ढाका: चीन, बांग्लादेश पर लगातार पाकिस्तान के साथ मिलकर एक त्रिपक्षीय गुट बनाने का दबाव डाल रहा है। लेकिन बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ऐसे किसी गुट में शामिल होने से परहेज कर रही है। बांग्लादेश ने सार्वजनिक तौर भी ऐसे किसी गुट में शामिल होने से इनकार किया है। लेकिन प्रोथोम अलो की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने 11 जुलाई को कुआलालंपुर में आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान यह प्रस्ताव फिर से उठाया है। चीन ने बांग्लादेश पर गुट में शामिल होने के दबाव को काफी बढ़ा दिया है। शिखर सम्मेलन के दौरान हुई इस बैठक में वांग यी ने बांग्लादेश से त्रिपक्षीय समझौते पर विचार करने का आग्रह किया था।
इससे पहले कुन्मिंग बैठक के दौरान भी चीन ने बांग्लादेश से त्रिपक्षीय गुट में शामिल होने का दबाव बनाया था। लेकिन बांग्लादेश हर बार सिर्फ इस मुद्दे पर सिर्फ मुस्कुराकर और चुप्पी के साथ अपनी प्रतिक्रिया देता है। प्रथोम अलो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वांग यी ने एक बार फिर "सुझाव दिया कि बांग्लादेश इस पहल में सक्रिय भूमिका निभाए।" हालांकि, हुसैन ने चीनी विदेश मंत्री के इस बात पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई। बांग्लादेशी अखबार ने बांग्लादेश के सीनियर डिप्लोमेटिक सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा है कि "उन्होंने ध्यान से सुना और मुस्कुराए।"
बांग्लादेश पर लगातार प्रेशर बढ़ा रहा है चीन
प्रथोम अलो ने अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन के हवाले से भी इसकी पुष्टि की है। हुसैन ने प्रथोम अलो से बात करते हुए कहा कि "चीन ने बैठकों के दौरान त्रिपक्षीय पहल का मुद्दा उठाया। बांग्लादेश इस समय ऐसी किसी त्रिपक्षीय पहल में शामिल नहीं होगा।" प्रथोम अलो ने कहा है कि चीन, कम से कम पांच बार बांग्लादेश के सामने त्रिपक्षीय गुट में शामिल होने का मुद्दा उठा चुका है। जिससे पता चलता है कि ये चीन की बांग्लादेश को एक ऐसे रणनीतिक त्रिकोण में शामिल करने के लिए एक सुनियोजित कूटनीतिक अभियान चला रहा है, जिसमें नेपाल और श्रीलंका जैसे अन्य प्रमुख दक्षिण एशियाई देश भी शामिल नहीं हैं।
प्रोथोम अलो की रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ऐसा कोई भी फैसला लेने से इनकार कर दिया है, जिससे "क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच संदेह पैदा हो।" हालांकि भारत का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया है, लेकिन इसका मतलब साफ है कि बांग्लादेश, भारत और चीन के बीच खुलकर आने से बच रहा है। अगर बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान के साथ गुट बनाने के लिए तैयार होता है तो ये क्षेत्र में बांग्लादेश के नाजुक संतुलन को कमजोर करेगा। बांग्लादेशी अखबार ने लिखा है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चीन की इस कोशिश के पीछे की मंशा समझने की कोशिश कर रही है और उसकी जांच शुरू कर दी है। बांग्लादेश ने कथित तौर पर चीन के सामने सवाल उठाया है कि आखिर में दक्षिण एशिया के बाकी देश (श्रीलंका और नेपाल) को क्यों शामिल नहीं किया जा रहा है। प्रोथोम अलो के लेख के मुताबिक बीजिंग ने अभी तक इस सवाल का कोई साफ उत्तर नहीं दिया है। लेकिन बांग्लादेश का ये फैसला भारत के लिए राहत भरी खबर है, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब बांग्लादेश के नेताओं को चीन की मंशा पर शक गहराता नजर आ रहा है।
इससे पहले कुन्मिंग बैठक के दौरान भी चीन ने बांग्लादेश से त्रिपक्षीय गुट में शामिल होने का दबाव बनाया था। लेकिन बांग्लादेश हर बार सिर्फ इस मुद्दे पर सिर्फ मुस्कुराकर और चुप्पी के साथ अपनी प्रतिक्रिया देता है। प्रथोम अलो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वांग यी ने एक बार फिर "सुझाव दिया कि बांग्लादेश इस पहल में सक्रिय भूमिका निभाए।" हालांकि, हुसैन ने चीनी विदेश मंत्री के इस बात पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई। बांग्लादेशी अखबार ने बांग्लादेश के सीनियर डिप्लोमेटिक सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा है कि "उन्होंने ध्यान से सुना और मुस्कुराए।"
बांग्लादेश पर लगातार प्रेशर बढ़ा रहा है चीन
प्रथोम अलो ने अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन के हवाले से भी इसकी पुष्टि की है। हुसैन ने प्रथोम अलो से बात करते हुए कहा कि "चीन ने बैठकों के दौरान त्रिपक्षीय पहल का मुद्दा उठाया। बांग्लादेश इस समय ऐसी किसी त्रिपक्षीय पहल में शामिल नहीं होगा।" प्रथोम अलो ने कहा है कि चीन, कम से कम पांच बार बांग्लादेश के सामने त्रिपक्षीय गुट में शामिल होने का मुद्दा उठा चुका है। जिससे पता चलता है कि ये चीन की बांग्लादेश को एक ऐसे रणनीतिक त्रिकोण में शामिल करने के लिए एक सुनियोजित कूटनीतिक अभियान चला रहा है, जिसमें नेपाल और श्रीलंका जैसे अन्य प्रमुख दक्षिण एशियाई देश भी शामिल नहीं हैं।
प्रोथोम अलो की रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ऐसा कोई भी फैसला लेने से इनकार कर दिया है, जिससे "क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच संदेह पैदा हो।" हालांकि भारत का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया है, लेकिन इसका मतलब साफ है कि बांग्लादेश, भारत और चीन के बीच खुलकर आने से बच रहा है। अगर बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान के साथ गुट बनाने के लिए तैयार होता है तो ये क्षेत्र में बांग्लादेश के नाजुक संतुलन को कमजोर करेगा। बांग्लादेशी अखबार ने लिखा है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चीन की इस कोशिश के पीछे की मंशा समझने की कोशिश कर रही है और उसकी जांच शुरू कर दी है। बांग्लादेश ने कथित तौर पर चीन के सामने सवाल उठाया है कि आखिर में दक्षिण एशिया के बाकी देश (श्रीलंका और नेपाल) को क्यों शामिल नहीं किया जा रहा है। प्रोथोम अलो के लेख के मुताबिक बीजिंग ने अभी तक इस सवाल का कोई साफ उत्तर नहीं दिया है। लेकिन बांग्लादेश का ये फैसला भारत के लिए राहत भरी खबर है, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब बांग्लादेश के नेताओं को चीन की मंशा पर शक गहराता नजर आ रहा है।
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