बलिया, 25 जून (Udaipur Kiran) । देश इमरजेंसी के पचास साल पूरे होने पर पुलीसिया अत्याचार को याद कर रहा है। इमरजेंसी में जेल गए और बाद में यूपी के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी तक पहुंचे रामगोविंद उन दिनों को याद कर जोश से भर जाते हैं।
उन्होंने इमरजेंसी को याद करते हुए सिलसिलेवार ढंग से बताया कि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ छात्र सबसे आगे रहे।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में जेपी और चंद्रशेखर गिरफ्तार हो गए। देश में इमरजेंसी लग गई। यह बात हमें तब पता चली जब हम बलिया रेलवे स्टेशन से बाहर चाय पीने जुटे थे। तब इमरजेंसी क्या होती है, यह भी ठीक से नहीं जानते थे। इसके बाद एक रिक्शे पर माइक बांधा गया, यह एनाउंस करने के लिए कि गिरफ्तारी के खिलाफ बलिया बंद रहेगा। रिक्शे पर गंगासागर सिंह और सागरपाली के पांडेजी बैठे। दोनों ओक्डेनगंज चौकी की ओर पहुंचे कि पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। रिक्शावाला भागकर हम लोगों के पास चाय की दुकान पर आया और इशारों में ही बताया कि सभी पकड़ लिये गए हैं। हम लोग भी वहां पहुंचे तो पुलिस ने हमें भी बैठा लिया। वहां से जैसे-तैसे भागे और तीन महीने तक भूमिगत होकर आंदोलन चलाया। बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
देश में इमरजेंसी की घोषणा के तुरंत बाद बलिया समेत पूर्वांचल के हालात का जिक्र करते हुए पूर्व मंत्री और समाजवादी नेता 72 वर्षीय रामगोविन्द चौधरी ने कहा, गुजरात में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलित छात्रों के आग्रह पर जयप्रकाश नारायण ने उनका नेतृत्व किया। ‘छात्र युवा संघर्ष समिति’ का निर्माण किया। बलिया में गौरी भइया (बाद में प्रदेश सरकार में मंत्री बने) इसके संयोजक और हम (रामगोविन्द चौधरी) सह संयोजक बनाए गए। इस बैनर के तले बलिया समेत आसपास के जिलों में व्यापक आंदोलन चला। रेल-सड़कें रोकी गईं। दिल्ली में बड़ी सभा हुई। नारा था ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।’ पूरे देश से लाखों नौजवान पहुंचे। बताया, सभा के बाद चंद्रशेखर ने जेपी को चाय पर बुलाया। उसमें कांग्रेस के भी कई सांसद शामिल हुए। चंद्रशेखर तब कांग्रेस में ही थे। उन्होंने इंदिरा से कहा था कि जेपी एक ‘संत राजनीतिज्ञ’ हैं। उनसे लड़ाई नहीं, बात करके समझौता कीजिए। वे मानी नहीं। वापस जाते समय जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया। पार्लियामेंट थाने में बैठाया गया। चंद्रशेखर गए तो उन्हें भी बैठा लिया गया और रात को इमरजेंसी लागू कर दी गई।
–पुलिस के अत्याचार की पराकाष्ठा
रामगोविन्द चौधरी के अनुसार, इमरजेंसी में पुलिस के अत्याचार की पराकाष्ठा हो गई थी। बलिया समेत पूर्वांचल आंदोलन में आगे था। हम और गौरी भइया ने आसपास के सभी जिलों के कालेजों में बड़े नेताओं की बैठकें कराईं। इमरजेंसी लगने के अगली सुबह ही हम सभी रोज वे की तरह रेलवे स्टेशन के सामने ‘भृगु टी स्टाल’ पर चाय पीने एकत्र हुए। वहां जनसंघ के बब्बन सिंह, दिवाकर शर्मा, गंगासागर सिंह, सागरपाली के पांडेय जी आदि थे। जेपी-चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के विरोध में बलिया बंद का निर्णय हुआ। प्रचार के लिए रिक्शा घुमवाया जा रहा था, पुलिस ने ओवडेनगंज चौकी पर पकड़ लिया।
‘छात्र युवा संघर्ष समिति’ का निर्णय हुआ कि स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों में हड़ताल कराएं। हम और विद्यार्थी परिषद के त्रिलोकी पांडे रात में टीडी कालेज के हॉस्टल में गए। तब तक गौरी भइया गिरफ्तार हो चुके थे। हॉस्टल में तय हुआ कि कल सुबह हम (रामगोविन्द) कालेज की घंटी बजाएंगे। पुलिस आएगी तो छत पर से पथराव कर देना है। तब पुलिस लाठीचार्ज करेगी तो हड़ताल हो जाएगी। कहते हैं, प्राचार्य कक्ष के आगे टेबल रखकर भाषण देने लगा। इसी दौरान पीछे से पुलिस आ गयी। हमको पीटने के साथ ही नौजवानों पर लाठी चार्ज कर दिया। हमें पकड़कर गाड़ी में फेंक दिए।
–सुर्ती के बहाने चौकी से भागा
रामगोविन्द चौधरी ने कई रोचक किस्से बताए। कहा कि, इमरजेंसी लगने के बाद जब बलिया बंद का प्रचार करने के लिए रिक्शा घुमाया जा रहा था तो ओक्डेनगंज चौकी की पुलिस ने हम सभी को पकड़ लिया। इस दौरान हमारे एक साथी पेशाब करने के बहाने बाहर निकले और भाग गए। हम खुद सुर्ती मांगने के बहाने बाहर निकलने लगे। एक पुलिस वाले ने पकड़कर कहा, लो हमारे पास है। फिर हम चूना के लिए बाहर निकले और भागकर सामने ठाकुर शिवमंगल सिंह की हवेली में घुस गए। उनके साथ बैठे थे पुलिस पहुंच गई। तब शिवमंगल सिंह का बड़ा कद था। उन्होंने पुलिस को लौटा दिया और हमें मकान के पिछले हिस्से से टाउन हाल की तरफ भगा दिया। हम सभी जेल जाने की बजाय बाहर रहकर आंदोलन चलाना चाहते थे।
–जिस एसपी ने रखा पांच हजार का इनाम, साथ रहे मंत्री
रामगोविन्द चौधरी ने बताया, इमरजेंसी के दौरान भूमिगत रहकर आंदोलन के दौरान उस जमाने में पुलिस ने हमारे ऊपर पांच हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया था। जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर। खास बात यह कि उस समय अहमद हसन बलिया के एसपी थे। जो बाद में हमारी पार्टी (सपा) से राजनीति की, हम लोगों ने सरकार में एक साथ काम भी किया।
–चंद्रशेखर के नामांकन के दिन निकले
रामगोविन्द चौधरी ने कहा, इमरजेंसी खत्म होने के बाद हमारे सभी साथी जेल से रिहा हो चुके थे। सबसे आखिरी में जेल से छूटने वालों में हम और हरेराम चौधरी (बाद में नगर पालिका के अध्यक्ष बने) थे। कुछ दिन बाद वे भी रिहा हो गए। उधर, चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। नामांकन के अंतिम दिन चंद्रशेखर का पर्चा दाखिला था। उसी दिन हमें जेल से बाहर निकाला गया। बताया कि जेल में रहते हुए पेशी के दौरान हमें और मनियर वाले गोपालजी सिंह को एक ही हथकड़ी में लाया जाता था।
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(Udaipur Kiran) / नीतू तिवारी
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