गुवाहाटी, 17 अक्टूबर . कार्तिक मास की शुरुआत पर आज असम समेत पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में काति बिहू मनाया जा रहा है. अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन बुधवार को लक्ष्मी पूजा मनाए जाने के बाद गुरुवार को काति बिहू मनाया जा रहा है. काति बिहू धन-धान्य की देवी माता लक्ष्मी की एक प्रकार की पूजा है. खेतों में धान का फसल पक जाने पर आज के दिन धान के खेतों में जाकर किसानों द्वारा दीया जलाया जाता है.
काति बिहू को कंगाली बिहू भी कहा जाता है. क्योंकि, इस समय किसानों के घर में अनाज नहीं होता है. वहीं, खेतों में धान पकने लगा होता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है. देश के कई हिस्सों में इस पर्व को नवान्न के नाम से भी मनाया जाता है. हालांकि, काति बिहू और नवान्न में भिन्नता बस इतनी है कि काति बिहू में शाम को माता लक्ष्मी की दीप जलाकर पूजा की जाती है, जबकि नवान्न में दिन के समय नई धान के पौधे की पूजा कर नई धान से प्रसाद तैयार कर अग्निदेव को आहूति दी जाती है.
वहीं, काति बिहू में आज के दिन किसान दंपति सूर्यास्त के समय अपने खेतों में जाकर धान के नए पौधों की पूजा करते हैं. धान के खेतों में दीप जलाया जाता है. वहीं, महिलाएं आज से पूरे कार्तिक महीने भर तुलसी के पौधे के सामने दीप जलाती हैं. हालांकि, काति बिहू में इनके अलावा और कोई नियम नहीं किया जाता है.
आज राज्य के विभिन्न हिस्सों से विभिन्न स्तर पर काति बिहू मनाए जाने की खबरें विभिन्न माध्यमों से सार्वजनिक हो रही हैं. राज्यभर में अलग-अलग स्थान पर लोग अपने-अपने तरीकों से काति बिहू मना रहे हैं.
राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोग सोशल मीडिया में काति बिहू आयोजन से संबंधित अनेक पोस्ट एवं तस्वीरें साझा कर रहे हैं. इसी के बीच असम की जनता अपने पारंपरिक तरीके से अपने-अपने घरों में काति बिहू मना रही है. पितृपक्ष के बाद नवरात्रि और नवरात्रि के बाद लक्ष्मी पूजा और काति बिहू के साथ ही इन दिनों पूरे राज्य का माहौल धर्म एवं उत्सवमय हो गया है.
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/ श्रीप्रकाश
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