वॉशिंगटन: अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सीआईए) के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाको ने पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान पर चौंकाने वाला खुलासा किया है। जॉन ने बताया है कि सऊदी सरकार के हस्तक्षेप की वजह से अमेरिकी एजेंट ने कादिर की हत्या ना करने का फैसला लिया था। सीआईए में विश्लेषक और आतंक-रोधी अभियानों में 15 साल बिताने वाले जॉन ने कहा कि अमेरिका के पास खान के बारे में पूरी जानकारी थी। इसमें उनके ठिकाने और दिनचर्या तक शामिल थी। हालांकि सऊदी के दबाव में अमेरिका खान को खत्म करने के प्लान से पीछे हट गया।
एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व एजेंट जॉन किरियाको ने कहा, 'मेरा एक सहकर्मी कादिर खान के साथ काम कर रहा था। जाहिर है कि हमारे लिए उसे खत्म करना आसान था क्योंकि हम जानते थे कि वह कहां रहता है। वह दिनभर कहां जाता है और क्या करता है। ये सब हमारी जानकारी में था। अगर हमने इजरायली तरीका अपनाया होता तो हम उसे मार डालते। हालांकि सऊदी की वजह से ऐसा नहीं हो सका।'
खान को सऊदी ने बचायाजॉन ने आगे कहा कि कादिर खान और उसके परमाणु कार्यक्रम को सऊदी सरकार का मजबूत समर्थन हासिल था। सऊदी सरकार के अफसर हमारे (अमेरिका) पास आए थे। उन्होंने कहा कि प्लीज खान को अकेला छोड़ दो। सऊदी ने हमें बताया कि वह खान के साथ काम कर रहे हैं। सऊदी अफसरों ने कहा कि हम पाकिस्तानियों के करीब हैं। उन्होंने फैसलाबाद का नाम किंग फैसल के नाम पर रखा है।
जॉन किरियाको ने आगे कहा कि सीनेट की विदेश संबंध समिति के साथ अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें पता चला कि सीआईए और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के कई अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की थी कि वाइट हाउस ने खान को निशाना नहीं बनाने के लिए कहा था। जॉन ने इस दौरान यह भी कहा कि सऊदी अरब का खान को संरक्षण देना उसकी अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा हो सकता है।
क्यों जाने जाते हैं कादिर खानकादिर खान को पाकिस्तान के परमाणु बम का जनक कहा जाता है। भारत के भोपाल में जन्मे खान 1947 में विभाजन के बाद 1952 में अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान के परमाणु बम बनाने के अगुवा रहे खान का 2021 में 85 वर्ष की आयु में निधन हुआ। खान के पाकिस्तान के लिए परमाणु बम बनाने की पूरी प्रक्रिया पर कई सवाल उठते रहे हैं।
एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व एजेंट जॉन किरियाको ने कहा, 'मेरा एक सहकर्मी कादिर खान के साथ काम कर रहा था। जाहिर है कि हमारे लिए उसे खत्म करना आसान था क्योंकि हम जानते थे कि वह कहां रहता है। वह दिनभर कहां जाता है और क्या करता है। ये सब हमारी जानकारी में था। अगर हमने इजरायली तरीका अपनाया होता तो हम उसे मार डालते। हालांकि सऊदी की वजह से ऐसा नहीं हो सका।'
खान को सऊदी ने बचायाजॉन ने आगे कहा कि कादिर खान और उसके परमाणु कार्यक्रम को सऊदी सरकार का मजबूत समर्थन हासिल था। सऊदी सरकार के अफसर हमारे (अमेरिका) पास आए थे। उन्होंने कहा कि प्लीज खान को अकेला छोड़ दो। सऊदी ने हमें बताया कि वह खान के साथ काम कर रहे हैं। सऊदी अफसरों ने कहा कि हम पाकिस्तानियों के करीब हैं। उन्होंने फैसलाबाद का नाम किंग फैसल के नाम पर रखा है।
जॉन किरियाको ने आगे कहा कि सीनेट की विदेश संबंध समिति के साथ अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें पता चला कि सीआईए और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के कई अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की थी कि वाइट हाउस ने खान को निशाना नहीं बनाने के लिए कहा था। जॉन ने इस दौरान यह भी कहा कि सऊदी अरब का खान को संरक्षण देना उसकी अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा हो सकता है।
क्यों जाने जाते हैं कादिर खानकादिर खान को पाकिस्तान के परमाणु बम का जनक कहा जाता है। भारत के भोपाल में जन्मे खान 1947 में विभाजन के बाद 1952 में अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान के परमाणु बम बनाने के अगुवा रहे खान का 2021 में 85 वर्ष की आयु में निधन हुआ। खान के पाकिस्तान के लिए परमाणु बम बनाने की पूरी प्रक्रिया पर कई सवाल उठते रहे हैं।
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