जम्मू, 27 जून (Udaipur Kiran) । केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने जम्मू के त्रिकुटा नगर स्थित भाजपा मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया।
उनके साथ भाजपा जम्मू एवं कश्मीर के अध्यक्ष सत शर्मा (सीए), भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एवं विधायक डॉ. नरिंदर सिंह, पूर्व उपमुख्यमंत्री कविन्द्र गुप्ता और विधायक चौ. विक्रम रंधावा भी थे।
प्रेस को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि आपातकाल की अवधि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के सबसे काले अध्यायों में से एक है लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए इसे बार-बार याद रखना महत्वपूर्ण है कि आने वाली पीढ़ियां इसके परिणामों से अवगत हों और ऐसी किसी भी पुनरावृत्ति के खिलाफ सतर्क रहें। उन्होंने कहा कि उन वर्षों के दौरान, 1975 से 1977 तक अनगिनत व्यक्तियों ने राज्य प्रायोजित अत्याचारों का अनुभव किया क्योंकि कई लोगों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया, क्रूर लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा, उन्हें नजरबंद कर दिया गया, या भूमिगत होने के लिए मजबूर किया गया। बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी भी की गई जिसने सार्वजनिक आघात को और बढ़ा दिया। आपातकाल केवल राजनीतिक अधिकारों का निलंबन नहीं था बल्कि नागरिक स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा पर एक व्यापक हमला था।
डॉ. सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उस दमनकारी युग ने मजबूत नेताओं और नए विचारों को जन्म दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि इस अवधि के दौरान वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र के रक्षक के रूप में उभरे। उन्होंने बताया कि कैसे नानाजी देशमुख ने जेपी को बचाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल दी थी। उन्होंने कहा कि देश को उनसे ज्यादा जयप्रकाश नारायण की जरूरत है। इस अवधि के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी, अरुण जेटली और चंद्रशेखर जैसे नेताओं ने प्रतिकूल परिस्थितियों में लचीलापन और नेतृत्व दिखाया।
डॉ. सिंह ने यह भी याद किया कि कैसे आपातकाल के दौरान उनके कई वरिष्ठों को जेल में डाल दिया गया था और कैसे मीडिया को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने उल्लेख किया कि पत्रकारों को केवल सच्ची रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए गिरफ्तार किया गया था और प्रेस लगातार भय और सेंसरशिप के तहत काम करता था।
उन्होंने आगे कहा कि आपातकाल एक अचानक विचलन नहीं था, बल्कि कांग्रेस पार्टी की वैचारिक नींव का संचयी परिणाम था। इसकी उत्पत्ति का पता लगाते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को ए.ओ. ह्यूम ने की थी जो एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश सिविल सेवक थे, जिनका उद्देश्य भारत में एक नियंत्रित राजनीतिक मंच बनाना था न कि राष्ट्रवादी उत्साह से पैदा हुआ आंदोलन।
डॉ. सिंह ने बताया कि कांग्रेस का कभी भी देश के लिए बलिदान देने या वास्तव में देश की सेवा करने का इरादा नहीं था। उन्होंने पार्टी पर भाई-भतीजावाद, अधिनायकवाद और अवसरवाद में निहित होने का आरोप लगाया जो हमेशा अपने हितों को देश के हितों से ऊपर रखती है। उन्होंने तर्क दिया कि जबकि कांग्रेस अक्सर भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने का दावा करती है, इसने 1930 तक पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं की। तब तक पार्टी होम रूल के विचार से संतुष्ट थी जिसका अर्थ था कि भारत अभी भी अंग्रेजों के अधीन अधिकारियों द्वारा शासित होगा। उन्होंने याद किया कि कैसे कांग्रेस ने मदन लाल ढींगरा जैसे राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों की निंदा की, जिन्होंने लंदन में विलियम कर्जन की हत्या की और बाद में उन्हें मार दिया गया। ढींगरा के बलिदान को कांग्रेस ने कभी सम्मानित नहीं किया और वीर सावरकर को छोड़कर किसी भी वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने उनसे मुलाकात भी नहीं की।
डॉ. सिंह ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस आज सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता देने से इनकार करती है। उन्होंने यह भी बताया कि जब गांधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने की अपील की थी और हालांकि सरदार वल्लभभाई पटेल को अधिक वोट मिले थे फिर भी नेहरू को चुना गया था जिससे पता चलता है कि पार्टी के भीतर ही लोकतांत्रिक मानदंडों को कैसे दरकिनार किया गया था। उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के शब्दों का हवाला दिया, जिन्होंने अफसोस जताया था कि गांधीजी ने एक बार फिर अधिक ग्लैमरस नेहरू की खातिर एक भरोसेमंद और योग्य लेफ्टिनेंट का बलिदान दिया है।
डॉ. सिंह ने बताया कि भगत सिंह की फांसी के बाद, राजनीतिक कैदी की परिभाषा को फिर से परिभाषित किया गया था और जबकि सच्चे क्रांतिकारियों को या तो फांसी दी गई थी या इसके पहले यातना दी गई थी। नेहरू ने अपना समय विशेषाधिकार प्राप्त परिस्थितियों में जेल में बिताया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन 1975 में लगाए गए आपातकाल की याद दिलाने और समकालीन भारत में इसके महत्व को उजागर करने के लिए किया गया था। अपने उद्घाटन भाषण में प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा ने 1975 से 1977 तक कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा इस अवधि को 25, 26 और 27 जून को काला दिवस के रूप में मना रही है ताकि जनता विशेषकर युवा पीढ़ी के बीच उस दौरान देश में व्याप्त भयावहता और अधिनायकवाद के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके।
(Udaipur Kiran) / बलवान सिंह
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