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राजस्थान के इस मंदिर में चढ़े तेल को लगाने से चर्म रोग होता है दूर! 150 साल पुरानी आस्था

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राजस्थान अपने ऐतिहासिक किलों, रंग-बिरंगे मेलों और अनोखी परंपराओं के लिए विश्वभर में जाना जाता है। लेकिन यहां के कुछ मंदिर ऐसे चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जिन पर आज भी विज्ञान जवाब देने में असहाय है। ऐसा ही एक मंदिर है जहां चढ़े हुए सरसों के तेल को शरीर पर लगाने से चर्म रोग (Skin Disease) दूर हो जाते हैं। इस मंदिर की मान्यता लगभग 150 साल पुरानी है और आज भी यहां दूर-दूर से लोग इलाज की आस लेकर आते हैं।

कहां है यह चमत्कारी मंदिर?

यह मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है और इसे शनि महाराज का मंदिर कहा जाता है। ग्रामीण इसे "काला महादेव" या "शनि देव मंदिर" भी कहते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि चिकित्सा के नजरिए से भी एक आस्था का केंद्र बन चुका है।

क्या है खास – चर्म रोगों से मुक्ति का दावा

इस मंदिर में श्रद्धालु शनिवार के दिन विशेष रूप से आते हैं और शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि मंदिर में चढ़ाया गया यह तेल चमत्कारी होता है। लोग इस तेल को बोतलों में भरकर अपने साथ ले जाते हैं और अपने चर्म रोग से ग्रसित हिस्सों पर लगाते हैं। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का दावा है कि कुछ ही दिनों में खुजली, फोड़े-फुंसी, एक्जिमा, सोरायसिस जैसे रोगों में अद्भुत लाभ मिलता है।

150 साल पुरानी है यह मान्यता

स्थानीय मान्यता के अनुसार यह चमत्कारी परंपरा 150 साल पहले शुरू हुई थी, जब एक साधु को चर्म रोग हो गया था। उन्होंने यहां आकर शनिदेव की पूजा की और चढ़ाया गया तेल अपने शरीर पर लगाया। कुछ ही दिनों में उनका रोग पूरी तरह ठीक हो गया। तभी से यह परंपरा चल पड़ी और आज हजारों लोग इससे लाभ उठा रहे हैं।

कैसे होती है पूजा?

शनिवार के दिन सुबह से ही मंदिर में भीड़ उमड़ने लगती है। भक्तजन सरसों का तेल, काले कपड़े, उड़द दाल और नीले फूल चढ़ाते हैं। शनिदेव की लोहे की प्रतिमा पर तेल अर्पित किया जाता है, जो नीचे बने एक पात्र में इकट्ठा होता है। इसी तेल को "औषधीय शक्ति" से भरपूर माना जाता है।

वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि सरसों के तेल में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो कुछ चर्म रोगों में राहत दे सकते हैं। लेकिन यहां का मामला सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, गहरी आस्था और श्रद्धा से जुड़ा है। श्रद्धालुओं का विश्वास ही इस तेल को 'औषधि' बना देता है।

निष्कर्ष

नागौर के इस शनिदेव मंदिर की आस्था सिर्फ एक धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक चिकित्सा स्थल बन चुकी है। विज्ञान भले ही इन चमत्कारों को प्रमाणित न कर सके, लेकिन यहां की भीड़, श्रद्धा और संतोष यही कहते हैं कि आस्था में अपार शक्ति है। यदि आप भी किसी चर्म रोग से परेशान हैं और हर उपाय कर चुके हैं, तो एक बार इस चमत्कारी मंदिर की शरण जरूर लें—क्योंकि यहां सिर्फ तेल नहीं, विश्वास लगाया जाता है।

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