बॉलीवुड के इतिहास में अगर किसी अभिनेता को "परफेक्ट विलेन" का खिताब दिया जाए, तो वह नाम निश्चित रूप से अमरीश पुरी का होगा। उनकी भारी-भरकम आवाज़, डराने वाले एक्सप्रेशन्स और कड़क संवाद अदायगी ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार खलनायकों में शुमार कर दिया। मोगैंबो के "खुश होने" से लेकर तमाम निगेटिव किरदारों तक, उन्होंने कभी अभिनय को बनावटी नहीं होने दिया — और शायद यही वजह है कि वो हर किरदार को असली बना देते थे।
एक्टिंग के लिए हद से आगे निकलने वाले कलाकारअमरीश पुरी न केवल अभिनय करते थे, बल्कि उसे जीते भी थे। वो सीन में इतनी गहराई से उतरते थे कि दर्शकों को लगता था मानो सचमुच वही किरदार उनके सामने खड़ा हो। एक बार उन्होंने अपनी इसी समर्पण भावना का ज़िक्र खुद एक शो में किया, जहाँ उन्होंने एक चौंकाने वाला किस्सा सुनाया — उन्होंने सेट पर स्मिता पाटिल को सच में थप्पड़ मार दिया था!
डायरेक्टर से ली थी अनुमतिइस किस्से को खुद अमरीश पुरी ने एक चर्चित टेलीविज़न शो में साझा किया था, जिसकी क्लिप इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल है। इस शो में उनके साथ अभिनेता फारूख शेख और मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल भी मौजूद थे। अमरीश पुरी ने बताया कि वह और स्मिता पाटिल एक फिल्म में एक साथ काम कर रहे थे, और एक सीन में स्मिता पाटिल को अमरीश पुरी के किरदार से घर से बाहर जाने की अनुमति मांगनी होती है। इस दौरान स्क्रिप्ट के मुताबिक, उन्हें स्मिता पाटिल को एक जोरदार थप्पड़ मारना होता है।
अमरीश पुरी ने जब यह दृश्य पढ़ा, तो वह सीधे निर्देशक श्याम बेनेगल के पास पहुंचे और पूछा, "क्या मैं इस सीन में सच में स्मिता को थप्पड़ मार सकता हूं?" इस सवाल से श्याम बेनेगल थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गए। लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "हां, तुम सच में मार सकते हो।"
स्मिता पाटिल को नहीं थी भनकइस पूरी योजना की बात स्मिता पाटिल को नहीं बताई गई थी। वह हमेशा की तरह प्रोफेशनल अंदाज में शूटिंग पर आईं और अपना डायलॉग बोला। लेकिन जैसे ही उनका संवाद खत्म हुआ, अमरीश पुरी ने उन्हें असली थप्पड़ जड़ दिया — जोरदार, बिल्कुल वैसा जैसा सीन में लिखा था।
कैमरे में कैद हुआ असली रिएक्शनअमरीश पुरी ने बताया कि स्मिता पाटिल का रिएक्शन इतना जबरदस्त और नेचुरल था कि वो सीन बेहद प्रभावशाली बन गया। उन्होंने कहा, "उस थप्पड़ के बाद स्मिता जी का चेहरा देखना लायक था। वो जो रिएक्शन आया, वही उस सीन की जान बन गया।" ये उस दौर की बात है जब अभिनय में गहराई लाने के लिए कलाकार हर हद तक जाते थे।
दर्शकों ने सराहा, फिल्म को मिला यथार्थ का तड़काहालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह किस फिल्म की बात है, लेकिन उनके इस किस्से ने यह जरूर दिखा दिया कि पुराने ज़माने के कलाकार अपने किरदार को जीवंत बनाने के लिए कितने समर्पित होते थे। अमरीश पुरी के मुताबिक, इस एक थप्पड़ ने न केवल सीन को रियल बना दिया, बल्कि दर्शकों को भी पर्दे पर एक सच्चा एहसास देने में सफल रहा।
निष्कर्ष:
अमरीश पुरी की कहानी हमें बताती है कि अभिनय केवल डायलॉग बोलने का नाम नहीं, बल्कि किरदार में पूरी तरह डूब जाने की प्रक्रिया है। और जब सामने स्मिता पाटिल जैसी समर्पित कलाकार हों, तो ऐसा सीन सिनेमा इतिहास में दर्ज हो जाना तय है। यह किस्सा न केवल उनके प्रोफेशनलिज्म को दर्शाता है, बल्कि आज के कलाकारों के लिए भी एक प्रेरणा है कि एक सच्चा कलाकार हमेशा सीन को असली बनाने में पीछे नहीं हटता — भले ही उसके लिए किसी को सच में चांटा ही क्यों न मारना पड़े।
क्या ऐसी और कहानियां हैं अमरीश पुरी की?
कैसे इतनी प्रमाणीकरण के लिए तैयारी करते थे वे?
क्या स्मिता पाटिल ने इसका जवाब दिया था?
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