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Meera Bai Jayanti 2024: मीरा बाई की जयंती पर जानें उनसे जुड़ी खास बातें, यहां पढ़ें उनका जीवन परिचय

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Meera Bai Jayanti 2024: मीरा बाई हिंदी साहित्य की सबसे महान कवयित्री में एक मानी जाती है। ये भक्तिकाल की प्रमुख कवयित्री थीं। इन्होंने अपना सारा जीवन कृष्ण की भक्ति में लीन कर दिया। बचपन से ही मीरा को कृष्ण से प्रेम हो गया था और उनको अपना पति मनाने लगीं थीं। मीरा बाई जयंती का दिन मीरा बाई के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। मीरा बाई जयंती के दिन भगवान कृष्ण के उपासक मीरा बाई की जंयती बहुत धूमधाम के साथ मनाते हैं। इस दिन कृ्ष्ण मंदिरों में मीरा बाई के पदों के गायन का आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं मीरा बाई की जयंती पर उनसे जुड़ी खास बातें।


मीरा बाई जीवन परिचय

गिरिधर के दर्श को दीवानी मीराबाई
हिन्दी पद साहित्य और भक्ति काल की प्रमुख कवयित्री मीराबाई का जीवन कृष्ण के भक्ति रस में ही विलिन रहा है। कृष्ण भक्ति में लीन मीराबाई ने समाज और लोक-लाज की परवाह किए बगैर अपने प्रभु की ऐसी भक्ति जो यु्ग-युगांतर तक अमर हो गया। आज मीराबाई जयंती पर पढ़े उनकी संक्षिप्त जीवन यात्रा।


मीराबाई की जन्म तिथि
वर्ष 2024 में मीरबाई की 526वां जन्म वर्षगांठ है और यह हर वर्ष के आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पड़ता है और यह 17 अक्टूबर यानि आज मनाई जा रही है।


जन्म का बचपन
मीराबाई के जन्म के बारे में मिले हुए विवरण उतनी सटीकता से नही दर्शातें हैं किन्तु इतिहासकारों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि मीराबाई का जन्म सन 1498 ई॰ में राजस्थान के पाली क्षेत्र के कुड़की गांव में दूदाजी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था। इनका जन्म पर नाम जशोदा राव रतन सिंह राठौड़ था। बचपन से ही मीराबाई को कृष्ण की कथाओ और लीलाओं में जिज्ञासा होती थी और धीरे-धीरे कर उन्होंने कृष्ण को अपना पति मान लिया। बालपन की स्मृत्यां अब जवानी में ढल गई और मीराबाई का विवाह चित्तोरगढ़ के महाराज भोजराज से हुआ जो कि मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। राजपूतों और मुगलों की लड़ाई के समय इनके पति की घाव लगने मृत्यु हो गई जिसके उपरान्त इन्हें सती प्रथा के अनुसार उन्हें अपने देह का आत्मदाह करना था, लेकिन वह इसके विरुद्ध गई और राजमहल को त्याग कर बैरागी हो गई।


मीराबाई और संत रैदास
इतिहासकारो के अनुसार मीराबाई ने अपना राज्य त्यागने के बाद संत रैदास/रविदास की शरण ली। भक्ति काल की प्रमुख दो सखाओं सर्गुण और निर्गुण में से एक रैदास निर्गुण भक्ति के लिए जाने जाते थे। उनके के लिए ईश्वर का स्वरुप निराकार था। मीरा सर्गुण कृष्ण की भक्ति किया करती थी और अपने गुरु रैदास से उन्होंने भक्ति योग को जाना और समझा।


मीराबाई की रचनाएं
कृष्ण भक्ति की उपासक मीराबाई ने अनेको रचनाएं की है जो आज भी भारत में प्रचलित है। विद्वानों के मत्तानुसार मीराबाई की सभी रचनाओं में प्रेम और भक्ति रस का अलौकिक संगम देखने को मिलता है। इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार से है –
• राग गोविंद
• गोविंद टीका
• राग सोरठा
• मीरा की मल्हार
• नरसी जी रो माहेरो
• गर्वागीत
• फुटकर पद
मीराबाई की रचनाएं की भाषा शैली ककी यदि बात करे तो इनकी रचनाओ में हिंदी, खड़ी बोली और इनकी मातृभाषा राजस्थानी का मिश्रण देखने को मिलता है। हिंदी पद साहित्य के इतिहास में मीराबाई का एक विशेष स्थान है और इनकी रचनाएं आज भी मंचो पर गाई और पढ़ी जाती है।

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