तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की जयंती अकाल मृत्यु, रोग, भय आदि से मुक्ति दिलाती है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। वहीं हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी व्रत भी रखा जाता है। काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु, रोग, दोष आदि का भय नहीं रहता। शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
आइए जानते हैं भगवान शिव के रुद्रावतार काल भैरव का जन्म कैसे हुआ। भगवान कालभैरव को भगवान शिव का सबसे रौद्र रूप माना जाता है, वे सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंड देते हैं। पौराणिक कथाओं में भगवान शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना बताई गई है। इसके अनुसार एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से पूछा कि परमपिता परमेश्वर इस भौतिक जगत में अविनाशी तत्व हैं जिनका आदि और अंत कोई नहीं जानता। तब ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व केवल मैं ही हूं क्योंकि यह जगत मेरे द्वारा ही निर्मित हुआ है।
मेरे बिना जगत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि वे स्वयं को इस चराचर जगत का पालनकर्ता और अविनाशी बताते हैं। इस प्रकार देवता भ्रमित हो गए। तब सत्य की कसौटी पर कसने के लिए चारों वेदों का आह्वान किया गया। चारों वेदों ने एक स्वर में कहा कि जो जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान को समाहित किए हुए हैं, जिनका कोई आदि और अंत नहीं है, जो अजन्मा हैं, जो जीवन-मरण, सुख-दुख से परे हैं, जिनकी पूजा देवता और दानव समान रूप से करते हैं, वे अविनाशी भगवान रुद्र हैं। वेदों के इन वचनों को सुनकर ब्रह्मा के पांचवें मुख ने शिव के विषय में कुछ अपमानजनक वचन कहे, जिन्हें सुनकर चारों वेद अत्यंत दुखी हुए।
तब भगवान रुद्र एक दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट हुए। तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि हे रुद्र! तुम मेरे शरीर से उत्पन्न हुए हो, रोने के कारण मैंने तुम्हारा नाम 'रुद्र' रखा है, इसलिए मेरी सेवा में आओ। ब्रह्मा की यह बात सुनकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उस दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, जिसने शिव को अपमानजनक शब्द कहे थे। इससे उसे ब्रह्महत्या का पाप लगा। इससे मुक्ति पाने के लिए शिव ने भैरव बाबा को काशी जाने को कहा। वहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली। साथ ही भगवान शिव ने भैरव बाबा को काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी भैरव बाबा को काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। उनके दर्शन के बिना बाबा विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं।
You may also like
कांवड़ मार्ग के मुस्लिम व्यापारी अपना नाम न छुपाएं: अरविंद अग्रवाल जौनी
लखनऊ के रमेश कुमार ने घर में रखा ताजिया, पैदल लेकर जाएंगे कर्बला
पलवल: दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम से निजात दिलाने के लिए उपायुक्त ने किया दौरा
यमुनानगर: सरकार प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर उठाए कठोर कदम : डॉ. सुशील गुप्ता
यमुनानगर: ट्रेड यूनियनों की हड़ताल को मिला रिटायर्ड कर्मचारी संघ का समर्थन