जम्मू, 13 जुलाई (Udaipur Kiran) । यह बेहद निराशाजनक और बेहद गैर-जिम्मेदाराना है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 13 जुलाई, 1931 की घटनाओं की तुलना जलियाँवाला बाग हत्याकांड से की है। यह त्रुटिपूर्ण और भ्रामक तुलना न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन शहीदों का घोर अपमान भी है जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
यह बात जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता और जम्मू-कश्मीर भाजपा के महासचिव सुनील शर्मा ने कही।
सुनील शर्मा ने कहा कि 1919 में जलियाँवाला बाग नरसंहार भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के सबसे काले और खूनी अध्यायों में से एक है। उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन जनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने सैकड़ों निर्दोष और निहत्थे भारतीयों, जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे को केवल इसलिए गोलियों से भून दिया क्योंकि वे अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करने के लिए शांतिपूर्वक एकत्र हुए थे। ये पीड़ित किसी भीड़ का हिस्सा नहीं थे। वे शांतिप्रिय नागरिक थे जो विदेशी शासन से स्वतंत्रता और सम्मान की मांग कर रहे थे। भारतीयों के रूप में उन्हें याद रखना हमारा सामूहिक नैतिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है।
सुनील शर्मा ने कहा कि इसके ठीक विपरीत 13 जुलाई, 1931 को श्रीनगर में जो हुआ वह कोई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन नहीं था बल्कि महाराजा के खिलाफ सांप्रदायिक और राजनीति से प्रेरित साजिश द्वारा भड़काया गया एक हिंसक सांप्रदायिक हमला था। यह अशांति अब्दुल कादिर के भड़काऊ भाषणों के बाद शुरू हुई l
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(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता
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