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Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा 2025 में कब है, नोट कर लें सही डेट और मुहूर्त

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Sharad Purnima 2025: भारत देश के विभिन्न उत्सवों में से एक शरद पूर्णिमा की महानता का गुणगान सनातन संस्कृति के कई धर्म ग्रंथों में देखने को मिलता हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करते हैं। इस दिन की विशेषता इसका भोग या प्रसाद है जो कि खीर है। जिसे भक्त चंद्र देव को चढ़ाकर अगले दिन ग्रहण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस व्रत की महिमा सदियों से चली आ रही हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य शारीरिक और मानसिक रोगों से दूर रहता है।



शरद पूर्णिमा 2025 (Sharad Purnima 2025)
पंचांग के अनुसार साल 2025 में शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी।

शरद पूर्णिमा का धार्मिक और पारंपरिक महत्व
इस व्रत का उल्लेख नारद पुराण, स्कन्द पुराण, लिंग पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता हैं। नारद पुराण के अनुसार यह वही रात जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मिलन हुआ था। श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात को ब्रज की गोपियों के साथ रासलीला की थी जिसके साक्षी स्वर्ग के सभी देवी-देवता हुए। एतिहासिक तौर पर शरद पूर्णिमा पर्व सत्य युग से चला आ रहा है और भारत, नेपाल, बांग्लादेश में इसे विधि पूर्वक मनाया जाता हैं। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा, नवान्न पूर्णिमा' और कौमुदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार के मिथिला क्षेत्र में आज के दिन माता लक्ष्मी का पूजन होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यह रात माता लक्ष्मी का ही एक स्वरुप हैं।

शराद पूर्णिमा व्रत कथा
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी, वह दोनों ही शरद पूर्णिमा का व्रत किया करती थीं। लेकिन दोनों बहनों में से छोटी बहन आधा-अधुरा व्रत करती थी जिससे उसकी संताने जन्म लेते ही मर जाती थी। वहीं बड़ी बहन के विधि-पूर्वक व्रत करने से उसे स्वस्थ और निरोगी संतान मिलती थी। छोटी बहन ने जलन की भावना में आकर अपने मृत शिशु को कपड़े में लपेटकर बड़ी बहन के पास रख दिया ताकि लोग यह समझे की बड़ी बहन स्वयं एक अपशगुन है जिसके निकट जाने से उसका शिशु मर गया। बड़ी बहन ने इस चाल को पहले ही समझ लिया और अपनी छोटी बहन को बहुत समझाया। छोटी बहन ने अपनी गलती को स्वीकार किया और व्रत की पूजन विधि को समझकर व्रत करना प्रारंभ किया जिससे उसकी संतान जीवित और स्वस्थ पैदा हुई।

कौमुदी व्रत क्या है ?
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार शरद पूर्णिमा को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। आज के दिन नवविवाहित जोड़ा व्रत और जागरण कर अगले दिन चंद्रमा के नीचे रखी हुई खीर को ग्रहण करते हैं जिनसे उनके दांपत्य जीवन में प्रेम और हर्ष बना रहता हैं। इस दिन को मधुमास यानी हनीमून की रात भी कहते हैं क्योंकि यह दो प्रेमियों के बीच प्रेम संबंध को सकुशल और मजबूत रखता है।
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