हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान उपयोग होने वाली पूजन सामग्रियों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा होता है। व्रत, पर्व और मांगलिक अवसरों पर विशेष पूजा के बाद अक्सर कुछ सामग्री बच जाती है, और बहुत से लोग यह नहीं जानते कि इनका उचित उपयोग कैसे करें।
वास्तु शास्त्र और शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार यदि इन सामग्रियों का सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो घर में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
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उपयोग: पूजा के बाद बची रोली या कुमकुम को माथे पर तिलक या सुहागन महिलाएं मांग में लगा सकती हैं।
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लाभ: यह अखंड सौभाग्य और देवी कृपा का प्रतीक माना जाता है।
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उपयोग: थोड़ी सी हल्दी में पानी मिलाकर हाथों या चेहरे पर हल्का सा लेप कर सकते हैं।
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लाभ: इससे सौभाग्य और पवित्रता प्राप्त होती है। विवाहपूर्व हल्दी लगाना भी इसी भावना का भाग है।
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उपयोग: बचे हुए अक्षत को रसोई में उपयोग होने वाले चावल में मिला दें।
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लाभ: इससे मां अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है और घर में अन्न की कमी नहीं होती।
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उपयोग: पूजा में उपयोग किया गया नारियल (कलश पर रखा श्रीफल) को लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी या पूजाघर में रखें।
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लाभ: यह मां लक्ष्मी का प्रतीक है और तिजोरी कभी खाली नहीं होती।
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उपयोग: बचे हुए पूजा के फूलों से वंदनवार (तोरण) बनाकर मुख्य द्वार पर टांग दें।
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लाभ: इससे घर में सकारात्मकता बनी रहती है और लक्ष्मीजी का वास होता है।
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उपयोग:
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रोजाना सामान्य पूजा में प्रयोग करें।
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यदि नियमित पूजा न हो तो किसी मंदिर में दान करें।
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लाभ: यह कार्य गुरु ग्रह को मजबूत करता है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान की वृद्धि होती है।
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पूजन सामग्री का अपमान न करें, जैसे फूल कूड़े में न फेंकें।
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पुरानी सामग्री को जल प्रवाह या तुलसी के नीचे respectfully विसर्जित करें।
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पूजन से जुड़ी चीजों को सजगता और श्रद्धा से रखें, यही धार्मिक ऊर्जा को बनाए रखने का सूत्र है।
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