भोपाल, 16 अक्टूबर . जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा जनजातीय संग्रहालय में गत 13 अक्टूबर से शुरू हुए कठपुतली कला की विविध शैलियों पर केन्द्रित चार दिवसीय पुतुल समारोह का बुधवार को समापन हुआ. समापन कार्यक्रम की शुरुआत कलाकारों के स्वागत से की गई. इसके बाद देवी दुर्गा और राजा की जोरा सिंह कथानक को मपेट (बोलते गुड्डे और छड़ पुतली) शैली में धुमकेतू पपेट थिएटर के दिलीप मंडल एवं साथी (पश्चिम बंगाल) द्वारा प्रस्तुति दी गई. दस कलाकारों ने कठपुतली प्रदर्शन किया एवं डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में 30 से अधिक बड़ी एवं छोटी, बोलती, छड़ एवं मपेट कठपुतलियों का प्रयोग किया गया.
कहानी में देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच पौराणिक युद्ध को दर्शाया गया है. कहानी महिषासुर से शुरू होती है, जो एक दुर्जेय राक्षस है जो स्वर्ग और पृथ्वी को आतंकित करता है, देवताओं को हराता है और दुनिया को अराजकता में डुबो देता है. हताशा में, देवता शक्ति और दिव्य शक्ति के अवतार देवी दुर्गा का आह्वान करने के लिए एकजुट होते हैं. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, माँ दुर्गा देवताओं द्वारा दिए गए हथियारों से युद्ध में उतरती हैं और महिषासुर का सामना करती हैं. हालाँकि, अपनी हार से ठीक पहले, महिषासुर को अपने गलत कामों की गंभीरता और उसके द्वारा पहुंचाए गए दर्द का अहसास होता है. एक पल के लिए वह अपने किए के लिए देवी दुर्गा से माफ़ी मांगता है. देवी दुर्गा महिषासुर को क्षमा कर देती हैं, क्योंकि वे उसके भीतर मुक्ति की क्षमता को पहचानती हैं. करुणा का यह कार्य नाटक की समझ और क्षमा के विषय को रेखांकित करता है, जो दिव्य स्त्री की शक्ति का जश्न मनाता है. दिलीप मंडल द्वारा रूपांतरित और निर्देशित, माँ दुर्गा सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है, दुर्गा पूजा की भावना, बंगाल के सबसे प्रिय त्योहारों में से एक, जो शक्ति, करुणा और मुक्ति को एक साथ बुनता है.
इसी क्रम में राजा की जोरा सिंह केदारनाथ चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित भवम हजम जो लोककथा से प्रेरित कहानी है, का मंचन किया गया. राज्य में लोग प्रकृति की स्थिति को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि जंगल सिकुड़ रहे हैं और नदियाँ सूख रही हैं. राजा अचानक बीमार पड़ जाता है और इलाज से भी इनकार कर देता है. राजा की भलाई के लिए उसका एकमात्र विश्वसनीय मंत्री, कलुआ हजम नामक एक नाई को महल में भेजता है. कलुआ राजा के रहस्य को जानकर भयभीत हो जाता है. उसके सिर से दो बड़े सींग निकल रहे हैं. राजा कलुआ को रहस्य रखने के लिए मजबूर करता है. कलुआ जंगल में एक पुराने पेड़ को रहस्य बताता है. दुर्भाग्य से कोई उसकी बात सुन लेता है और राजा के सींगों की अफ़वाहें राज्य में फैलने लगती हैं. कलुआ चुप रहता है, वह राजा के नाम का इस्तेमाल राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने, पेड़ों को काटने और अपने निजी लाभ के लिए लकड़ी बेचने के लिए करता है, वह शाही अधिकार का दावा करता है. रोमांच राजा की बेटी की शादी के दिन होता है. अफ़वाहें राज दरबार में टकराव की स्थिति पैदा कर देती हैं. राजा का रहस्य राज्य के सामने प्रकट हो जाता है. राजा कलुआ को उसके विश्वासघात के लिए दंडित करने का आदेश देता है. कलुआ को उन पेड़ों को फिर से स्थापित करने के लिए कहा जाता है जिन्हें उसने काटा था और जो नुकसान उसने पहुंचाया था. उसकी मरम्मत करता है. कहानी लालच, धोखे और प्रकृति के शोषण के खतरों के बारे में नैतिकता के साथ समाप्त होती है.
प्रस्तुति के दौरान 10 कलाकारों ने कठपुतली प्रदर्शन किया एवं डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में 30 से अधिक बड़ी एवं छोटी, बोलती, छड़ एवं मपेट कठपुतलियों का प्रयोग किया गया. समारोह में घनश्याम भट्ट-भोपाल द्वारा भी राजस्थानी गीतों और कहानियों पर आधारित कठपुतली प्रदर्शन किया गया.
तोमर
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