवासा पर भारी पड़ने लगा क्योंकि उसे इस पर ब्याज चुकाने में मुश्किल हो रही थी। आखिरकार 2018 में कंपनी के खिलाफ दिवालियापन याचिका को स्वीकार कर लिया गया।
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