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भारत-तुर्की संबंध: पाकिस्तान के प्रति तुर्की का झुकाव क्यों?

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भारत-तुर्की संबंध: तुर्की पाकिस्तान का समर्थन क्यों करता है?

भारत-तुर्की संबंध: तुर्की पाकिस्तान का समर्थन क्यों करता है?: भारत और तुर्की के बीच संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं। हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने एक बयान दिया,

जिससे भारत में कई सवाल उठने लगे। उनके बयान में पाकिस्तान के प्रति समर्थन स्पष्ट था, जिससे यह चर्चा तेज हो गई कि तुर्की बार-बार पाकिस्तान का पक्ष क्यों लेता है और भारत की नाराजगी को नजरअंदाज क्यों करता है?


तुर्की और पाकिस्तान के बीच गहरा संबंध

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में तुर्की के समर्थन के लिए अर्दोआन को धन्यवाद दिया। अर्दोआन ने न केवल उनकी सराहना की, बल्कि यह भी कहा कि तुर्की हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़ा रहेगा। यह पहली बार नहीं है जब तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया है। चाहे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच हों या क्षेत्रीय मुद्दे, तुर्की ने हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है।

इस दोस्ती की जड़ें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक हैं। दोनों देशों के बीच गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, जो उनकी विदेश नीति को भी प्रभावित करते हैं। तुर्की की यह नीति भारत के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है, खासकर जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है।


भारत की नाराजगी और तुर्की की अनदेखी

जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तुर्की का रुख अक्सर एकतरफा नजर आता है। भारत ने कई बार तुर्की के इस रवैये पर आपत्ति जताई है, लेकिन अर्दोआन का आत्मविश्वास और उनकी नीतियां यह दर्शाती हैं कि वे भारत की नाराजगी को ज्यादा महत्व नहीं देते। इसका कारण तुर्की की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं और दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत करने की इच्छा हो सकती है।

तुर्की की यह नीति भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बनती जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की की यह रणनीति केवल पाकिस्तान के प्रति दोस्ती तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर अपनी छवि को मजबूत करने का भी हिस्सा है।


क्या भारत को चिंता करनी चाहिए?

तुर्की का यह रुख भारत के लिए कितना हानिकारक है? कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को तुर्की के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता है।

भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करके इस तनाव को कम किया जा सकता है। साथ ही, भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि तुर्की जैसे देशों का एकतरफा रुख भारत के हितों को प्रभावित न कर सके।


भविष्य की दिशा

भारत और तुर्की के बीच संबंध सुधारने की संभावनाएं अभी भी मौजूद हैं। दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाकर कूटनीतिक तनाव को कम किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को एक-दूसरे के हितों का सम्मान करना होगा। तुर्की को यह समझना होगा कि भारत जैसे उभरते वैश्विक शक्ति के साथ टकराव उसकी दीर्घकालिक रणनीति के लिए ठीक नहीं होगा।

अंत में, यह सवाल बना रहता है कि क्या तुर्की अपनी नीति में बदलाव लाएगा या भारत को इस चुनौती का सामना करने के लिए नए रास्ते खोजने होंगे? यह समय ही बताएगा।


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