चंडीगढ़: पंजाब सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने आदेश जारी किया है कि राज्य में कोई भी निजी व्यक्ति पांच से अधिक नशामुक्ति केंद्र संचालित नहीं कर सकेगा। सरकार का यह कदम ऐसे समय में आया है जब नशामुक्ति केंद्रों में भारी अनियमितताओं और ड्रग्स की कालाबाजारी के आरोपों ने पूरे सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा घोटाला चंडीगढ़ के डॉक्टर अमित बंसल से जुड़ा है, जो पंजाब के 16 जिलों और चंडीगढ़ में फैले 22 निजी नशामुक्ति केंद्र चला रहे थे। वर्तमान में ये सभी केंद्र बंद हो चुके हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) इन सभी केंद्रों की जांच कर रहा है, जहां फर्जी मरीजों के नाम पर दवाओं की हेराफेरी और खुले बाजार में ड्रग्स की बिक्री के आरोप लगे हैं।
जांच एजेंसियों के अनुसार, डॉ. बंसल के केंद्रों में फर्जी मरीजों का रिकॉर्ड दिखाकर जरूरत से अधिक दवाएं खरीदी जाती थीं। ये दवाएं फिर खुले बाजार में नशेड़ियों और पार्टी आयोजकों को महंगे दामों पर बेची जाती थीं। राज्य सरकार के केंद्रों में ये दवाएं मुफ्त दी जाती हैं, जबकि निजी केंद्रों में प्रति गोली 40 रुपये में दी जानी चाहिए। लेकिन बंसल के नेटवर्क में यह कीमत कई गुना अधिक वसूली जा रही थी। डॉ. बंसल के खिलाफ मामला तब गहराया जब लुधियाना के एक केंद्र के दो कर्मचारियों की गिरफ्तारी (2022) के बाद जांच शुरू हुई और 2023 में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें कर्मचारी खुलेआम नशामुक्ति दवाएं बेचते दिखे।
165 करोड़ रुपये सिर्फ बंसल के नेटवर्क से आया
ईडी की जांच में सामने आया कि बंसल के केंद्रों को मुंबई की रुसन फार्मा लिमिटेड से बड़ी मात्रा में बीएनएक्स टैबलेट की आपूर्ति की गई। स्वास्थ्य विभाग के नोटिस के अनुसार, अप्रैल 2024 से नवंबर 2024 के बीच 2.87 करोड़ टैबलेट्स विभिन्न केंद्रों को दी गईं। ईडी ने पाया कि कंपनी को 2020 से 2025 के बीच 300 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ, जिसमें से 165 करोड़ रुपये सिर्फ बंसल के नेटवर्क से आया। रुसन फार्मा ने सफाई दी है कि वह दवाएं केवल पंजीकृत डॉक्टरों और अधिकृत संस्थानों को ही सप्लाई करती है और इस मामले में जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग दे रही है।
अभी तक ठोस सबूल नहीं जुटा पाई समिति
स्वास्थ्य विभाग की जनवरी 2025 में गठित जांच समिति अभी तक ठोस सबूत नहीं जुटा पाई है। जिला अधिकारियों के पास बंद हो चुके केंद्रों के मरीजों और दवा वितरण के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने स्वीकार किया है कि बिना रिकॉर्ड के जांच आगे नहीं बढ़ सकती। कई जिलों में निरीक्षण कभी-कभार ही किए गए। वहीं सूत्रों ने बताया कि 2016 से 2022 के बीच, यानी अकाली-भाजपा सरकार के अंतिम वर्षों और कांग्रेस शासन के दौरान, बड़ी संख्या में निजी नशामुक्ति केंद्र खुले। अधिकतर अनियमितताएं मौजूदा आप सरकार के समय उजागर हुईं। अधिकारी मानते हैं कि लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया तो सख्त थी, लेकिन बाद में निरीक्षण और ऑडिट के नियमों की अनदेखी की गई। जिला स्तरीय समितियों और डिप्टी कमिश्नरों को निरीक्षण का अधिकार था, परंतु यह औपचारिकता बनकर रह गया।
जांच एजेंसियों के अनुसार, डॉ. बंसल के केंद्रों में फर्जी मरीजों का रिकॉर्ड दिखाकर जरूरत से अधिक दवाएं खरीदी जाती थीं। ये दवाएं फिर खुले बाजार में नशेड़ियों और पार्टी आयोजकों को महंगे दामों पर बेची जाती थीं। राज्य सरकार के केंद्रों में ये दवाएं मुफ्त दी जाती हैं, जबकि निजी केंद्रों में प्रति गोली 40 रुपये में दी जानी चाहिए। लेकिन बंसल के नेटवर्क में यह कीमत कई गुना अधिक वसूली जा रही थी। डॉ. बंसल के खिलाफ मामला तब गहराया जब लुधियाना के एक केंद्र के दो कर्मचारियों की गिरफ्तारी (2022) के बाद जांच शुरू हुई और 2023 में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें कर्मचारी खुलेआम नशामुक्ति दवाएं बेचते दिखे।
165 करोड़ रुपये सिर्फ बंसल के नेटवर्क से आया
ईडी की जांच में सामने आया कि बंसल के केंद्रों को मुंबई की रुसन फार्मा लिमिटेड से बड़ी मात्रा में बीएनएक्स टैबलेट की आपूर्ति की गई। स्वास्थ्य विभाग के नोटिस के अनुसार, अप्रैल 2024 से नवंबर 2024 के बीच 2.87 करोड़ टैबलेट्स विभिन्न केंद्रों को दी गईं। ईडी ने पाया कि कंपनी को 2020 से 2025 के बीच 300 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ, जिसमें से 165 करोड़ रुपये सिर्फ बंसल के नेटवर्क से आया। रुसन फार्मा ने सफाई दी है कि वह दवाएं केवल पंजीकृत डॉक्टरों और अधिकृत संस्थानों को ही सप्लाई करती है और इस मामले में जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग दे रही है।
अभी तक ठोस सबूल नहीं जुटा पाई समिति
स्वास्थ्य विभाग की जनवरी 2025 में गठित जांच समिति अभी तक ठोस सबूत नहीं जुटा पाई है। जिला अधिकारियों के पास बंद हो चुके केंद्रों के मरीजों और दवा वितरण के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने स्वीकार किया है कि बिना रिकॉर्ड के जांच आगे नहीं बढ़ सकती। कई जिलों में निरीक्षण कभी-कभार ही किए गए। वहीं सूत्रों ने बताया कि 2016 से 2022 के बीच, यानी अकाली-भाजपा सरकार के अंतिम वर्षों और कांग्रेस शासन के दौरान, बड़ी संख्या में निजी नशामुक्ति केंद्र खुले। अधिकतर अनियमितताएं मौजूदा आप सरकार के समय उजागर हुईं। अधिकारी मानते हैं कि लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया तो सख्त थी, लेकिन बाद में निरीक्षण और ऑडिट के नियमों की अनदेखी की गई। जिला स्तरीय समितियों और डिप्टी कमिश्नरों को निरीक्षण का अधिकार था, परंतु यह औपचारिकता बनकर रह गया।
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