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राजस्थान का थार रेगिस्तान क्या धरती पर डायनासोरों का पहला घर था? वायरल वीडियो में देखे वैज्ञानिकों की हैरान करने वाली खोजें

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राजस्थान का थार रेगिस्तान, जो आज रेत के विस्तृत टीलों, ऊंटों की काफिलों और भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है, कभी पृथ्वी के इतिहास के सबसे रहस्यमय जीवों – डायनासोरों का प्राचीन घर था। नवीनतम शोध और भूवैज्ञानिक प्रमाणों से संकेत मिलता है कि थार क्षेत्र कभी जैव विविधता से परिपूर्ण था और संभवतः यहां दुनिया के सबसे पुराने डायनासोरों की प्रजातियाँ रहा करती थीं। यह खोज न केवल भारत के भूविज्ञान के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक डायनासोर अनुसंधान में भी एक नया मोड़ ला सकती है।


थार का भूवैज्ञानिक इतिहास
थार रेगिस्तान आज भले ही शुष्क और मरुस्थलीय दिखता हो, लेकिन लगभग 15 से 20 करोड़ वर्ष पूर्व यह क्षेत्र हरियाली, झीलों और जीवन से भरपूर था। यह समय 'ट्राइसिक' और 'जुरासिक' युग के बीच का माना जाता है, जब डायनासोरों की उत्पत्ति हुई थी। पाली, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में मिले भूगर्भीय अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ की धरती उस युग की कई घटनाओं की साक्षी रही है।

जैसलमेर में मिले चौंकाने वाले अवशेष
2021 और उसके बाद के वर्षों में जैसलमेर के पास भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और अन्य संस्थाओं द्वारा की गई खुदाई में कुछ उल्लेखनीय खोजें सामने आईं। वैज्ञानिकों को यहां डायनासोर के दांत, हड्डियों के टुकड़े और अंडों के जीवाश्म मिले हैं जो लगभग 16 करोड़ वर्ष पुराने माने जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये अवशेष "आबेलिसॉरिडे" नामक मांसाहारी डायनासोर परिवार से संबंधित हो सकते हैं।इस खोज की विशेष बात यह है कि यह डायनासोर अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और मेडागास्कर में पाए जाने वाले प्राचीन थरॉपोड्स से मेल खाते हैं। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि आज का थार क्षेत्र कभी गोंडवाना नामक महाद्वीप का हिस्सा था — वह महाद्वीप जिसमें भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे।

भारत में डायनासोर का इतिहास
भारत में डायनासोरों का इतिहास काफी पुराना और विविध है। गुजरात के बालासिनोर क्षेत्र को 'भारत का जुरासिक पार्क' कहा जाता है, जहाँ हजारों अंडों और कंकालों की खोज हुई है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के नर्मदा घाटी क्षेत्र में भी कई डायनासोर प्रजातियाँ पाई गई हैं। लेकिन राजस्थान की खोज विशेष इसलिए है क्योंकि यहाँ के अवशेष बाकी जगहों से भी पुराने माने जा रहे हैं।राजस्थान के थार क्षेत्र से मिले जीवाश्म इस संभावना को बल देते हैं कि डायनासोरों की उत्पत्ति या उनका प्रारंभिक विकास इसी क्षेत्र में हुआ हो सकता है, ना कि सिर्फ अफ्रीका या अमेरिका में जैसा कि पहले माना जाता था।

वैश्विक शोध में भारत की भूमिका
थार में मिले डायनासोर अवशेषों ने भारत को वैश्विक पालींटोलॉजी शोध में एक नया स्थान दिलाया है। इससे पहले भारत को डायनासोरों के “पैसिव रेसिपिएंट” के रूप में देखा जाता था — यानी एक ऐसा क्षेत्र जहाँ डायनासोर पहुँचे, लेकिन उत्पत्ति कहीं और हुई। लेकिन अब यह धारणा बदल रही है।भारतीय वैज्ञानिक अब इस पर भी विचार कर रहे हैं कि भारत डायनासोरों की 'क्रैडल' यानी उत्पत्ति का स्थल हो सकता है। यह शोध भारतीय विज्ञान जगत के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

थार: आज का रेगिस्तान, कल का हरितवाना
थार आज रेत के मैदान के रूप में जाना जाता है, परंतु वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि यह क्षेत्र कभी झीलों, नदियों और घने जंगलों से आच्छादित था। यही कारण है कि यहाँ डायनासोर जैसे विशालकाय जीवों का रहना संभव था।भविष्य में यदि और खुदाई और अध्ययन हुए, तो हो सकता है कि राजस्थान में पृथ्वी के विकास की और भी महत्वपूर्ण परतें सामने आएँ।

संरक्षण और शोध की ज़रूरत
राजस्थान में इन अवशेषों की खोज तो हो गई, लेकिन इनका संरक्षण और विस्तार से अध्ययन आज भी चुनौती बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए, ताकि ना केवल इन ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा हो, बल्कि पर्यटन और शिक्षा के नए आयाम भी खुल सकें।एक “डायनासोर फॉसिल पार्क” या संग्रहालय की स्थापना से न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, बल्कि दुनिया भर के शोधकर्ता भी इस दिशा में आकर्षित होंगे।

राजस्थान का थार रेगिस्तान अब सिर्फ मरुस्थल नहीं, बल्कि लाखों वर्षों पुराने पृथ्वी इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज बनता जा रहा है। यहाँ के कण-कण में छिपे डायनासोरों के रहस्य हमें यह समझाते हैं कि धरती का स्वरूप समय के साथ कैसे बदलता है।अगर यह प्रमाणित हो गया कि थार ही डायनासोरों का पहला घर था, तो यह भारत के लिए वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से गर्व की बात होगी।

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